मीठा ज़हर , शब्दों का उलटफेर ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
आप कितना कमीशन लोगे , आपको इतनी छूट देंगे , साथ में अमुक उपहार मिलेगा , इस में आपको मुफ्त में और बहुत फायदा भी मिलेगा। ये सब बातें एक जैसी ही हैं , बेचने खरीदने की बात है। प्रलोभन देना कोई उचित कार्य नहीं होता , सीधे हाथ नहीं निकलता घी तब चालाक लोग समझदारी से टेड़ी उंगली से निकाल लेते हैं। समस्या ये है कि सब बेईमान खुद को ईमानदार कहलाना चाहते हैं , गुड़ खाना गुलगुलों से परहेज़ करना जैसी बात है। कभी सोचा है देश में जितने भी घोटाले हुए हैं , किसी ने किसी को साफ बोला होगा कि मंत्री जी आप हमें ये दिलवा दो हम आपको इतने करोड़ की घूस देंगे। नहीं , ऐसा कहा जाता होगा इस काम में आपको मुनाफे से इतना दिया जायेगा। इधर ऐसे अनुचित अनैतिक कामों को लोग प्रोफेशन बताने लगे हैं जो पाप को पुण्य , झूठ को सच , अधर्म को धर्म घोषित करना है। हालात इस सीमा तक खराब हैं कि लोग मानते हैं सब बिकते हैं सब को खरीदा जा सकता है। छोटा क्लर्क थोड़े में , बड़ा बाबू कुछ ज़्यादा में , अफ्सर ऊंचे दाम में , मंत्री मुंह मांगी कीमत में बिकते हैं। बड़ा जूता ज़्यादा पोलिश खाता है , चपरासी तक सब को समझाता है। मुझे अगर कोई आकर कहे आप मेरे पास ग्राहक भेजने की कितनी कमीशन लोगे तो मेरा दिल चाहेगा उसको झन्नाटेदार झापड़ रसीद करना। मुझे अपमान लगेगा जब कोई मेरी कीमत लगाना चाहेगा , मुझे मेरे ज़मीर को सिक्कों में तोलना चाहेगा। मुझे जब कोई डॉक्टर बताता है कि जिस की दुकान में बैठ मरीज़ देखता था उस से दवा और जांच को लिखे टेस्ट से हुई आमदनी से कमीशन लेना बाकी है , और कोई झगड़ा नहीं है , तब समझ नहीं आता ये क्या है। इस तरह तो चोर का थानेदार को आधा हिस्सा देना भी अपराध नहीं आपसी भाईचारा है। सुनते थे सब से बहुमूल्य वस्तु या इंसान वो होता है जिस की कोई कीमत नहीं लगा सकता , जो आपको कितनी बड़ी राशि चुकाकर भी मिल नहीं सके। जो बिकाऊ नहीं है। लोग सिर्फ पैसे से ही नहीं बिकते , कुछ को धन दौलत या महंगा उपहार नहीं कोई सम्मान कोई ओहदा कोई तमग़ा चाहिए होता है। उनको इनाम पुरूस्कार से खरीद सकते हैं , सरकार और नेता बहुत लोगों को लाभ देकर खामोश करवाते हैं। जब कोई प्रशासन से आर्थिक फायदा भी लेता है और आलोचना भी करता है तब अधिकारी उसको बुलाकर साफ कहता है ये नहीं चलेगा। खाओ भी गुर्राओ भी। शायद इस से अपमानजनक गाली कोई नहीं हो सकती , मगर लोग हैं यही करते रहते हैं लाज शर्म छोड़कर। कभी लोग कहते हैं हमारे बारे जो बिना किसी स्वार्थ कड़वा सच लिखते हैं , आप प्रैक्टिकल नहीं हैं। आपको चुभने वाले शब्द नहीं उपयोग करने चाहिएं , थोड़ा लिहाज़ कर सभ्य ढंग से काला नहीं सांवरा सलौना लिखा जा सकता है।
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