करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी सेहुए आप अपने से क्यों अजनबी से ।
कभी गुफ़्तगू आप अपने से करना
मिले एक दिन आदमी आदमी से ।
खरीदो कि बेचो , है बाज़ार दिल का
मगर सब से मिलना यहां, बेदिली से ।
हमें और पीछे धकेले गये सब
शुरूआत फिर फिर हुई आखिरी से ।
बताओ तुम्हें और क्या चाहिए अब
यही , लोग कहने लगे बेरुखी से ।
कहीं और जाकर ठिकाना बना लो
यही , रौशनी ने कहा तीरगी से ।
पड़े जाम खाली सभी आज "तनहा"
बुझाओ अभी प्यास को तशनगी से ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें