अप्रैल 10, 2013

POST : 327 फूल जैसे लोग इस ज़माने में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

फूल जैसे लोग इस ज़माने में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

फूल जैसे लोग इस ज़माने में
सुन रखे होंगे किसी फ़साने में ।
  
ज़िंदगी मंज़ूर फैसला तेरा
उम्र बीतेगी उन्हें भुलाने में ।

हर किसी को तो बता नहीं सकते
दर्द बढ़ जाता उसे सुनाने में ।

छेड़ कर बुझती हुई चिंगारी इक 
खुद लगा ली आग आशियाने में ।

कोशिशें उसने हज़ार कर देखीं
लुत्फ़ आया और रूठ जाने में ।

तोड़ डाली खेल खेल में दुनिया
फिर ज़माना लग गया बसाने में ।

आप कितना दूर - दूर रहते हैं
मिट गये हम दूरियां मिटाने में ।

छोड़नी दुनिया हमें पड़ी "तनहा"
अहमियत अपनी उन्हें बताने में ।  
 

 



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