सितंबर 17, 2012

POST : 140 सरकार है बेकार है लाचार है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सरकार है बेकार है लाचार है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सरकार है  , बेकार है , लाचार है
सुनती नहीं जनता की हाहाकार है ।

फुर्सत नहीं समझें हमारी बात को
कहने को पर उनका खुला दरबार है ।

रहजन बना बैठा है रहबर आजकल
सब की दवा करता जो खुद बीमार है ।

जो कुछ नहीं देते कभी हैं देश को
अपने लिए सब कुछ उन्हें दरकार है ।

इंसानियत की बात करना छोड़ दो
महंगा बड़ा सत्ता से करना प्यार है ।

हैवानियत को ख़त्म करना आज है
इस बात से क्या आपको इनकार है ।

ईमान बेचा जा रहा कैसे यहां
देखो लगा कैसा यहां बाज़ार है ।

है पास फिर भी दूर रहता है सदा
मुझको मिला ऐसा मेरा दिलदार है ।

अपना नहीं था ,कौन था देखा जिसे
"तनहा" यहां अब कौन किसका यार है ।  
 

 

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