अगस्त 26, 2012

POST : 86 रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

रंक भी राजा भी तेरे शहर में ( ग़ज़ल ) डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

रंक भी राजा भी तेरे शहर में
मैं कहूं यह  बात तो किस बहर में ।

नाव तूफां से जो टकराती रही
वो किनारे जा के डूबी लहर में ।

ज़ालिमों के हाथ में इंसाफ है
रोक रोने पर भी है अब कहर में ।

मर के भी देते हैं सब उसको दुआ
जाने कैसा है मज़ा उस ज़हर में ।
 
मत कभी सिक्कों में तोलो प्यार को 
जान हाज़िर मांगने को महर में । 
 
अब समझ आया हुई जब शाम है 
जान लेते काश सब कुछ सहर में । 
 
एक सच्चा दोस्त "तनहा" चाहता 
मिल सका कोई नहीं इस दहर में । 
 
 
      { अब किसी पर हम भरोसा क्या करें 
       लोग सब जाते बदल इक  पहर में। }

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