अगस्त 26, 2012

POST : 85 उस को यूं हैरत से मत देखा करो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

उस को यूं हैरत से मत देखा करो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

उस को यूं हैरत से मत देखा करो
ज़िंदगी तो हादिसों का नाम है ।

जिसको ठुकराने चले तुम बिन पढ़े
दोस्ती ही का तो वो पैगाम है ।

उठ गया अब तो जहां से ऐतबार
शहर वालों में ये चर्चा आम है ।

काफिले में चल रहे हैं साथ साथ
अपनी अपनी फिर भी तन्हा शाम है ।

देख कर लाशें कभी रोते नहीं
खोदना ही कब्र उनका काम है ।

"सत्यवादी" कह के हंसता है जहां
बस यही सच कहने का ईनाम  है । 
 

 

2 टिप्‍पणियां: