अगस्त 29, 2012

POST : 98 बिजलियों का भी धड़का है बरसात में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        बिजलियों का भी धड़का है बरसात में ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

बिजलियों का भी धड़का है बरसात में
क्या गज़ब ढाये काली घटा रात में।

कुछ कहा सादगी से भी उसने अगर
राज़ था इक छुपा उसकी हर बात में।

कम नहीं है ज़माने के लोगों से वो
बस लिया देख पहली मुलाक़ात में।

राह तकती किसी की वो छत पर खड़ी
देखा जब भी उसे चांदनी रात में।

हारते सब रहे इस अजब खेल में
लोग उलझे रहे यूँ ही शह-मात में। 

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