अगस्त 26, 2012

POST : 81 पास आया नज़र जो किनारा हमें ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

पास आया नज़र जो किनारा हमें ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

पास आया नज़र जो किनारा हमें
मौज ने दूर फेंका दोबारा हमें ।

ख़ुदकुशी का इरादा किया जब कभी
यूँ लगा है किसी ने पुकारा हमें ।

लड़खड़ाये तो खुद ही संभल भी गए
मिल न पाया किसी का सहारा हमें ।

हो गई अब तो धुंधली हमारी नज़र
दूर से तुम न करना इशारा हमें ।

दुश्मनों से न इतना करम हो सका
हमने चाहा जो मरना न मारा हमें ।

हमको मालूम है मौत देगी सुकूं
ज़िंदगी से मिला बोझ सारा हमें ।

बिन बुलाये यहां आप क्यों आ गये
सबने "तनहा" था ऐसे निहारा हमें ।   

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