जुलाई 26, 2012

POST : 18 ख़ुदकुशी आज कर गया कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ख़ुदकुशी आज कर गया कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ख़ुदकुशी आज कर गया कोई
ज़िंदगी तुझ से डर गया कोई ।

तेज़ झोंकों में रेत के घर सा
ग़म का मारा बिखर गया कोई ।

न मिला कोई दर तो मज़बूरन
मौत के द्वार पर गया कोई ।

खूब उजाड़ा ज़माने भर ने मगर
फिर से खुद ही संवर गया कोई ।

ये ज़माना बड़ा ही ज़ालिम है
उसपे इल्ज़ाम धर गया कोई ।

और गहराई शाम ए तन्हाई
मुझको तनहा यूँ कर गया कोई ।

है कोई अपनी कब्र खुद ही "लोक"
जीते जी कब से मर गया कोई ।   
 

 

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