निकले थे किधर जाने को पहुंचे कहां ( चीख-पुकार ) डॉ लोक सेतिया
ये
भजन मेरी माता जी हर समय गाती - गुनगुनाती रहती थी । मैंने फिल्मों में और
सभी जगह बहुत भजन सुने हैं मगर मुझे जो अलग बात इस भजन में लगती है , कहीं
और नहीं मिली अभी तलक । भजन का मुखड़ा ही याद है उसके बाद उस भजन की बात को
खुद मैंने , अपने शब्दों से सजाने का प्रयास किया है । ये भजन अपनी प्यारी
मां को अर्पित करता हूं । मेरी
मां श्रीमती माया देवी जी 5 जुलाई 2004 को दुनिया को छोड़ चली गई थी नहीं
मालूम कहां फिर भी हमको उस का होने का एहसास हमेशा रहता है , वो जिस भजन
गाया करती थी कुछ इस तरह से है । 29 मई 2017 को ब्लॉग पर लिखा है वही प्रस्तुत कर रहा हूं ।
( तुझे भगवान बनाया हम भक्तों ने , इक भजन सब से अलग है )
भगवन बनकर तू अभिमान ना कर ,
तुझे भगवान बनाया हम भक्तों ने ।
पत्थर से तराशी खुद मूरत फिर उसे ,
मंदिर में है सजाया हम भक्तों ने ।
तूने चाहे भूखा भी रखा हमको तब भी ,
तुझे पकवान चढ़ाया हम भक्तों ने ।
फूलों से सजाया आसन भी हमने ही ,
तुझको भी है सजाया हम भक्तों ने ।
सुबह और शाम आरती उतारी है बस ,
इक तुझी को मनाया हम भक्तों ने ।
सुख हो दुःख हो हर इक क्षण क्षण में ,
घर तुझको है बुलाया हम भक्तों ने ।
जिस हाल में भी रखा है भगवन तूने ,
सर को है झुकाया हम भक्तों ने ।
दुनिया को बनाया है जिसने कभी भी ,
खुद उसी के है बनाया हम भक्तों ने ।
आजकल तमाम जगह जैसे जश्न मनाना हो , भीड़ बनकर किसी इंसान को अपना भगवान समझ कर करोड़ो लोग इक अंधविश्वास के जाल में फंस कर भटकते भटकते कई बार जीवन से हाथ धो बैठते हैं । उसको खोजना या पाना नहीं जानना होता है चिंतन मनन कर खुद अपने आप अकेले शांत मन से लेकिन हम कठिनाई से डरते हैं और चाहते हैं ईश्वर को आसानी से मिल जाएं । ईश्वर हमको आसानी से नहीं मिलता कभी भी जो हमको कहीं आश्रम मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा बुलाते हैं वो कुछ भी हो सकते हैं ख़ुदा या भगवान नहीं । हमने सोचा कि जैसा हम चाहते सोचते समझते हैं भगवान वैसा ही होगा , जबकि बात उल्टी है हमको उस तरह सा इंसान बनना होगा जैसा भगवान चाहता है । इतने भगवान बन गए बना लिए हैं कि बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं महंगाई में कौड़ियों के भाव भगवान बिकते हैं अचरज की बात है जो जब चाहे उसे देख कर आशिर्वाद प्राप्त कर सकता है , मानो भगवान भी सोशल मीडिया का संदेश है जितना चाहो फॉरवर्ड करते जाओ कोई सीमा नहीं । हादसा होने के बाद किसी को कुछ समझ नहीं आता कि ये किस का कर्तव्य था किस ने कोताही बरती कोई तो ज़िम्मेदार ज़रूर है ।
लाशों से कौन पूछे आये थे कहां चल दिए कहां
समझा ही नहीं उस जगह उनकी दर्द भरी दास्तां ।
भीड़ थी जिस जगह भगवान वहां रहते नहीं कभी
राह संतों की एकांत की भक़्तों का कैसा कारवां ।
ध्यान चिंतन मनन ईश्वर की उपासना होती नहीं
महलों में धर्म सभाओं में हर तरफ होता कोई धुंवां ।
किसको है देखना आपको धरती नहीं वो है आस्मां
तिनके को क्या खबर अपना कहीं भी नहीं है निशां ।
भगवान खुश नहीं होते रोज़ ये ही हादसा देख कर उनको लगता है कितने बेबस हैं , भगवान को भीड़ देख कर परेशानी होती है इतनी आवाज़ें इतना शोर कुछ समझ नहीं आता कुछ भी सुनाई नहीं देता । ऊपरवाला हैरान है ये कौन कैसा नादान है जो आदमी खुद को बना बैठा भगवान है । भगवान होना है हर किसी का अजब अरमान है भीतर मगर रहता छुपा हुआ शैतान है । भगवान जिस ने दुनिया बनाई सभी का अस्तित्व बनाया इक पहचान बनाई खुद उसी को लगता है जिसे देखो मेरा नाम ओ निशां मिट्टी में मिलाना चाहता है , विश्वास पर ईश्वर के कितने सवाल खड़े हैं कौन अपने भक्तों को बचाना चाहता कोई है जो ज़िंदगी का मातम मनाने को भीड़ बुलाना चाहता है । असली का कुछ अता पता नहीं अभी तक सभी काल्पनिक भगवान से नाता बनाए हैं सबको अपनी मर्ज़ी अपनी पसंद का सामान ही नहीं भगवान भी चाहिए , ये बात समझ कर तमाम लोगों ने भगवान का बाज़ार लगाया हुआ है आजकल यही सबसे अधिक मुनाफ़े का व्यौपार है हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा । भगवान देवी देवता सब कर सकते हैं तो अपने दर्शन करने आये अनुयाईयों श्रद्धालुओं की रक्षा कैसे नहीं कर सके सवाल तो है । खुद वास्तविक भगवान लोगों को इन सभी से बचाएं इतनी प्रार्थना है ।
नमन स्वर्गीय माता जी को श्रद्धांजलि... प्यारा भजन👍....सामयिक दुखद घटना की बात करता लेख👌
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