तीसरी कसम निभाना ( अफ़साना ए सियासत ) डॉ लोक सेतिया
आपकी कसम , क्या क्या कसमें वादे लोग कहते हैं , झूठ नहीं कसम से , यहां अदालत में धार्मिक ग्रंथ पर हाथ रख कर सच बोलने की कसम खिलाई जाती है निभाई नहीं जाती अधिकांश मुकदमों में । लेकिन भारत इक लोकतंत्र है जिस में उच्चतम पद पर नियुक्ति करते समय संविधान और ईश्वर की शपथ उठवाई जाती है । कुछ कठिन कार्य नहीं पूरी निष्ठा संविधान के प्रति रखना और सभी के साथ न्याय की भावना रखना किसी से अनुराग अथवा पक्षपात नहीं करना । दो बार पहले उठाई है कसम मगर दिल पर हाथ रख कर बताना कभी याद भी आई वो शपथ , शायद ही कोई ऐतबार करेगा क्योंकि आपने हमेशा धर्म से लेकर विपक्षी दलों की ही नहीं पिछले सभी शासकों की अनुचित आलोचना करते समय किसी मर्यादा का कभी पालन नहीं किया है । देश के सभी लोगों की समानता की बात की भावना का पूर्णतय: आभाव रहा है । देशसेवा समाज की भलाई से पहले खुद को बड़ा महान और लोकप्रिय बनाने पर रात दिन एक करने को जनता का कल्याण नहीं कहते हैं । निंदक नियरे राखिए की बात आपको स्वीकार नहीं है जो आपकी बात से सहमत नहीं उसको क्या क्या नहीं घोषित किया गया बल्कि आपने अपना तथकथित आईटी सेल बनाकर विरोध करने को अपराध जैसा मानते हुए भाई को भाई से लड़वाने का कार्य किया है । आपको ये अवसर मिला है तो जो करना नहीं चाहिए था मगर आपने किया डंके की चोट पर और उस में सफल होकर अहंकार से सीना चौड़ा किया , अब उस सब का पश्चाताप और प्रयाश्चित करने पर विचार कर भूलसुधार किया जा सकता है । आपको तीसरी बार शपथ लेने पर शुभकामना देते हुए ये संदेश देश हित और समाज कल्याण की कामना से भेज रहा हूं ।
सही कहा...शपथ में जो जो बातेँ हैं... वो शासक क्या मंत्री भी नही निभाते..द्वेष की बातें करते हैं
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