जून 06, 2024

POST : 1837 क्यूं नाचे सपेरा ( विद्रूप ) डॉ लोक सेतिया

            क्यूं नाचे सपेरा ( विद्रूप ) डॉ लोक सेतिया 

सरकार हज़ूर की हालत खराब होगी कौन सपने में भी सोचता था कभी लेकिन इस कदर खराब होगी ये तो अभी भी भरोसा नहीं होता है ।  कहते हैं कि शेर कितना भी भूखा हो कभी घास नहीं खाया करता है यहां तो हाथ पसारे उनसे आसरा मांगना पड़ रहा है जिनको समझते थे भला ये भी कोई औकात रखते हैं । आपके पास जितनी भी गिनती हो किसी काम की नहीं मगर उनकी छोटी छोटी संख्या आपकी झोली को भर सकती है । सभी को शंका थी वो जिनको हज़ूर सरकार ने कभी अपने बराबर नहीं समझा आज अवसर मिला है तो हिसाब किताब बराबर करने से चूकेंगे नहीं । लेकिन कमाल है वो फिर भी बेरहम कहलाना नहीं चाहते बस इक भरम रखने को सहारा देने को राज़ी हुए हैं मगर सभी की कई कई शर्तें हैं । हैरान हुए वो ही नहीं आपके अपने भी सुनकर कबूल है कबूल है की आवाज़ बगैर जाने कि किन शर्तों की बात है । जानते हैं कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है लेकिन इक फ़िल्मी डायलॉग है कठपुतली करे भी तो क्या धागे किसी और के हाथ में हैं नाचना तो पड़ेगा ही । जिसको लोग गब्बर सिंह मानते थे बसंती बनकर नाचेगा तो ज़रूर लेकिन कब तक क्योंकि जब तक उनके इशारों पर नाचोगे सरकार चलेगी सांस चलेगी हज़ूर के आशिक़ की जब भी पांव रुके खेल खत्म । कोई रोकने वाला भी नहीं बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना क्योंकि ज़माना बदल चुका है जान अपनी सब को बचानी है । ये असली घटना भी कोई काल्पनिक कहानी है , प्यास बुझाने को सिर्फ चुल्लू भर पानी है ।  आरज़ू थी जिनको सभी खुदा समझते वो तो खुद परस्तार निकले भी तो किस किस के जो अपना खुदा कितनी बार बदलते रहते हैं । चाहने वाले निराश हैं हैरान परेशान हैं कि उन्होंने जिस की ईबादत की उम्र भर अब पता चला वो तो रास्ते का कोई पत्थर था जिसे भगवान बना लिया नादानी से । नाख़ुदा को खुदा कहा है तो फिर डूब जाओ खुदा खुदा न करो , मेरे दुःख की कोई दवा न करो । 
 
आप को भी याद होगा गाइड फिल्म बनी थी जिस में नायक जाली हस्ताक्षर कर बैंक से पैसे निकालने के अपराध में सज़ा की अवधि समाप्त होने पर यूं भी चलता जाता है बिना किसी मंज़िल का पता जाने । संक्षेप में कहानी यह है कि सभी को रास्ता दिखाने वाला गाइड अपनी राह भूल जाता है । नायिका एक विवाहिता है जो अपने पति के बंधनों में जकड़ी हुई है और नायक से लगाव से वो सारे बंधन तोड़ कर नाचने लगती है जो उसकी तमन्ना थी पूरी हो जाती है । एक गांव जहां पानी की कमी है सूखा पड़ा हुआ है वह वहीं रात बिताने को खुले आकाश में सो रहा होता है और कोई साधु अपनी चादर उस पर डाल कर चला जाता है ताकि उसे ठंड नहीं लगे खुले में सोते हुए । गांव वाले उसे मसीहा समझने लगते है और कुछ ऐसा घटित होता रहता है कि वहां के पंडित ज्ञानी सभी उस की चतुराई की बातें के सामने हार मान लेते हैं । लेकिन समस्या वहां की जनता के अंधविश्वास की है और लोग सोचते हैं कि वो बरसात करवा सकता है और इत्तेफाक से एक दिन बारिश हो जाती है । गांव के लोग ही नहीं दूर दराज तक के लोग उसे कोई महान महात्मा समझने लगते है और उस की पूजा करने लगते हैं । अपनी प्रेमिका और अपनी मां को छोड़ कर दुनिया की अपनी ज़िंदगी की वास्तविकता से भागने वाला एक मसीहा कहलाने लगता है ये देख वो महिलाएं बिना किसी को वास्तविकता से अवगत कराए लौट जाती हैं । फिल्म का गीत मुसाफ़िर तू जाएगा कहां में एक पंक्ति है जो क़माल की बात कहती है ‌‌। क्यों नाचे सपेरा । 

कहानी का सार इतना सा है कि जब जो लोग ख़ूबसूरत सपनों में मग्न होकर खुश रहते हैं तब उनको कभी सच्चाई दिखाई भी देती है तो वो जागना नहीं चाहते नींद नहीं भी आए तब भी जागते हुए भी ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकल नहीं पाते हैं । शायर का ख़्वाब हो , चौदवीं का चांद हो या आफ़ताब हो , जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो । 

 
जब शकील बदायूंनी ने लिखा- चौदहवीं का चांद... कहीं दीप जले कहीं दिल -  Shakeel badayuni birth anniversary best hindi song gazal afsana likh rahi  hoon - News18 हिंदी

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