जून 28, 2024

POST : 1851 चलती का नाम गाड़ी ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

        चलती का नाम गाड़ी ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

सरकारी गाड़ी है , ढोती सवारी है , सफ़र लंबा है अधूरी तैयारी है , उस पर किस की कैसी गारंटी साफ़ बता दिया गया है अपने जान और सामान की रखवाली खुद करनी है । बड़े साफ शब्दों में चेतावनी भी है बगैर टिकट पकड़े जाने पर जुर्माना या सज़ा अथवा दोनों झेलनी पड़ सकती हैं । चालक प्रशिक्षण पर है ऐसा सामने पीछे घोषित किया हुआ है संभल संभल कर धीरे धीरे चलना है मुश्किल ये है कि निर्धारित समय तक नहीं मिली मंज़िल तो मुसीबत वापसी को कोई साधन नहीं मिलेगा । आप उनके भीतर का डर कभी नहीं समझ सकते ये बस वही जानते है इस गाड़ी की हालत कैसी है किसी का भरोसा नहीं कौन कब किस जगह साथ छोड़ दे । इंजन से लेकर पहिये तक कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा जैसी हालत है तभी अपना भय मिटाने को उस की कमियां ढूंढ रहे हैं जो अवसर मिलते ही ब्रेक लगते ही उनसे आगे बढ़कर मंज़िल पर कदम रख सकती है । कोई सवारी उतर कर उनकी सवारी में चढ़ जाए तो कयामत से पहले कयामत आ जाएगी । टैंकी भी मिलावटी तेल से भरी हुई है कब धोखा दे जाए नहीं मालूम विवशता है तेल भरवाना भी उन्हीं से ज़रूरी था जिन से लेन देन चलता है । गलती से उस पर आरोप लगा बैठे थे कि उनका टैम्पो किसी और को कितना देता देखा है । कारोबारी लोग भरोसे के काबिल नहीं होते हैं बदलते समय को देख धारा जिस तरफ जाती लगती है उधर रुख मोड़ लेते हैं । संकट से भगवान राम को भी हनुमान जी बचाते हैं हमने इस का ध्यान नहीं रखा लोग सफ़र करते हुए जगह जगह हनुमान जी का नाम जपते हैं । हनुमान चालीसा याद नहीं और कोई मंत्र मुश्किल में कष्ट से मुक्ति देता नहीं है सबको अपना मंत्र देते देते भूल गए मंत्र सही और शुद्ध उच्चारण से पढ़ना ज़रूरी है । एमरजेंसी में कोई नहीं जानता क्या क्या ज़रूरत आन पड़ती है शायद तभी उसकी याद सता रही है , गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है , चलना ही ज़िंदगी है चलती ही जा रही है । 
 
दोस्त मुसीबत में काम आते हैं लेकिन उनकी मुश्किल यही है कि दोस्ती वाला सबक उनको कभी अच्छा ही नहीं लगता उनको दुश्मनी ही आती है । ऐसे ऐसे लोग खु.द अपनी गाड़ी में बिठाए हैं जिन का कोई भरोसा ही नहीं कब गर्दन पकड़ कर गाड़ी को किसी खाई में गिरते देख छलांग लगा अपनी जान बचा चलती गाड़ी का क्या हाल कर देंगे । खिड़की दरवाज़ा सब को बंद किया है ताज़ी हवा का झौंका भीतर नहीं आ सकता सब का दम घुटता है पर बंधन जकड़े हुए हैं हिलना डुलना मना है । सफर सुहाना है कहने को लेकिन अजब कदम कदम यातना है , रोना बेकार हैं हंसना भी मना है । रास्ते में कोई नहीं जानता किस किस जगह कोई कमज़ोर पुल बना है जिस से गुज़रना है जीना नहीं मरना है , कुछ भी नहीं करना बंद आंखें कर किस्मत से बचना है । 
पहाड़ों पर चढ़ाई करनी है मौसम से लड़ाई करनी है फिसलन भरी पत्थरीली सड़क है राम दुहाई है । इंजन पुराना है बदलना नहीं है इतिहास रचाना है दूर की कौड़ी खोज लाये हैं दो इंजन और जोड़ कर रफ़्तार बढ़ाये हैं छैंया छैयां झूमे नाचे गाये हैं दुश्मन जां के खुद गले लगाए हैं ।  खिज़ा का मौसम है आया मौसम ए बहार नहीं सरकार क्या नेता क्या करता कोई भी किसी पर ऐतबार नहीं , कल जाने क्या हो इस पर दुनिया का भी इख़्तियार नहीं । बीच भंवर हैं सभी कोई इस पार नहीं उस पार नहीं ।
 
कोई पीछे छूट जाए , कोई राह से भटकाए , लंबे बड़े हैं शाम के ढलते साये , सब लोग वही हैं हमको जब भी नहीं भाये जी भर कर हमने सताए । कहते हैं लोग सुबह का भूला शाम को घर लौट आये वो भूला नहीं कहलाये । आपने मीत सभी हमेशा थे भुलाये जब ख़ुद भंवर में पहुंचे हाथ पकड़ नाख़ुदा को मना लाये , उस दिल से निकली हाय अपने हुए पराये फिर भी हैं काम आये । ये कारवां है नौटंकी का तमाशा हर शहर दिखाना है ख़ाली पेट जनता को सपनों से बहलाना है , रुपया क्या है कीमत चार आना है परिंदों की खातिर इक जाल बिछाना है । चिड़िया को खबर है दाना खिलाने का बहाना है ये नया ज़माना है तेरा जाल पुराना है , दुनिया ने देखा है समझा है ये जाना है सभी मुसाफ़िर हैं चार दिन ठिकाना है । बाबू समझो इशारे हौरन पुकारे पम पम पम , यहां चलती को गाड़ी कहते हैं प्यारे पम पम पम ।  
 
 तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ…दुष्यंत कुमार – पवन  Belala Says❣
 
 
 

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