मई 09, 2024

POST : 1815 लोकतंत्र हाज़िर हो ( खरी खरी ) डॉ लोक सेतिया

       लोकतंत्र हाज़िर हो ( खरी खरी ) डॉ लोक सेतिया

 
 इसको लोकतंत्र नहीं कहते हैं , किसी शासक को समझ आ गया हो कि उसने अपने देश अथवा राज्य अथवा जिस भी क्षेत्र से कोई निर्वाचित हुआ हो वहां की जनता का भरोसा उस पर नहीं रहा है फिर भी वो सत्ता या पद या सदस्यता पर बने रहना चाहता है । अल्पमत साबित होने का इंतज़ार करना सत्ता की भूख का प्रमाण है , और ऐसे में बहुमत जुटाने को साम दाम दंड भेद अपना कर विरोधी नेताओं को अपनी तरफ लाना नैतिकता को छोड़ किसी भी तरह कुर्सी पर बने रहना लोकलाज को भुलाना है । लोकलाज और शर्मो हया का त्याग करना आपको निम्न स्तर की राजनीति करने पर विवश कर लोकतंत्र की हत्या कर देने का अपराध करवाता है । बिना सोचे विचारे किसी भी नेता को अपने दल में शामिल करना भले उसकी कोई विचारधारा नहीं हो और वो आपराधिक छवि का बदनाम व्यक्ति हो ये प्रमाणित करता है कि आपको देश समाज की कोई चिंता नहीं और सत्ता की खातिर आप किसी भी हद तक समझौता कर सकते हैं ।  तलाश लोकतंत्र की और दर्शन दो लोकतंत्र शीर्षक से दो पोस्ट 2014 जनवरी में पब्लिश की गई हैं ये उस श्रेणी का नवीनतम अध्याय है । आप इसको इक जनहित याचिका समझ सकते हैं देश की जनता का भरोसा डगमगा रहा है उसे महसूस होने लगा है कि स्वर्ग और नर्क की तरह संविधान में वर्णित लोकतंत्र भी इक सुंदर कल्पना मात्र है अभी तक उसने खुद को जीवंत साबित नहीं किया है । अदालत वकील दलील सबूत सभी कुछ ख़ास लोगों की कैद में बंद हैं जनता उन तक कभी नहीं पहुंच पाती है । हर कोई वास्तविक लोकतंत्र को देखना महसूस करना चाहता है मगर कौन उस का पता ठिकाना बताए कहीं कोई उस की सुनवाई करने वाला नहीं है । 
 
ये अदालत भी ऊपरवाले की अदालत की तरह है जो सुनवाई कर सकती है समझ भी सकती है लेकिन कोई निर्णय नहीं कर सकती है क्योंकि उस के पास फैसला लागू करने की कोई व्यवस्था नहीं है और जिन्होंने देश के लोकतंत्र का हरण कर अपनी किसी तथकथित अशोक वाटिका में सीता की तरह बंधक बनाया हुआ है वो रावण से अधिक हठी और अहंकारी हैं । उन सभी को कोई अदालत दंडित नहीं कर पाई कभी भी वो सभी गुनहगार रंगे हाथ पकड़े जाने के बावजूद बेगुनाह साबित होते रहे हैं । अदालत की आंखों पर काले रंग की इक पट्टी बंधी है जिस में सब दिखाई देता है जैसा अदालत और न्याय व्यवस्था देखना चाहती है । अदालत के हाथ इक कोड़ा है अवमानना का दोष बता कर किसी को भी खामोश रखा जा सकता है । किसी सिरफिरे ने मुक़दमा दायर किया है उसको लोकतंत्र से खतरा है उसके जीने के अधिकार का सवाल है इसलिए विवश होकर अदालत ने आदेश जारी किया है लोकतंत्र जहां कहीं भी हो उसे अदालत में हाज़िर होना होगा । 
 
लोकतंत्र को धनवान लोगों राजनेताओं और गुंडों लुटेरों ने अपनी आलिशान अटालिकाओं में छुपा कर रखा हुआ था और उसको समझाया गया था तुम यहीं पर सुरक्षित हो । आजकल रईस अमीर लोग किसी पेड़ को घर के आंगन में गमले में बोनसाई बना रखते हैं जो सिर्फ उन्हीं के लिए फलदाई होता है , शायद देश का लोकतंत्र भी कुछ लोगों ने बौना बनाकर सत्ता की हवेली की सजावट की वस्तु बना दिया है । अदालती फरमान से सभी अधिकारी कर्मचारी उस को ढूंढने लगे हैं ये पता चलते ही राजनेताओं साहूकारों को डर सताने लगा है क्योंकि उन्होंने सिर्फ लोकतंत्र का अपहरण ही नहीं किया बल्कि उसको जीते जी मृत बनाने का भी अपराध किया है । सरकार देश की राज्यों की घबरा गई हैं उनका अस्तित्व खतरे में है जब लोकतंत्र ही नहीं बचा तो उनका होना संविधान के अनुसार नहीं माना जा सकता है । बचाव को सभी सरकारी वकील कितने ही नकली झूठे बनावटी लोकतंत्र अपनी गवाही देने को अदालत में लाये हैं , असली कोई भी नहीं लेकिन सभी अपने अपने नकली को असली बता अदालत को गुमराह कर रहे हैं । अदालत ने अंतरिम आदेश जारी किया है उन सभी को पुलिस और प्रशासन की हिरासत में रखने को तब तक जब तक असली वाला लोकतंत्र सामने आकर खुद को प्रमाणित नहीं करता है । 
 
वास्तविक लोकतंत्र अभी भी ज़िंदा है किसी गांव की झौपड़ी में किसी तरह उन सब से खुद को बचाए हुए है उसको अभी भी उम्मीद है कि शायद कभी कोई गांधी जैसा व्यक्ति अंग्रेज़ों की हुक़ूमत की तरह इन सभी ताकतवर और धनवान लोगों से उसको सुरक्षित करवाएगा । ये सत्ता और दौलत के पुजारी भीतर से डरपोक हैं अपनी कायरता को कितने मुखौटे पहनाते रहते हैं । कोई चैनल खबर दिखा रहा है कि उस ने असली लोकतंत्र का साक्षात्कार लिया है जिस में उस ने अपनी दर्द भरी दास्तां बताई है । लेकिन अचानक इक अफ़वाह सुनाई दी है कि सभी राजनीतिक दलों अधिकारीयों और बड़ी बड़ी संस्थाओं पर आसीन लोगों ने उस तथाकथित असली लोकतंत्र की सुपारी किसी क़ातिल को दे दी है । अचानक उस गांव की झौपड़ी को आग ने जलाकर राख कर दिया है लेकिन जांच करने पर कोई लाश नहीं बरामद हुई है । क्या लोकतंत्र को अपनी हत्या की आशंका पहले से थी जो वो भाग गया है जान बचाकर सरकार ने इक जांच आयोग गठित किया है जो कुछ महीने बाद अपनी रिपोर्ट देगा ये बताने को लोकतंत्र का सच क्या है । जितने नकली बनावटी लोकतंत्र अदालत में पेश हुए थे उनकी ज़मानत हो गई है लेकिन खबर है कि वो सभी देश से भाग गए हैं । 
 
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1 टिप्पणी:

  1. Bahut shanadar...नकली लोकतंत्र हाजिर हुए...असली के आने तक सबको जेल में डालना...👌👍👍

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