मई 15, 2024

POST : 1819 बहुत देर लग गई समझने में ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   बहुत देर लग गई समझने में ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

       (  चलते चलते ,        चलते चलते ,        चलते चलते ,    चलते चलते  .... )

जनता भोली है कहां समझती है सियासत की उल्टी सीधी चालों को , अभी भी कुछ लोगों को यकीन नहीं हो रहा जनाब भी ऐसे निकले । कभी सुनते थे इक कहावत बड़े बज़ुर्ग बताते थे कि औरत शादी के कुछ ही महीने बाद जान जाती है कौन कैसा उल्लू उसके पल्लू से बंधा है । बस साल भर होते होते हर पत्नी अपने पति को बदलने को कोई कोर कसर नहीं छोड़ती , लेकिन पुरुष जीवन भर कोशिश करते करते थक कर हार जाता है किसी भी नारी को समझना संभव ही नहीं है पुरष कभी पत्नी को बदलने को नहीं सोचता है जो मिल गया मुक़्क़दर समझ लिया । शासक भी किसी पहेली से कम नहीं होते हैं जनता हमेशा पहचानने में धोखा खाती रहती है । लेकिन पांच साल बाद भी कोई अपनी वास्तविक सूरत जनता से छिपाए रखने में सफल हो फिर से झांसे में रख सके आजकल ये आसान नहीं है । काठ की हांडी दो बार चढ़ाना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है । बस अब पासा उलटा पड़ गया है लोग उनकी हर बात को हंसी में उड़ाने लगे हैं जनाब को दिन में तारे नज़र आने लगे हैं ।  किसी दार्शनिक ने गहन शोध किया इस को समझने को कि महिलाओं को पुरुष को समझने में आसानी होती किस कारण है । ये भी कोई राज़ की बात नहीं है मगर शायद किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि कौन सी पाठशाला है जिस में ये शिक्षा मिलती है । आखिर पता चला कि सभी महिलाएं जब भी कहीं मिल बैठती हैं घर गली शहर से देश दुनिया की जानकारी आदान प्रदान करती हैं वो भी नमक मसाला लगाकर । आप चाहे कुछ भी नाम दे लो वास्तव में उनकी बातचीत किसी कथा कहानी से भी बढ़कर ऐसा ज्ञान देती है जो भविष्य का निर्माण कर सकता है , इस विषय पर इतना ही अब असली बात सत्ता की सियासत को समझने की करते हैं । अर्थात जिन बातों को हमने कभी महत्व नहीं दिया उन से सीख कर किसी ने देश की जनता को रात को दिन दिन को रात समझने पर सहमत कर अपना खोटा सिक्का चलाया दो दो बार । 
 
 आपने सुना होगा दर दर से खैरात मांगना भिक्षुक को कितना अनुभवी बना देता है , कितने साल जिस ने यही पढ़ाई की हो उसकी समझदारी चतुराई और अपना जादू चलाने की कला कितनी विलक्षण हो सकती है । घर घर की महिलाओं से हलवा पूरी खाना बड़े बड़े साधु संत महात्मा भी कभी मार खा जाते हैं लेकिन जिस ने जीवन भर बिना कोई काम धंधा किए खाना ही नहीं बल्कि सिर्फ अपनी पसंद का ही खाना है ऐसा संकल्प लिया हो वो क्या नहीं कर सकता । बस लगातार शासक बने रहने को यही उनका गुरु मंत्र उनके आराध्य देव ने समझाया था । उनका मंत्र उनके ही नहीं उन सभी के भी बड़े काम आया था जिन्होंने उनको अपना देवता भगवान मसीहा समझ रात दिन उनका गुणगान सुनाया था और उन तक ये समाचार पहुंचाया था । जिनकी औकात नहीं थी उन्होंने भी परमपद पाया था । कोई माने चाहे नहीं माने उनकी पत्नी को बहुत पहले समझ आ गया होगा कि उसका साथ नहीं छोड़ जाना ही सही निर्णय है । आपको भी उनसे मोह त्याग देना चाहिए कब तक वो दर्द सहोगे जो दर्द नहीं था न दवा था बस इक ज़हर था मीठा पी लिया तो ऐसा हुआ कि ज़िंदा रह कर भी कभी जिये ही नहीं । कुछ नहीं करते हुए बहुत कुछ करने का भरम कायम रखना हर किसी को ये कला नहीं आती है । 
 
कयामत की घड़ी होती है जब सांस चुनावी नतीजों में अड़ी होती है , हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है , बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा - वर पैदा । अल्लामा इक़बाल का शेर है आपने पाक़ीज़ा फ़िल्म में शुरुआत ही में सुना तो होगा । पाक़ीज़ा की पाक़ीज़गी की तरह उनके चाहने वालों को उन जैसा कभी कोई नज़र आया नहीं और न कभी कोई आएगा उम्र भर , दिल आने की यही निशानी है । कहते हैं हम आपसे हैं ज़िंदगी आपकी है मौत भी दो तो भी आपकी मेहरबानी है । इक्कीसवी सदी के इश्क़ की बस यही इक कहानी है अगर उनके चेहरे पर शिकन आती है तो मर जाती उनके चाहने वालों की नानी है । उनको जा के समझाना खुद अपनी नादानी है , जनता भी हंस जैसी है जब कोहरा छटता है सब दिखाई देता है और कर देती दूध का दूध , पानी का पानी है । अंधकार की सीमा होती है लेकिन इक दिया जलता है तो रौशनी दूर दूर तलक अंधेरे को ख़त्म कर देती है । फिर सुबह होगी , नया ज़माना आएगा कोई आशा की किरण जगाएगा वक़्त बदलेगा नया दौर वापस लाएगा । आप भी पाक़ीज़ा फ़िल्म का गीत गाएं , यूं ही कोई मिल गया था सरे राह चलते चलते ।
 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया सामयिक लेख...👌👍

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 18 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. पैदा हो गया क्या कम है ? :) नामकरण जन्मदिन सब मानेगा |

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