अप्रैल 24, 2024

POST : 1806 इस क़दर किरदार बौना हो गया है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '

 इस क़दर किरदार बौना हो गया है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा ' 

इस क़दर किरदार बौना हो गया है
आस्मां , जैसे      बिछौना हो गया है ।
 
घर बनाया था कभी शीशे का तुमने 
किस तरह , टूटा खिलौना हो गया है । 
 
मथ रहे पानी मिले क्या छाछ मख़्खन 
शख़्स  , पानी में चलौना ,  हो गया है ।
 
है निराला  , आज का , दस्तूर भाई 
बिन बियाहे सब का गौना हो गया है । 
 
छान कर सब पीस कर कितना संवारा 
फिर हुआ क्या सब इकौना हो गया है । 
 
पी गया कितने ही दरिया को वो सागर 
था उछलता , और  , पौना हो गया है ।
 
ख़ूबसूरत था जहां ' तनहा ' हमारा 
हर नज़ारा अब , घिनौना हो गया है ।    



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