इस क़दर किरदार बौना हो गया है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ' तनहा '
इस क़दर किरदार बौना हो गया है
आस्मां , जैसे बिछौना हो गया है ।
घर बनाया था कभी शीशे का तुमने
किस तरह , टूटा खिलौना हो गया है ।
मथ रहे पानी मिले क्या छाछ मख़्खन
शख़्स , पानी में चलौना , हो गया है ।
है निराला , आज का , दस्तूर भाई
बिन बियाहे सब का गौना हो गया है ।
छान कर सब पीस कर कितना संवारा
फिर हुआ क्या सब इकौना हो गया है ।
पी गया कितने ही दरिया को वो सागर
था उछलता , और , पौना हो गया है ।
ख़ूबसूरत था जहां ' तनहा ' हमारा
हर नज़ारा अब , घिनौना हो गया है ।
Bahut khoob sir bdhiya ghzl
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