जनवरी 27, 2024

संविधान लोकतंत्र का भगवान ( वास्तविक ज्ञान ) डॉ लोक सेतिया

  संविधान लोकतंत्र का भगवान ( वास्तविक ज्ञान ) डॉ लोक सेतिया 

पढ़ते थे ,सुनते थे , ईश्वर मिलता है मुश्किल से तलाश करने से जबकि वो सामने रहता है बस हम ही समझ नहीं पाते हैं । जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ , मैं बपुरा डूबन डरा रहा किनारे बैठ । कुछ ऐसे ही मुझे गहराई से चिंतन मनन करने पर असली भगवान की पहचान मालूम हो गई है । अभी तक हम इधर उधर भटकते फिरते थे कोई ईश्वर मिले जो हमको सही और गलत का अंतर समझाए और हमारी सभी चिंताओं परेशानियों समस्याओं का कोई समाधान सुझाए । जाने कितने भगवान खुदा ईश्वर वाहेगुरु कितने पीर पय्यमबर कितने अवतार कितने पंडित ज्ञानी कितने मौलवी कितने पादरी हम को बतलाते रहे और सभी का कहना था उनकी शरण में आओ सब कुछ पाओ हर कष्ट चिंता से मुक्त हो जाओगे । दुनिया का हर इंसान मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे हज़ारों तीर्थ स्थल पूजा पथ आरती धार्मिक अनुष्ठान सब करते रहे मगर मिला कुछ नहीं सिर्फ झूठी उम्मीद और अंतहीन निराशा ही मिली । सभी समझते हैं मानते हैं वो एक ही है तो फिर ये तमाम अलग अलग नाम से इंसानों को अलग अलग बांटता क्यों है कोई तो हो जो सभी प्राणियों को एक समान मानता हो समझता हो अपनाता भी हो । 
 
बगल में छोरा गांव में ढिंढोरा यही हुआ , संविधान है देश का जिसे खुद हमने बनाया अथवा हमारे बड़े और महान जानकर लोगों ने मिलकर अथक मेहनत सोच विचार कर देश को अर्पित किया सभी देशवासियों ने अपनाया और जनता ही देश की विधाता है जनतंत्र की भावना ही सभी का कल्याण कर सकती है इतना आसान और उचित मार्ग प्रशस्त किया 26 जनवरी 1950 से प्रभावी है । हमारी भूल है जो हमने उस वास्तविक ग्रंथ का महत्व समझा नहीं , जानते तक नहीं और सच कहा जाए तो हमने उस पर भरोसा करना ही छोड़ दिया । अगर हम अपने वास्तविक रक्षक और मार्गदर्शक संविधान की बातों को समझते पालन करते तो , जो भी लोग हमको अपने अपने स्वार्थ सिद्ध करने को आपस में विभाजित करते हैं उनको ऐसा कभी करने ही नहीं देते । कितनी विडंबना की और खेद की बात है कि हमने ऐसे लोगों को अपना आदर्श बना लिया और उनके पीछे पीछे गलत राह पर चलने लगे , जिनको देश समाज जनता और संविधान की नहीं चिंता थी तो बस किसी भी ढंग से सत्तारूढ़ होकर मनमानी करने की । हैरानी है कि राजनैतिक दल या किसी संगठन या कोई धर्म का चोला धारण कर उन्होंने जिस संविधान ने उनको अधिकार दिए उसी के चीथड़े करने को लग गए हैं ।  आज हमारा संविधान मसला कुचला और बेबस कर दिया गया है मगर जिनको संविधान की सच्ची भावना को सुरक्षित रखना था वो सभी अपनी आंखों पर स्वार्थ की पट्टी बांध कर ख़ामोशी से लोकतंत्र का जनाज़ा उठते देख रहे हैं । समर शेष है , नहीं पाप का भागी केवल व्याध ,  जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध । कवि रामधारी सिंह दिनकर जी कहते हैं । 

घबराओ मत जिनसे कभी कुछ भी नहीं मिला उन को रहने दो उनको , अपने हाल पर । कोई गिला शिकवा करना कोई हाथ जोड़ना झोली फैलाना ज़रूरी नहीं है वास्तविक सभी कुछ मिल सकता है जिस से बस उस संविधान का महत्व समझ कर अपनी सोच को सही दिशा दे कर उसे समझ कर जो भी उस को क्षति पहुंचाते हैं उनको सबक सिखाना शुरू करना है । अपनी शक्ति को पहचान लेना ज़रूरी है ये जितने भी शासक हैं उनकी कोई ताकत नहीं असली ताकत खुद जनता आप है , राजनेताओं की अधिकारी वर्ग की कितनी बड़ी संस्था या धनबल की संसाधनों की पूंजी किसी काम नहीं आएगी जब जनमत एक होकर खड़ा होगा और अपने लिए समानता और न्याय पाने को निडर होकर आवाज़ उठाएगा । संविधान को समझो जानो और पहचानो फिर किसी से कोई भीख नहीं बल्कि खुद अपने अधिकार हासिल कर सकते हैं । हम भारतवासी हैं यही हमारी वास्तविक पहचान है , हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई या कोई भी धर्म हमको अलग नहीं कर सकता न ही विभाजित कर सकता है , और संविधान के रहते किसी भगवान ईश्वर खुदा वाहेगुरु यीशु की कोई आवश्यकता नहीं है ।  
 
मेरी बात पढ़ कर इक मित्र जो खुद को नास्तिक कहता है ने सवाल किया कि संविधान को भगवान कहने की क्या आवश्यकता थी । अब थोड़ा और चिंतन करने की ज़रूरत है , ज़रा कड़वी बात है लेकिन सच है कि शायद ही कोई भी मंदिर मस्जिद इतने स्वच्छ दिमाग़ और सोच ही नहीं जनकल्याण की ईमानदार भावना से कहीं भी बनाया गया होगा । सभी धर्मों के धार्मिक स्थल बनाए जाते हैं उनकी कथाएं कहानियां सुनाई जाती हैं लोगों को आकर्षित करने प्रभावित करने का मकसद पहले निर्धारित करने के उपरान्त । इतना ही नहीं उनको बनाने में आचरण और साधन भी शुद्ध एवं पावन हों इस का भी ध्यान नहीं रखा जाता है , अक्सर मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे अवैध निर्माण या किसी भी ढंग से अनुचित कमाई करने वालों से दान या अन्य सहयोग प्राप्त कर बनवाने से परहेज़ नहीं किया जाता बल्कि झगड़े और मनमुटाव की बुनियाद की बात होती हैं । लेकिन संविधान का स्वरूप बनाने में न केवल कोई टकराव की मानसिकता थी न ही किसी का कोई स्वार्थ ही बहुत ही खुले मन से विचारों का आदान प्रदान करते हुए और अन्य तमाम देशों के संविधान को पढ़ कर समझ कर इक ऐसे संविधान को आकार दिया गया जो सिर्फ राजनीतिक आज़ादी की नहीं सामाजिक समानता और सभी की आर्थिक समानता को महत्व देता हो । करीब तीन साल तक चली संविधान सभा की करवाई को कोई भी पढ़ कर समझ सकता है कि उन सभी की मंशा कितनी अच्छी और सभी की हित पर केंद्रित थी । सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात थी उसे किसी सरकार या संस्था संघठन ने नहीं बल्कि देश की जनता ने खुद ही समर्पित एवं अपनाया था । कहीं ऐसी दूसरी कोई मिसाल नहीं है बल्कि हर कोई अपना नाम शिलालेख लगवाना और श्रेय लेने को व्याकुल दिखाई देता है ।  
 
अंत में बहुत से संक्षेप में बात करते हैं , भगवान की परिकल्पना इंसान ने जब भी की थी तो यही कारण था कि हर व्यक्ति जब अकेला होता है ज़िंदगी की कठिन दशा में तब चाहता है कोई उसका साथ खड़ा हो । देश का संविधान उस आवश्यकता को पूर्ण करता है चाहे किसी भी विचारधारा से हो या किसी भी आर्थिक सामाजिक परिवेश से । छोटा बड़ा ऊंच नीच का किसी तरह का भेदभाव किसी से नहीं और शासक कभी खुद को संविधान से ऊपर समझने लगते हैं उनको भी देश का संविधान आकाश से पाताल पहुंचाता रहा है ।
 

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. संविधान की बात नही बस भगवान और धर्म की बात करा लो संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से...बढ़िया आलेख

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  2. पहले भी पढा है बहुत अच्छा लेख हैं

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