ना वो समझे हैं ना समझेंगे ( पत्नी व्यथा कथा ) डॉ लोक सेतिया
अध्याय - 2
आप ने पहला अध्याय पढ़ लिया लेकिन आपको पूरी तरह से ईश्वर की पत्नी की उलझन समझ नहीं आई होगी अत : आपको विवाद की शुरुआत से बतलाना उचित होगा । ईश्वर की पत्नी इक आधुनिक महिला की भक्ति आराधना से बेहद प्रभावित थी क्योंकि वो नारी पूजा अर्चना करते हुए बहुत ही मधुर स्वर में गायन और शानदार नृत्य किया करती थी । धरती से उस लोक में आने पर प्रभु से उनकी पत्नी ने उस महिला को मांग लिया था ताकि घर में अधिकांश समय अकेली होने पर कोई दिल को लुभावनी बातें करने को साथ हो तो बोरियत उकताहट नीरसता महसूस नहीं हो । उस आधुनिक महिला ने पृथ्वी लोक की तरह सभी देवियों की इक किट्टी पार्टी की शुरुआत करवा दी थी जिस में सभी मिलकर अपने मनोरंजन के लिए संगीत आदि का आनंद लिया करती । धीरे धीरे आपसी वार्तालाप होना शुरू हुआ और सभी को एहसास होने लगा कि सब मिलने पर भी उनको वास्तविक ख़ुशी अनुभव नहीं होती थी , उनका जीवन उबाऊ औपचरिकताओं से भरा आनंद का अनुभव नहीं होने देता था । धरती से पधारी महिला ने उन सभी को सुख का सागर दिखला आचंभित कर दिया था । उस ने बतलाया था कि विवाह करते ही हम पति-पत्नी अलग आवास में बाकी परिवार से अलग आज़ादी से रहते थे , कोई सास ननद का झगड़ा न भाई भतीजे की चिंता हर कोई अपने जीवन साथी संग रहते बच्चे भी पढ़ लिख कर अपनी मर्ज़ी से शादी करते अपना अलग बसेरा बना लेते थे । आजकल कोई भी रिश्तेदार किसी से कोई मेल जोल नहीं रखता है सिर्फ ख़ास अवसर पर ख़ुशी या ग़म की घड़ी में दिखावे का अपनापन होता है वास्तव में किसी को किसी से कोई सरोकार नहीं होता है । सभी देवियों को तब पता चला कि भगवान की बनाई दुनिया कितनी बदल चुकी है अब कोई अपना पराया नहीं बस सभी मतलब पड़ने पर ज़रूरत होने पर अपनत्व जताते हैं । सबसे हैरानी की बात थी कि अब दुनिया समझदार हो गई है जब जैसा प्रतीत होता है भगवान से संबंध रखते हैं , कब किस भगवान किस देवी देवता से क्या हासिल हो सकता है इसका गणित लगाते हैं । भगवान और धर्म केवल बड़े कारोबार ही नहीं बल्कि राजनीति की शतरंज के मोहरे भी बन गए हैं । आदमी पुरातन कथाओं से आगे बढ़ कर आधुनिक काल की अपनी कथाएं गढ़ रहे हैं जिस में सफल लोग नाम शोहरत पाकर भगवान से अधिक प्रिय लगने लगे हैं । धरती पर कितने भगवान साक्षात दर्शन देते दिखाई देते हैं । आप सभी मात्र कहने को ईश्वर देवी देवता हैं आदमी को जो भी चाहिए आप से नहीं उनके अपने बनाये भगवानों से मिलता है ।
बस इक दिन ज्वालामुखी फटना ही था पत्नी ने अपने पति परमेश्वर प्रभु से वरदान मांगा सिर्फ एक दूजे का बनकर रहने का । भगवान ने समझाना चाहा कि वो सभी के अपने हैं और सभी भले बुरे इंसानों से उनका नाता हमेशा से है और कभी ख़त्म नहीं हो सकता है । जैसा हर धर्मपत्नी समझाती है ईश्वर को उनकी पत्नी ने समझाया अपनी इस सोच से मुक्ति पाओ अब दुनिया में कोई पहले जैसा आपका भक़्त नहीं है । भक़्त शब्द को बदनाम कर दिया गया है आपको कैसे समझाया जाये कि समय बदलता है तो शब्दों के मतलब भी बदलते रहते हैं । भगवान सोचते हैं कि किसी तरह किट्टी पार्टी जैसी आधुनिक सभ्यता से पीछा छुड़ा लिया जाए लेकिन जानते हैं नारी को कुछ भी देना सरल है मगर वापस लेना संभव नहीं है । हर महीने किट्टी पार्टी आयोजित होती है और ईश्वर को इक नई तरक़ीब खोजनी पड़ती है अपनी पत्नी जी की उदासी को दूर करने को लेकिन ऐसा आखिर कब तक चलेगा । किश्तों में कीमत चुकाते चुकाते हर पति कभी न कभी थक जाता है ।
( लिखने को इस कथा का कोई अंत नहीं है विस्तार से लिखना मुश्किल और पढ़ना दुश्वार लगता है । )
शानदार आलेख....उस लोक से इस लोक की पोल खोलता लेख...
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