अक्टूबर 28, 2023

दफ़्न आवाज़ रूह की कर गया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

    दफ़्न आवाज़ रूह की कर गया ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

दफ़्न आवाज़ रूह की कर गया 
रह के ज़िंदा भी शख़्स इक मर गया । 
 
उस के वादे नहीं कभी सच हुए 
डूबे सब लोग बस वही तर गया । 
 
उसको कोई भी रोक पाया नहीं 
वो कुचलता हरेक का घर गया । 
 
है मसीहा नहीं न वो चारागर 
ज़ख़्म गहरे ही कर के ख़ंजर गया । 
 
आप समझो ज़रा सियासत है क्या 
साथ रहजन के मिल वो रहबर गया । 
 
पूछ मत जुर्म कौन करता यहां 
किस का इल्ज़ाम किस के सर पर गया । 
 
जब भी ' तनहा ' नकाब उठने लगी
हुक्मरानों का दिल बड़ा डर गया ।   
 
    (   2001 की डायरी से हास्य कविता से ग़ज़ल बन गई है ।  )
 

 

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