सितंबर 07, 2023

आज का सोशल मीडिया ज्ञान ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

 आज का सोशल मीडिया ज्ञान ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया  

बात असली है , जैसे पेड़ से सेब गिरा तो न्यूटन को गुरुत्व आकर्षण की बात समझ आई , मुझे किसी ने व्हाट्सएप्प पर इक संदेश भेजा और  मैंने उस खूबसूरत काल्पनिक संदेश की बात करनी चाही तो फोन पर कॉल मिलाने पर आवाज़ सुनाई दी इस नंबर पर इनकमिंग कॉल की सुविधा नहीं है । इस इक घटना को ठीक से समझने की कोशिश की है , बहुत कारोबारी लोग यही करते हैं , अपना विज्ञापन भेजते हैं कोई उनसे संपर्क नहीं कर सकता है । हो सकता है उपरवाले को इस का खयाल पहले आया हो तभी मंदिर मस्जिद गिरजा घर गुरूद्वारे से उपरवाले का संदेश सुनते हैं सभी दुनिया वाले लेकिन लगता है सबकी प्रार्थनाएं दुआएं विनती उस तक नहीं पहुंचती है । मुझे इक दिन लगा था तभी मैंने इक कविता लिखी थी आगे की पोस्ट बाद में अभी उस कविता को पढ़ कर समझते हैं ।

      सिसकियां ( कविता ) 

वो सुनता है
हमेशा
सभी की फ़रियाद
नहीं लौटा कभी कोई
दर से उसके खाली हाथ ।

शोर बहुत था
उसकी बंदगी करने वालों का वहां
तभी शायद 
सुन पाया नहीं
आज ख़ुदा भी वहां
मेरी सिसकियों की आवाज़ ।  
 
सोशल मीडिया से मिली जानकारी सही गलत कुछ भी हो सकती है लेकिन ये इक ऐसा जाल है जिस को कोई नहीं समझ सकता है बल्कि अधिकांश खुद इस में फंसते हैं और मतलब की खातिर कोई जाल बुनते हैं दुनिया को फंसाने को । हर शख़्स ख़ुद को खिलाड़ी समझता है और हर कोई कभी न कभी किसी न किसी के बिछाए हुए जाल में फंस भी जाता है । सरकारी उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की फ़ोन कॉल मिलती है , मैं अमुक व्यक्ति बोल रहा हूं आपको अमुक अवसर की बधाई शुभकानाएं देता हूं । कभी कोई घोषणा कभी समर्थन कभी मन की बात आपको देशवासियों को सुनाई देती है लेकिन आपको आवाज़ उधर नहीं पहुंचती कभी आपको केवल सुन कर उनकी हां में हां मिलाना है । इधर इक विकल्प देते हैं किसी नंबर पर मिस कॉल कर सकते हैं और आप उनकी हर बात से सहमत समझे जाते हैं । 
 
हमारे समाज में अजीब अजीब बातें होती हैं कुछ लोग आपके घर आना चाहते हैं जब आवश्यकता पड़ती है पूछ कर या बिना बताए भी लेकिन कभी उनकी नगरी उनकी बस्ती जाते हैं तो तरीका सलीका बिल्कुल अलग होता है । आपको सभाओं में बुलाते हैं मगर ध्यान नहीं रहता बुलावा भेजा था और ऐसा जतलाते हैं कोई बिना बुलाए महमान हैं । राजनेताओं को तो चलो भीड़ जमा करनी होती है मगर साहित्य की सभा का आयोजन करने वाले भी जब अदबी शिष्टाचार और सभ्य आचरण करना नहीं जानते तब आपत्तिजनक लगता है । हर साल हिंदी दिवस पर इक तमाशा दिखाई देता है कुछ लेखकों को सम्मानित करने को आमंत्रित किया जाता है लेकिन सभा में उनकी तरफ नहीं कुछ साहूकार चंदा देने वालों किसी धनवान दानवीर किसी राजनेता या किसी अधिकारी की तरफ ध्यान रखते हैं । सम्मानित होने वाले वास्तव में अपमानित होते हैं और साहित्य की सभा में धनपशु आदरणीय हो जाते हैं । 
 
व्हाट्सएप्प फेसबुक की बदहाली का आलम है कि हर कोई अनावश्यक इधर उधर से मिले संदेश आगे सबको भेजता है खुद नहीं पढ़ता किसी भी सार्थक संदेश को क्योंकि परखता नहीं क्या सार्थक है क्या निरर्थक । ये क्या है समझदार होने का इतना भरोसा कि पागलपन बन गया है । आजकल आपस में मिलकर या फोन पर बातचीत चर्चा कम बहस अधिक होती है और सोशल मीडिया और अखबार टीवी चैनल से यूट्यूब तक इक अखाड़ा बन गया है । कागज़ी शेर कागज़ की तलवारों से जंग लड़ते हैं लगता है कागज़ की नाव पर सवार हैं भवसागर पार करने को व्याकुल हैं । आधुनिकता ने इतना मतलबी बना दिया है कि कोई बिना कारण किसी से मेलमिलाप नहीं रखता है सभी सामाजिक होने का दावा करते हैं पर संवाद अपनी सुविधा और ज़रूरत के अनुसार करते हैं । हम समझते हैं कौन किस मकसद से संवाद स्थापित कर रहा है लेकिन ख़ामोश रहते हैं इसलिए कि किसी दिन हम भी ऐसे ही कोई नकाब ओढ़कर किसी से मुलाक़ात करने जाएंगे ।   
 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें