मई 06, 2023

ख़ुदा उनको फिर याद आने लगे हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

    ख़ुदा उनको फिर याद आने लगे हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

ख़ुदा उनको फिर याद आने लगे हैं 
वो आयत वही ,  दोहराने लगे हैं । 
 
सियासत से डरते रहे लोग नाहक 
लो नेता सभी गिड़गिड़ाने लगे हैं । 
 
ज़रा गौर से देखना कौन आकर 
ये गंगा को उलटी बहाने लगे हैं । 
 
कभी जुर्म साबित नहीं उनके होते 
वो ठोकर लगा मुस्कुराने लगे हैं । 
 
न आसां था जिनसे मुलाकात करना 
संभलना , तुम्हें ख़ुद बुलाने लगे हैं । 
 
पशेमान , कब , राजनेता हैं होते 
वो गिरगिट के आंसू बहाने लगे हैं ।  
 
किया क़त्ल हाथों से "तनहा" जिन्होंने  
वो , अर्थी हमारी , उठाने लगे हैं ।  
 


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