अप्रैल 06, 2023

असर देखिये क्या हो ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

          असर देखिये क्या हो  ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया     

बदलना था जिनको हालात को ,  बदलने लगे हैं बात को । ज़माने को बदलने वाले खुद बदल गए हैं , दिन कहने लगे हैं काली अंधियारी रात को । अल्फ़ाज़ समझते नहीं मेरे मेहरबां , समझे नहीं हैं लोग भी क़ातिलाना से उनके अंदाज़ को । क्या क्या नहीं बदला दरो - दीवार से लेकर घर की बुनियाद तक हिला दी  है ,  सोज़ की समझ नहीं , समझेंगे क्या भला साज़ को । घनघोर घटाओं ने प्यास नहीं बुझाई , रहने भी दो अब शोले भड़काती इस बरसात को , ये कैसी शमां उजाला नहीं करती दामन कितने जलाए हैं बिरहा की इक रात को । हाथ से मिलाया हाथ हथकड़ी बन गई अब जा के लोग समझे रहनुमाओं की सौग़ात को । तकदीर गरीबों की भला संवारते हैं कभी सरकार , दुनिया की सभी ताकतें शतरंजी बिसात पर जनता को बना मोहरे लुत्फ़ लेते हैं कभी शह कभी मात को । इतिहास के पन्नों को पलटने से क्या होगा हर हर्फ़ भीगा हुआ अश्क़ों की बारिश से , कुछ मिट गए कुछ फाड़ दिए शरारती लोगों ने अपनी आसानी को , इक किस्सा रहा बाक़ी सुनाएगी ,  सुनोगे चोरों की नानी को ।  लिबास बदलने से किरदार नहीं बदलते हैं , झूठ सौ बार बोल देने से सच पराजित नहीं होता है , आग़ाज़ ही सही नहीं हो तो अंजाम कैसे सही होगा , चाहा था सभी ने हिसाब सही होगा कब सोचा था किसी ने  कोई  खाता न बही जो उनके मन भाये बस हर बार वही सही होगा । झूठ बैठा है सूरज बन कर सिंहासन पर सच को सूली चढ़ाया जाएगा । कलम थक गई है लिखने से क्या हासिल पढ़ने से पहले मिटाने का अंदेशा है खुद ही मिटा दिया खुद ही लिखा जा क्या क्या , कूड़ेदान में ढूंढना शायद बचा हो जो इतिहास मिटाया गया जाने किस किस की ज़रूरत से किसी की चाहत से आधी अधूरी रही हसरत से । ख़त्म इक दिन झूठा बनावटी अफ़साना होगा , ज़िंदगी का फिर से वही गीत सुहाना होगा , आएगी इक सुबह उजाला लिए सब घरों बस्तियों से अंधकार मिटाना होगा । जो आज है कल बीता पुराना ज़माना होगा । मौसम अभी ठीक नहीं है फ़िज़ाओं का मिजाज़ अच्छा नहीं पर देखेंगे हम सभी फिर वही मौसम आशिकाना होगा ।  हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ , जब भी मिलेंगे अंदाज़ पुराना होगा । मज़बूर फिल्म की ग़ज़ल से बात को विराम देते हैं ।
 

बदली है ज़माने की नज़र देखिये क्या हो ,

होना तो है कुछ आज मगर देखिये क्या हो । 



ये रात तो दिलकश थी बड़े खुश थे सितारे ,

तुम पास हमारे थे तो हम पास तुम्हारे ,

अब आयी है नजदीक सहर देखिये क्या हो ।  


ये कश्ती चली जाती थी मौजो के सहारे ,

सोचा था पहुच जायेंगे एक रोज़ किनारे , 

पर सामने आया है भंवर  देखिये क्या हो ।  

 

मुश्किल में सभी देते है उस दर पे सदाएं  ,

सुनते है के सुनता है खुदा सबकी दुआएं ,

मगर अपनी दुआओं का असर देखिये क्या हो । 

 

 



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