मार्च 25, 2023

होने वाली है सहर शायद ( बहस जारी है ) डॉ लोक सेतिया

   होने वाली है सहर शायद ( बहस जारी है ) डॉ लोक सेतिया 

शुरआत इक बड़ी पुरानी ग़ज़ल से :- 
 
जिन के ज़हनों में अंधेरा है बहुत  ,
दूर उन्हें लगता सवेरा है बहुत । 
 
एक बंजारा है वो , उस के लिए  ,
मिल गया जो भी बसेरा है बहुत । 
 
उस का कहने को भी कुछ होता नहीं  , 
वो जो कहता है कि मेरा है बहुत ।  
 
जो बना फिरता मुहाफ़िज़ कौम का  ,
जानते सब हैं लुटेरा है बहुत । 
 
राज़ " तनहा " जानते हैं लोग सब  ,
नाम क्यों बदनाम तेरा है बहुत । 
 
डॉ लोक सेतिया " तनहा " 
 
2005 वर्ष की पुरानी डायरी पर लिखी हुई ग़ज़ल ढूंढने पर मिल ही गई । इक किस्सा याद आया हम आस पास के निवासी सभी डॉक्टर सचिवालय में उपायुक्त से मिलने खराब माहौल की समस्या बताने गये हुए थे । अधिकारी ने बड़े प्यार से बिठाया जलपान करवाया मगर समस्या की बात पर जो कहा सुन कर सभी सकते में आ गए थे । उस दिन वहां टोहाना के विधायक भी बैठे हुए थे हैरानी नहीं बड़ा अफ़सोस हुआ जब उन्होंने कहा यहां कुछ भी बदलना संभव नहीं है । बस तभी उनको अपनी ताज़ा ताज़ा लिखी ऊपर वाली ग़ज़ल का मुखड़ा सुनाया था और उनके चेहरे का रंग बदल गया था । 
 
आज के विषय से पहले लिखी बात का कोई नाता नहीं है बस समझना था क्या वास्तव में कभी कुछ नहीं बदलता है । सच्ची बात ये है कि राजनेता शासक अधिकारी वर्ग कभी नहीं चाहते कुछ भी बदलाव सही मायने में हो ।  बलवाव लाने की बातें करते हैं खुद ही नहीं बदलते कुछ भी बदले तो भला किस तरह से । सभा में चर्चा हो रही है शब्दों को सोच समझ कर बोलना चाहिए कहावत भी है काने को काना नहीं कहना चाहिए । शाहरुख़ खान का मशहूर डायलॉग है गंदा है पर धंधा है । याद आया इक कहावत ये भी है कि दुनिया के सबसे पुराने दो पेशे हैं राजनीति और जिस्मफ़रोशी और दोनों में बहुत समानताएं हैं । बहस का विषय है कि चोरी लूटमार क़त्ल चाहे कोई भी अपराध हो जिनका काम धंधा है यही करना उनको चोर लुटेरा क़ातिल कहकर अपमानित नहीं किया जाना चाहिए , आंख से अंधे का नाम नयनसुख बचपन में सुना था । 
 
" मैं आज़ाद हूं " तथकथित महानायक की लाजवाब फ़िल्म थी जो चली नहीं क्योंकि फ़िल्म का किरदार काल्पनिक था इक अखबार का बनाया झूठा व्यक्ति जो खरी खरी लिखता था । कॉलम लिखने वाले ने इक दिन आज़ाद की धमकी की मनघड़ंत बात लिख दी तो शोर मच गया । संपादक को इक बेरोज़गार कई दिन से भूखे भटक रहे व्यक्ति को लालच दे कर जनता के सामने पेश कर अपनी काल्पनिक कहानी को सच साबित कर दिया । झूठा नाम मिलते ही किरदार को अपनी पहचान को सच साबित करने की खातिर अपना साक्षात्कार वीडियो पर रिकॉर्ड करवा जिस ऊंची इमारत से कूद कर जान देने की धमकी अखबार ने छापी थी उसी से छलांग लगाकर ख़ुदकुशी कर ली और उसी वक़त सभागार में आज़ाद का वीडियो दिखलाया गया । 
मैं आज़ाद हूं , मैं आज़ाद हूं यही स्वर गूंजता रहा फिल्म का अंत था झूठ को सच साबित करने को सच में ख़ुदकुशी करनी पड़ती है ।  जानता हूं आपको समझ नहीं आ रहा कि चर्चा किस बात की हो रही है बस इसी की परेशानी है जिधर देखो विषय की नहीं जाने किस किस बात की बहस पर कितने लोग उलझते दिखाई देते हैं । ऐसा कहते हैं भौर होने से पहले अंधियारा बढ़ा हुआ लगता है , बुझने से पहले दिये की लौ बढ़  जाती है । बोलना नहीं कुछ भी समझना है बिना अल्फ़ाज़ एहसास को । अभी इतना बहुत है । 



 

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