खुद को देखना समझना ( आईने के सामने ) डॉ लोक सेतिया
आज खुद को दुनिया में अकेला खड़ा पाया तो सोचा क्या हुआ क्यों सब लोग मिले बिछुड़ गए बस कुछ खट्टी मीठी यादें बाकी हैं । भीड़ से हमेशा घबराता रहा हूं दोस्ती हर किसी से निभाता रहा हूं , चोट हर बार खाता रहा हूं फिर से तकदीर को आज़माता रहा हूं । महफ़िल कितनी सजाता रहा हूं रौशनी को घर अपना जलाता रहा हूं । दुश्मन को भी अपना बनाता रहा हूं रूठे को मनाता गले लगाता रहा हूं , बस इक भूल दोहराता रहा हूं जहां नहीं जाना था अजनबी लोगों के पास जाकर ख़ाली लौट आता रहा हूं । मतलब की यारी करने वाले लोग मिलते रहे हैं उनकी चाहत पर खरा नहीं उतरा तभी किसी को नहीं भाता रहा हूं । कभी जो कहते थे आपके हैं हमको अपना बना लो दिल से दिल मिला लो वक़्त बदलते मुझसे कतराने लगे हैं हाथ पकड़ने वाले हाथ छुड़ाने लगे हैं । समझने में इक बात कितने ज़माने लगे हैं हक़ीक़त से लोग बचने लगे हैं सच से नज़रें चुराने लगे हैं । हर किसी के हमीं पर निशाने लगे हैं हम तीर पर तीर खाने लगे हैं ज़ख़्म पर मरहम लगाने वाले ज़ख्मों को और बढ़ाने लगे हैं नमक छिड़कने को बहाने बनाने लगे हैं ।
राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहीं ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
राहे जन्नत से हम तो गुज़रते नहींझूठे ख्वाबों पे विश्वास करते नहीं ।
बात करता है किस लोक की ये जहां
लोक -परलोक से हम तो डरते नहीं ।
हमने देखी न जन्नत न दोज़ख कभी
दम कभी झूठी बातों का भरते नहीं ।
आईने में तो होता है सच सामने
सामना इसका सब लोग करते नहीं ।
खेते रहते हैं कश्ती को वो उम्र भर
नाम के नाखुदा पार उतरते नहीं ।
कभी कभी ऐसा करते रहना ज़रूरी है खुद अपने आप को परखना कसौटी पर कसना और समझना । सोचा इक बार फिर से दर्पण का सामना किया जाए और इक भजन है तोरा मन दर्पण कहलाए । भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए , जग से चाहे भाग ले कोई मन से भाग न पाए । मन का दर्पण आत्मा है ज़मीर कहलाता है वहां झूठ बनावट नहीं चलती है खुद अपने आप को धोखा देने की कोशिश अपनी ही नज़र में नीचे गिरना होता है । मैं दुनिया को नहीं जानता जो भी जानता हूं समझता हूं काफी नहीं है लेकिन खुद अपने आप को मैं जानता हूं समझता भी और परखता भी रहता हूं कि जो सोचता समझता कहता हूं वही करता भी हूं या फिर कथनी करनी में अंतर है । मैंने जीवन भर जो भी किया है जैसा भी कर पाया हूं बढ़िया या लाजवाब नहीं मगर सच्चाई से पूरी ईमानदारी से किया है । स्वार्थी ख़ुदगर्ज़ बनकर कभी झूठ बोलना शहद की तरह मिठास भरे बोल बोलकर अपना उल्लू सीधा करना जैसा किया नहीं है । समस्याओं का हल निकालने को आसान रास्ते छोड़ सच का दामन पकड़े रखा है और मुश्किलों का डटकर सामना किया है ।
डॉक्टर का किरदार निभाते समय जितना संभव हुआ सभी का उपचार उचित ढंग से किया है और पैसे बनाने को कभी अधिक महत्व नहीं दिया है । समाज में दोस्ती या अन्य संबंधों में बनावट और चतुरता से कभी ऐसा आचरण नहीं किया कि दिल में बैर रखना और सामने हितैषी बनकर धोखा देते रहना । मुझ से बहुत लोग ऐसा करते रहे हैं और मैं समझता भी रहा हूं लेकिन बुराई का बदला बुरा बनकर कभी नहीं किया है । झूठ नहीं कहूंगा कि मैंने सबको आसानी से माफ़ किया है मन में एहसास रहा है और निराशा भी मगर कभी व्यवहार में कटुता नहीं लाना चाहा है । छोड़ दिया है अनुचित व्यवहार करने वालों को ये सोच कर कि जिनकी जैसी सोच विचारधारा है उनको बदला नहीं जा सकता पर उन की तरह बनना भी नहीं छल कपट धोखा करने से खुद अपनी अंतरात्मा पर बोझ लेकर ज़िंदा रहना मुझे मंज़ूर नहीं है ।
लिखना मेरा शौक नहीं ज़रूरत है जो जुनून बन गया है लेकिन मैंने साहित्य के बाज़ार में बेचा नहीं कलम को । नाम शोहरत ईनाम पुरूस्कार आदि की दौड़ में शामिल नहीं हुआ कभी । किसी विधा का बड़ा जानकार नहीं बस जब कुछ लिखना होता है खुद ही जिस विषय की चर्चा होती है कोई आकार बनता गया है । शर्त एक ही है सच लिखना निडरता पूर्वक लिखना और खुद अपनी मौलिकता को बनाए रखना । इधर उधर से कुछ लिया और बदलाव कर अपनी रचना घोषित किया जैसा गुनाह नहीं कर सकता हूं जैसा बहुत लोग करते हैं । मैं भसोसा करता हूं की मैंने जो लिखा समाज की वास्तविकता को दिखलाने में सक्षम है कुछ घटाया बढ़ाया नहीं है । इस डर से कि कोई खुश या नाराज़ होगा अपनी कलम को रुकने नहीं दिया कभी भी ।
खुद को लेकर साफगोई से लिखा शानदार लेख👌👍 लोग इतनी स्पष्टता से अपने ऊपर नही लिख पाते
जवाब देंहटाएंजी,वास्तविकता के धरातल से निकली पंक्तियों झकझोर देने वाली होती हैं... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंShaandaar lekh
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