राजनीति की लघुकथा ( हक़ीक़त भी अफ़साना भी ) डॉ लोक सेतिया
सरकार का संदेशा मिला है कितने साल हुए क्या किया पर जनता को संबोधित किया जाएगा । क्या हासिल होगा कोई नहीं जानता बस जनता को भरोसा दिलवाना है सरकार चल रही है । कितने दरवाज़े खोलने की बात होती है और अधिकांश ज़रूरत पड़ने पर पता चलता है आजकल बंद है कुछ दिन बाद खुलेगा । सरकारी वेबसाईट ऐप्प खुद इक जाल है जो इंसान से इंसान को अलग कर मनमानी करता है लेकिन सरकार की साहूलियत है किसी सरकारी बाबू अधिकारी को जनता से बात कर परेशान नहीं होना पड़ता । सरकारी वेबसाईट पर लगाकर पिंड छुड़ाते हैं और दावा करते हैं आसानी होगी जबकि मुसीबत बढ़ती गई है । शायद कभी मंत्री अधिकारी नहीं कंप्यूटर साइट्स ऐप्स शासक बनकर काम का काम तमाम करेंगी । मशीन कभी संवेदना नहीं करती समझती और आजकल सरकारी लोग मशीन की तरह मानवीय संवेदनाओं से रहित हो गए हैं । मंदिर मस्जिद पूजा धर्म अनुष्ठान व्यर्थ हैं जब शासक बन कर अधिकारी नेता चुनाव से किसी पद पर बैठ कर जनता से उचित संवाद नहीं करते मनचाहे ढंग से जनता को रोज़ मुजरिम की तरह गुनहगार बनाकर खड़े करते हैं अनावश्यक नियम कानून से और फ़ायदा उठाने को जबकि बनाया जाता है राह आसान करने को । शासक बनते रोड़े बनकर परेशान करते हैं सामान्य नागरिक को और खुद जब जैसे मर्ज़ी करने को आज़ाद हैं ।
घटना कुछ दिन पहले की है जिनको चुनकर नगर का भाग्यविधाता बनाया था जनता ने बैठे थे किसी जगह अपना दुखड़ा सुना रहे थे । चलो थोड़ा पहेली बना कर आपको समझने या हल करने का कार्य करते हैं ताकि कुछ आनंद आप को आये और थोड़ा लुत्फ़ हम भी उठा सकेंगे । कहानी की रोचकता मज़ा देती है हम किरदार को भगवान और पुजारी एवं भक़्त का आवरण पहनाते हैं जैसे नाटक में रामलीला में किया जाता है । पुजारी जी के दफ़्तर गया था कि वहां साक्षात भगवान विराजमान थे । मेज़ पर मधुर मिष्ठान पड़ा था , नहीं मालूम भगवान को अर्पित किया था पुजारी जी ने अथवा स्वयं भगवान लाये थे पुजारी जी की खातिर , मगर मुझे क्या स्वादिष्ट मिष्ठान मिला खाकर धन्यवाद किया ।
पुजारी जी कह रहे थे आपको बनाया जिन लोगों ने मालिक भाग्यविधाता सुना है दर दर भटक रहे हैं उनकी समस्याओं की सुनवाई नहीं होती है । भगवान के आधुनिक अवतार की आवाज़ में बेबसी दर्द छलक आया था , बोले आपको क्या बताएं लोग मुझसे मिलते ही नहीं । इधर उधर भटकते रहते हैं अन्य तमाम लोगों के पास जाकर समस्या बताते हैं जो समाधान नहीं करते उलझन बढ़ाते हैं । पुजारी जी कहने लगे आप सबको बतलाओ मुझसे मिलो अपनी समस्या की बात बताओ , भगवान खामोश हो गए फिर सोच कर बोले कोई तरीका बताओ कैसे सबको जानकारी मिले कि मैं चाहता हूं लोग सीधे मुझसे संवाद स्थापित करें । पुजारी जी ने अपने यूट्यूब चैनल पर उनका साक्षात्कार रिकॉर्ड किया और सोशल मीडिया पर जारी कर दिया ।
मुझे काम आन पड़ा तो ध्यान आया वो मुझ से दूर नहीं हैं और मैं उनसे बात कर उनसे मुलाक़ात करने उन्हीं के स्थल पर चला गया । चर्चा की परेशानी बताई तो जवाब मिला ये कोई कठिन समस्या ही नहीं है आप चिंतामुक्त होकर जाएं मेरा नियुक्त सहायक खुद आपकी समस्या सुलझवाने आपसे आकर मिलेगा । लेकिन समस्या का समाधान कब कौन करेगा अभी तक नहीं पता चला है । ऊपरवाले की शासन व्यवस्था इसी ढंग की है सबको दर्शन देते हैं हाथ उठाकर वरदान देने की तरह मगर उस के बाद क्या हुआ उनको फुर्सत नहीं मिलती क्योंकि खुद अपनी समस्याओं में फंसे हुए रहते हैं । भगवान भी मोह माया के जाल में उलझे हैं और उसके सभी विभाग अधिकारी हर दिन उसकी महिमा का गुणगान करने से खाली ही होते , जनता की सुनवाई हो भी तो आखिर कैसे और समाधान करने की चाहत भी किस अधिकारी को है । जिसे देखो हर कोई अपनी उलझन में उलझा हुआ है । सरकार इसी को कहते हैं जो चलती रहती है किसी कोल्हू के बैल की तरह घूमती रहती है कहीं नहीं पहुंचती बस वहीं की वहीं रहती है । जनता को कोल्हू की ओखली में डालकर पीसते हैं उसका खून है जो पैसा बन कर अर्थव्यवस्था का संचालन कर रहा है । लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता की सेवा इसी ढंग से की जाती है ।
बहुत बढ़िया लिखा है... साइट्स ,एप्प्स, ऑनलाइन काम वैसे परेशानी कम करने को हैं पर काम बिगाड़ रहे हैं
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