अगस्त 14, 2022

जादूगर शहंशाह की कथा ( तरकश / कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

  जादूगर शहंशाह की कथा ( तरकश / कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया 

सदियां बदल गई युग बदलते रहे झूठ बोलने वाले सभी को छलते रहे , भोले भाले लोग झांसे में आकर घर लुटाते रहे चालबाज़ फूलते फलते रहे। ठगी का कारोबार दुनिया भर में शान से चलता है चोर डाकू चाहे कितना धन दौलत जमा कर लें जीवन भर भटकते रहते हैं ठग नाम शोहरत ऐशो आराम से सपने दिखला सब से वाहवाही लूटते चैन से रहते हैं । जादू का खेल दिखलाना जादूगरी कहलाता है फिर भी देखने वाले समझते हैं नज़र आने वाला दृश्य झूठा छल है , जैसे दुष्यंत कुमार कहते हैं :- 

     ये रौशनी है हक़ीक़त में एक छल लोगो , कि जैसे जल में झलकता हुआ महल लोगो । 

    जादू आशिक़ भी किया करते हैं और हुस्न वालों का जादू कब किसी को दीवाना कर दे कोई नहीं समझ पाता। राजनीति और सिनेमा में करिश्मा अभिनेता नेता नायिका का ग़ज़ब ढाता है मगर कब किसी का करिश्मा काम नहीं आये बेअसर हो जाये कोई नहीं जानता। ऐसा पहली बार देखा किसी की जादूगरी का नशा ऐसा चढ़ा है कि लोग ज़हर भी ख़ुशी ख़ुशी पीने लगे हैं । उसकी अदाएं निराली हैं मीठी मीठी बातें मतवाली हैं । लोग बेकार नहीं रोज़गार नहीं बजाते थाली हैं देते ताली पर ताली हैं । उसका नशा छा गया है धरती पर झूठ का फ़रिश्ता आकर दुनिया को तिलस्म से भरमा गया है । उसने सबको अपने जादू से सम्मोहित किया है पास उसके सत्ता का जलता दिया है लोग खुद बनकर बाती जलते हैं राख होने तक अरमान पलते हैं । सिसकियां भरना नसीब हो गया है रोते रोते ज़माना गहरी नींद सो गया है । जादूगरी से मिला कुछ भी नहीं सब अपना गुम हो गया है । खिलाता ख़ास लोगों को मीठा बताशा है कोई तमाशबीन बन गया है हर शख़्स बन गया तमाशा है । ख्वाबों ख्यालों की बेचता मिठाई है दुकान नहीं कोई शोरूम नहीं इक तस्वीर ऑनलाइन मिलती है स्वाद लाजवाब है बिना चखे सब कहते हैं । राजा नंगा है कहानी जैसे लोग शहंशाह के मुल्क में रहते हैं । निदा फ़ाज़ली जी की ग़ज़ल सुनते हैं। 
 
 
मन बैरागी, तन अनुरागी, कदम-कदम दुशवारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फनकारी है

औरों जैसे होकर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है

जब-जब मौसम झूमा हम ने कपड़े फाड़े शोर किया
हर मौसम शाइस्ता रहना कोरी दुनियादारी है

ऐब नहीं है उसमें कोई , लाल परी न फूल गली
यह मत पूछो, वह अच्छा है या अच्छी नादारी है

जो चेहरा देखा वह तोड़ा , नगर-नगर वीरान किए
पहले औरों से नाखुश थे अब खुद से बेज़ारी है ।
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 

 

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