जुलाई 16, 2022

ग़म है बर्बादी का क्यों चर्चा हुआ ( अजब-ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया

  ग़म है बर्बादी का क्यों चर्चा हुआ ( अजब-ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया 

उसको लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है वहां चोर लुटेरे ठग अपराधी गुंडे बदमाश शान से बैठते हैं ये राजनीतिक दलों की मज़बूरी है सत्ता पाने को दूसरा कोई रास्ता नहीं दिखाई देता। धनबल बाहुबल झूठ धोखा फरेब कपट सब करना पड़ता है जनता को उल्लू बनाने की खातिर अन्यथा नेताओं की मंशा उनकी सत्ता हासिल कर मनमानी करने की हवस की वास्तविकता मालूम हो तो ज़मानत ज़ब्त हो जाये। लेकिन बड़ी बदनामी होती है जब रिश्वत भ्रष्टाचार घोटाले और बहुमत के दम पर तानाशाही करने को देश समाज की भलाई साबित किया जाता है और कुछ निडर लोग विपक्ष वाले या बिना बिके मीडिया वाले झूठ को झूठ बताने की बात करते हैं । उस तथाकथित मंदिर में भले जैसा भी व्यक्ति सुशोभित होता है उसको आदरणीय माननीय कहना होता है उनको लेकर असभ्य शब्द उपयोग नहीं किये जाने चाहिएं। अब चाहे उनका किरदार कैसा हो उनकी सोच कितनी घटिया हो और उनको सही गलत की कोई समझ नहीं हो और उनको अपनी ज़ुबान पर बोलते समय लगाम लगाना नहीं आता हो नासमझ बच्चों की तरह शरारत करना उनकी आदत हो उनको अनुशासन सिखाना ज़रूरी है। घर की भीतर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए आपस में टकराव का असली कारण देश की जनता को पता नहीं लगने देना है और विश्व भर में सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाने का क्या लाभ जब ये सब को समझ आने लगे कि यहां लठ तंत्र लूट तंत्र और झूठ का बोलबाला है । सत्यमेव जयते लिखा हुआ है मगर सत्य से किसी को कोई मतलब नहीं है। 
 
फ़िल्मी नायक जिनकी आदत होती है डायलॉग बोलने की और सिनेमा पर अपनी ताकत और शक्ति दिखाकर दर्शकों की तालियां बटोरने की उन से भाषण सभाओं में नर्म मुलायम शब्दों का उपयोग करने की आपेक्षा करना व्यर्थ है। टीवी फिल्म से लेकर न्याय-व्यवस्था स्थापित करने वाले सभी अंगों में नियुक्त लोग लाठी डंडे और ज़ोर ज़बरदस्ती सब करने को जायज़ समझते हैं यहां तक कि सत्ताधारी शासक के अनुचित गैर कानूनी आदेश का पालन करते हर देश और संविधान की भावना नागरिक आज़ादी और विचारों को अभिव्यक्त करने के मौलिक अधिकार तक की अवेहलना करते हैं । ऐसे खतरनाक भयानक वातावरण को छोड़ शब्दों के बोलने पर रोक लगाने की चिंता करना ऐसा है जैसे भीतर जिस्म सड़ा गला हो सभी अंग बेकार हों लेकिन उसके बहरी पहनावे की सुंदरता और बुझे हुए चेहरे के पीलापन उदासी निराशा को ढकने को सजाने की कोशिश की जाए। 
 
शराबखाने में शराब पीने की छूट हो मगर होश की बात करने की शर्त हो , किसी जिस्म फ़रोशी के बाज़ार में गंदा धंधा करने की आज़ादी हो पर वहां गाली गलोच की भाषा पर ऐतराज़ हो । अजब ग़ज़ब है घर गली दफ़्तर से टीवी सीरियल सिनेमा तक शराफत की तहज़ीब की धज्जियां उड़ाना खराब नहीं है बस उन सभी बातों को छुपाए रखना अनिवार्य हो । कल चमन था आज इक सहरा हुआ , देखते ही देखते ये क्या हुआ।
मुझ को बर्बादी का कोई ग़म नहीं , ग़म है बर्बादी का क्यों चर्चा हुआ। 
 



 

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