सिर्फ उसी दोस्त के नाम कताबें ( मकसद ) डॉ लोक सेतिया
ये सवाल इक न इक दिन सामने आना लाज़मी था , मुझे जो भी कहना है इस ज़ालिम ज़माने से नहीं कहना है । किसी को फुर्सत कहां मेरी दास्तां मेरी बात मेरी ज़िंदगी के एहसास दिल के जज़्बात को समझने की । बचपन से जवानी की तरफ बढ़ती उम्र का खूबसूरत ख़्वाब था बस एक दोस्त की तलाश जो मेरा अपना हो पूरी तरह से जीवन भर को । नाम पता मालूम नहीं जाने किस गांव नगर बस्ती गली में रहता हो । पब्लिशर को नहीं समझ आती मेरी मन की बात क्योंकि कारोबार की घाटे मुनाफ़े की बात नहीं है और सामान्य पाठक वर्ग को साहित्य कविता ग़ज़ल कहानी व्यंग्य काल्पनिक रचनाएं लगती हैं या किसी की नाम शोहरत दौलत पाने की चाहत । लेकिन मुझे इनकी ज़रूरत नहीं है , जीवन भर प्यास रही है कोई एक अपना हो जिस को ज़िंदगी की दास्तां सुननी हो मुझे सुनानी भी हो । फिल्म आनंद के बाबुमोशाय या तलाश फिल्म की नायिका की तरह हंस परदेसी के आकर मिलने की आरज़ू । कभी किसी दिन मेरी कोई किताब पढ़कर शायद उसको मेरी ही तरह से ख़्वाब को हक़ीक़त बनाने की तरकीब समझ आ जाए और हम मिल जाएं तब सार्थक होगा मेरा लिखना।
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