वक़्त के हालात ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
दिल के जज़्बात यही थे , मेरे तेरे एहसास यही थे
पास थे और दूरियां थीं , तब भी दिन रात यही थे ।
नहीं मिलने की थी मज़बूरी , कुछ कदम की थी दूरी
नज़रें समझतीं थी बस , होंठों पर अल्फ़ाज़ नहीं थे ।
डर ज़माने का यही था , मिलते थे मिल पाते नहीं थे
धड़कनों की आवाज़ यही , जानते थे समझते नहीं थे ।
ज़िंदगी कैसे बिताई हमने , दास्तां सुनी सुनाई हमने
अलग-अलग रहकर भी पर , दिल से बिछुड़े नहीं थे ।
प्यार की मज़बूरियां कुछ , कुछ हौंसलों की भी कमी
थे जुदा क्योंकि दोनों , इक मंज़िल के राही नहीं थे ।
सोचता हूं मैं आज तुम भी , सोचती हो बात यही कि
ज़िंदगी पर हक़ होता काश , नसीब तो अपने नहीं थे ।
वो प्यार था पहला हमारा , याद है हमको वो नज़ारा
दिल की बातें दिल में रखीं , कहना जो कहते नहीं थे ।
सोचता रहता हूं मैं जो , क्या तुम्हें भी महसूस होता है
आज कुछ और बात है , मगर हालात कभी ऐसे नहीं थे ।
अच्छी नज़्म है सर👌👍
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