मई 08, 2022

वक़्त के हालात ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

          वक़्त के हालात ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

दिल के जज़्बात यही थे , मेरे तेरे एहसास यही थे 
पास थे और दूरियां थीं , तब भी दिन रात यही थे । 
 
नहीं मिलने की थी मज़बूरी , कुछ कदम की थी दूरी
नज़रें समझतीं थी बस , होंठों पर अल्फ़ाज़ नहीं थे । 
 
डर ज़माने का यही था , मिलते थे मिल पाते नहीं थे 
धड़कनों की आवाज़ यही , जानते थे समझते नहीं थे । 
 
ज़िंदगी कैसे बिताई हमने , दास्तां सुनी सुनाई हमने 
अलग-अलग रहकर भी पर , दिल से बिछुड़े नहीं थे । 
 
प्यार की मज़बूरियां कुछ , कुछ हौंसलों की भी कमी 
थे जुदा  क्योंकि दोनों , इक मंज़िल के राही नहीं थे । 
 
सोचता हूं मैं आज तुम भी , सोचती हो बात यही कि 
ज़िंदगी पर हक़ होता काश , नसीब तो अपने नहीं थे । 
 
वो प्यार था पहला हमारा , याद है हमको वो नज़ारा 
दिल की बातें दिल में रखीं , कहना जो कहते नहीं थे । 
 
सोचता रहता हूं मैं जो , क्या तुम्हें भी महसूस होता है 
आज कुछ और बात है , मगर हालात कभी ऐसे नहीं थे । 
 

 

1 टिप्पणी: