फ़रवरी 09, 2022

कौन मुजरिम क़लम के क़त्ल का ( व्यथा-कथा ) डॉ लोक सेतिया

  कौन मुजरिम क़लम के क़त्ल का ( व्यथा-कथा ) डॉ लोक सेतिया 

पुस्तकालय की बंद अलमारी से जाने कब से लाल रंग का लहू जैसा तरल पदार्थ बहता बहता फ़र्श पर दाग़ बनता जा रहा है लाख कोशिश की मगर धब्बे मिटते ही नहीं। सरकार को खबर मिली तो सीबीआई को जांच पर लगा दिया क्योंकि टीवी चैनल को इंसानी खून की गंध महसूस हुई और इंसानी खून की गंध अख़बार टीवी चैनल को हमेशा करीब आने को विवश करती है। विशेषज्ञ बड़ी बारीकी से देखते परखते हादिसे की तह तक पहुंचे तो माजरा सुलझने की जगह और उलझता लगा। लिखने वाले की सैंकड़ों किताबों के नीचे उसकी कलम दबी कुचली पड़ी बरामद हुई। सरकारी विभाग की सोने से बनी कलम जो लिखने वाले को ईनाम पुरुस्कार के साथ भेंट की गई थी उसकी हालत देख कोई नहीं समझ पाया कि जान बाकी है या नहीं लेकिन कचूमर निकलने के बाद भी उस के भीतर से स्याही की जगह लहू की धारा निरंतर बहती जाती थी। राज़ खुला कि शासक ने खुश होकर लिखने वाले को सोने की कलम हीरे मोती से जड़ी उपहार स्वरूप भेंट दी थी जिस में स्याही की जगह गरीबों का लहू भरा हुआ था। इतनी महंगी कीमत की कलम लिखने वाले ने किताबों के ढेर के नीचे दबाकर क्यों रखी थी और कैसे इतनी किताबों का बोझ उसको दबाता कुचलता रहा और कलम में भरा स्याही की जगह लहू बहते बहते पुस्तकालय को क़त्ल की वारदात की जगह घोषित करने को विवश हुआ। लहू की हर बूंद मिट्टी के कण कण में बसी अनगिनत कविताओं ग़ज़लों कहानियों की रचनाओं की वास्तविक दास्तां की तरफ इशारा कर रही थी। रूह कांपने लगी है इतनी लाशें दबी पड़ी अचानक सामने देख कर। सीबीआई के पास तमाम जानकर होते हैं जांच रपट लिखने लिखी को बदलने की ज़रूरत पड़ती रहती है तब कलम स्याही कागज़ की समझ वाले विशेषज्ञ बुलाने पड़ते हैं। कलम की जांच कर जानकार ने बताया कि अभी बचने की उम्मीद बाकी है। 
 
     वेंटीलेटर पर जैसे रोगी को रखते हैं उसी तरह कोशिश करने पर कलम में हलचल होने पर घायल कलम से सवाल किया गया तुम्हारी इस दशा का कारण क्या है। एक एक करके किताबों की रतफ इशारा किया लिखने वाले को गुनहगार बताते हुए। सभी किताबों को खोलना पड़ा सावधानी से पन्ने पलटते हुए ताकि सबूत सुरक्षित रहें और इस तरह सैंकड़ों किताबों में कलम को दबाने कुचलने तोड़ने मरोड़ने के निशान मिल ही गए। कहीं इतिहास को बदलने कहीं घोटाले के अपराधी को बचाने को नज़ीर बनाने की बात करने और झूठ को सच बनाकर ख़लनायक को नायक घोषित करने का कार्य कर लिखने वाले ने खुद अपना ज़मीर बेचने एवं कलम की आत्मा को लहू-लुहान किया था। कविता ग़ज़ल को घायल किया मंच पर तालियां और चंद चांदी के सिक्के पाने की चाहत में। कभी लघुकथा को उपन्यास कभी हक़ीक़त को अफ़साना बना दिया। यहां तक कि आने वाले भविष्य को गुज़रा कोई पुराना ज़माना बना बेचा सस्ते दाम पर। वहीं कहीं लिखने वाले की डायरी मिली लेखक की आत्मकथा जो कभी किताब नहीं बन पाई। प्यार की दास्तां सिनेमा पर फिल्मकार ने नफरत डर और हिंसा रोमांच बना दिया लिखने वाले की विवशता देखते हुए लालच का जाल बिछाकर। किसी संपादक ने किसी टीवी सीरियल निदेशक ने हर अंक हर एपिसोड में दर्शक को भटकाते हुए काली अंधेरी रात को रौशनी का नाम देकर गुमराह किया धन दौलत कमाने की खातिर। 
 
लंबा समय अथक महनत रंग लाई और सीबीआई ने कितने बड़े बड़े नाम वाले जाने माने लोगों के चेहरों से शराफत की नकाब हटाकर उनकी असली सूरत दिखलाई जो हैरान परेशान करने से बढ़कर भयभीत करती दिखाई दी। उसी टीवी चैनल जिसने घटना पर एपिसोड बनाकर सनसनी फैलाई थी जांच रिपोर्ट मालूम करने पर गोपनीय ढंग से जानकारी मिली उसको सबसे बड़ा गुनहगार साबित किया गया है। शासक और सत्ताधारी दल की अनुकंपा हासिल थी इसलिए जोड़ तोड़ कर सीबीआई जांच बदल कर साज़िश को मज़ाक बनाकर जारी किया गया। जांच का नतीजा खोदा पहाड़ निकाली चुहिया वो भी मरी हुई । 
 

                      डॉ लोक सेतिया की ग़ज़ल कहती है   :-

 
इक आईना उनको भी हम दे आये
हम लोगों की जो तस्वीर बनाते हैं।
 
बदकिस्मत होते हैं हकीकत में वो लोग
कहते हैं जो हम तकदीर बनाते हैं।

सबसे बड़े मुफलिस होते हैं लोग वही
ईमान बेच कर जो जागीर बनाते हैं।

देख तो लेते हैं लेकिन अंधों की तरह
इक तिनके को वो शमशीर बनाते हैं।

कातिल भी हो जाये बरी , वो इस खातिर
बढ़कर एक से एक नज़ीर बनाते हैं।
मुफ्त हुए बदनाम वो कैसो लैला भी
रांझे फिर हर मोड़ पे हीर बनाते हैं। 
 


 
 

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