जनवरी 15, 2022

तुझे तेरी बेदर्दी की कसम कोरोना ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

तुझे तेरी बेदर्दी की कसम कोरोना ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

वास्तव में उनको ऐसी उम्मीद नहीं थी कितने चाव से कितने अपनेपन से उसको ज़र्रे से आंधी तूफ़ान बनाया था आसमान पर पहुंचाया था वही अपने पालनहार को आंखें दिखाने लगा है। किसी और दल की राजनीति के काम आने लगा है उनसे नज़रें मिलाता नहीं नज़र बचाकर उधर जाने लगा है । चूहा शेर को सताने लगा है शेर बिल्ली मौसी को बुलाने लगा है , पुराना इक नग़्मा गुनगुनाने लगा है। 
 
हमीं से मुहब्बत हमीं से लड़ाई , अरे मार डाला दुहाई। 
अभी नासमझ हो उठाओ ना खंजर , कहीं मुड़ ना जाए तुम्हारी कलाई। 
सितम आज मुझ पर जो तुम ढा रही हो , बड़ी खूबसूरत नज़र आ रही हो। 
जी चाहता है के खुद जान दे दूं , मुहब्बत में आए ना तुम पर बुराई। 
हमें हुस्न की हर अदा है गंवारा , हसीनों का गुस्सा भी लगता है प्यारा। 
उधर तुमने तीर - ए - नज़र दिल पे मारा , इधर हमने भी जान कर चोट खाई। 
करो खून तुम ना मेरे जिगर का , बस एक वार काफ़ी है तिरछी नज़र का। 
यही प्यार को आज़माने के दिन हैं , किए जाओ हम से यूं ही बेवफ़ाई। 
 
फिल्म ' लीडर ' 1964 वर्ष की से गीत याद आया है तो 2022 साल में लीडर को मतलब समझना पड़ेगा। कोरोना से उनका रिश्ता गहरा है साथ निभाया है बचाया है भंवर से और किनारे लगाया है। बन कर हमसाया नाता कितनी बार आज़माया है भला कौन उस से बढ़कर काम आया है। ज़ालिम ये सितम तो मंज़ूर नहीं मुहब्बत का ये दस्तूर नहीं रकीबों से गले मिलने लगे हो आशिक़ हैं हम तुझ से मग़रूर नहीं। मुझे तुमने समझा नहीं है दुनिया में कोई भी मुझसा नहीं है। मुझे छोड़ गैर से प्यार करने वाला दुनिया में बचता ज़िंदा नहीं है। कोरोना तुमने मेरी मुहब्बत को देखा है मेरी दुश्मनी से वाकिफ़ नहीं तुम , दोस्त आशिक़ भले नहीं सबसे बेहतर लेकिन दुश्मन होकर मुझसे बुरा कोई नहीं है। मिर्ज़ा ग़ज़लिब कहते हैं। 
 
इश्क़ मुझको नहीं वहशत ही सही , मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही। 
कत्आ कीजे न तअल्लुक हम से , कुछ नहीं है तो अदावत ही सही। 
 
कोरोना तुम मेरी पहली मुहब्बत नहीं हो कुर्सी मेरी पहली सच्ची मुहब्बत है तुम सिर्फ इक सीढ़ी हो और मुझे मालूम है ऊपर पहुंच कर सबसे पहले उस सीढ़ी को गिराना राजनीति का ज़रूरी सबक है। मेरी नहीं तो किसी और की होने को बचोगी नहीं मुझे मालूम है तुझे कब कहां कैसे ख़त्म कर मातम मनाना है जश्न मनाने की तरह। ख़िलौना समझ खेलते हैं जो अपने ख़िलौने किसी को नहीं देते कभी कोई छीनने की कोशिश करे तो तोड़ देते हैं ख़िलौने से नहीं अपनी ज़िद से प्यार करते हैं जो वो बच्चे कभी बड़े नहीं होते हैं खुद नहीं रोया करते रुलाते हैं सबको हंसने को मिट्टी से खेलना धूल उड़ाना शरारती बच्चों की फ़ितरत होती है और आदत कभी जाती नहीं है।

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