नवंबर 07, 2021

राज़ खुला ज़िंदगी बिता कर ( व्यंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया

   राज़ खुला ज़िंदगी बिता कर ( व्यंग्य-कथा ) डॉ लोक सेतिया 

कहो कैसी रही ज़िंदगी , दुनिया से वापस आने वाले से ऊपरवाला यही पूछता है। लोग हैरान हो जाते हैं उलझन में पड़ जाते हैं जवाब देते नहीं बनता है। चिंता की कोई बात नहीं है आपको समय मिलेगा याद कर जवाब लिख कर दे सकते हैं जैसे स्कूल कॉलेज में परीक्षा देते थे आपको समझाने को रखे हुए हैं तमाम देवी देवता। खुद पहुंच जाते हैं शानदार परीक्षा भवन में , सबसे पहले आपको समझाया जाता है करना क्या है और मकसद क्या है। कोई देवता आपका स्वागत करते हुए बतलाता है आपको हर किसी इंसान को ईश्वर खाली भेजता है और खाली वापस बुलाता है। कुछ भी बंधन कोई अनुबंध नहीं होता है आपको अपने विवेक से अपनी अर्जित जानकारी शिक्षा अनुभव से ज़िंदगी जीने की पूर्ण आज़ादी होती है। उपरवाले ने धरती पर बेहद खूबसूरत दुनिया बनाई थी इंसानों पशु पक्षी जानवर सबको अपने अपने तरीके से उस दुनिया को सुंदर बनाना था। बस यही बताना है अपने जन्म लेकर मरने तक उपरवाले की बनाई दुनिया को सजाया संवारा या बर्बाद किया है। दुविधा हो जवाब देने में तो हम सामने विराजमान हैं सभी देवदूत देवी देवता जिस से जिस तरह की मदद चाहो मांग सकते हैं संकोच की आवश्यकता नहीं है। 
 
कोई खड़ा होकर कहता है क्या हमको बताना होगा कितना भगवान का नाम जपते रहे मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे बनाते उस में जाकर पूजा ईबादत धार्मिक कार्य करते रहे। दान दिया धार्मिक आयोजन किये माला जपते रहे हवन अनुष्ठान आदि करते रहे। उसको बताया गया इन बातों का महत्व नहीं है आपने  क्यों समझ लिया मानव जीवन पाकर आपको सार्थक ढंग से जीने को इनकी ज़रूरत है। भगवान को इन सबकी चाहत नहीं हो सकती है आपको ईश्वर की काल्पनिक तस्वीर बनाने उसकी वंदना करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। आपको दुनिया को रंगीन रौशन और शांत बनाने को आपसी भाईचारा प्यार मुहब्बत बढ़ाने को कल्याण का मार्ग निर्माण करना था। ईश्वर से शिकायत या विनती नहीं बल्कि उसका आभार व्यक्त करना था आदमी को सबसे समझदार और विवेकशील बनाने के लिए। किसी के उपदेश को बिना समझे मानकर अनावश्यक अंधविश्वास की बातें करना अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करना उचित नहीं था। आपको सबसे बड़ा अधिकार महत्वपूर्ण वस्तु मिली अपने व्यर्थ गंवा दिया। कभी किसी ईश्वर ने कोई किताब नहीं लिखी न लिखवाई है उसको अपने खुद को साबित क्यों करना था और किसको करना था। आपको खुद खुश रहना था और सबको खुशियां बांटनी थी जबकि अधिकांश लोग खुदगर्ज़ बन कर ऐसे कार्य करते रहे जिनसे किसी और को परेशानी दुःख दर्द मिलता हो। ऐसे जिन्होंने कांटे उगाने बबूल बोने का काम किया उनको फल भी वैसे मिलते रहे इसको विधाता की तकदीर की बात नहीं अपने कर्म का नतीजा समझ सकते हैं। 
 
ऐसे ही किसी अन्य को बताया गया है अपने उपरवाले की तस्वीर मुर्तियां जाने क्या क्या अलग अलग ढंग से शक़्ल देकर तमाम निर्माण कार्य किये मगर वास्तव में ये संभव ही नहीं था। जिस ने खुद आपको इंसान को जीव जंतुओं पशु पक्षियों को करोड़ों ढंग से बनाया उसको कोई इंसान कल्पना से बना ही नहीं सकता है। वास्तव में तमाम लोग मंज़िल और रास्ते खोजने में जीवन भर इधर-उधर भटकते रहे और जीना भूल कर कितनी बार मरते रहे। आपको जैसा भेजा था बिना कोई निर्देश बिना कोई जमाराशि बिना कोई क़र्ज़ जैसे मर्ज़ी ज़िंदगी जीने को आपने ज़िंदगी का उपयोग कर दोस्त हमराही अपने चाहने वाले हमदर्द बनाने थे। अपनी जीवनी को प्यार के रंगों से भरपूर कहानी का आकार देना था लेकिन शायद अधिकांश खुद ही अपनी कथा के अनावश्यक किरदार बन कर रहे। नायक बनना कठिन था खलनायक कहलाना नहीं चाहते थे। सभी इंसान बराबर हैं इंसानियत सभी का धर्म नहीं बल्कि जीवन का सही मार्ग है मिल जुलकर आपसी सदभावना बढ़कर ख़ुशी से रहना था औरों को भी ख़ुशी से जीने देना था। ये ढाई अक्षर की पढ़ाई थी सबको समझाई थी आपको दोस्ती समझ नहीं आई थी किसलिए दुश्मनी निभाई थी। सबको खुद लिखना है और सिर्फ सच लिखना है झूठ नहीं चलता उपरवाले के दरबार में कितनी सच्चाई है आपके किरदार में। बाद मरने के ये राज़ खुलेगा बंदा गुनहगार नहीं खुदा का , मुजरिम है खुद अपनी कहानी का ऊपरवाला कभी किसी को सज़ाएं नहीं देता है वफ़ाएं नहीं करते जो उनकी सदाओं की कभी बालाएं नहीं देता है।
 
Insaaf Shayari In Hindi - 'इंसाफ' पर 10 बेहतरीन शेर... - Amar Ujala Kavya

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