अक्टूबर 16, 2021

हाथ जोड़कर कोरोना खड़ा ( अंतिम अध्याय ) डॉ लोक सेतिया

   हाथ जोड़कर कोरोना खड़ा ( अंतिम अध्याय ) डॉ लोक सेतिया 

सरकार मुझ पर करो उपकार छोड़ो करना मुझसे झूठा प्यार बंद करो अपने इश्तिहार नहीं किसी को होता ऐतबार मेरा रहा नहीं नाम निशान मेरे नाम का हो गया बंटा धार। मेरा अंत घोषित कर दो अब मेरी कोई हैसियत नहीं रही इससे पहले कि लोग मुझे लेकर चुटकुले हंसी मज़ाक कॉमेडी की बातें बनाने लगें मेरा अंतिम क्रियाकर्म शान से कर श्रद्धांजलि सभा में मेरी शांति की प्रार्थना कर मेरा कल्याण कर दो। देवता दानव नहीं सही कोई शख़्सियत समझ सकते हैं जिसने दुनिया को सबक सिखलाने की नाकाम कोशिश की कितनों की जान लेने का गुनहगार बनकर बेमौत मर गया। सरकार दुविधा में पड़ी है उलझन छोटी नहीं है बहुत बड़ी है फैसले की घड़ी है ऐटमबंब बताया था निकली फुलझड़ी है बड़े ज़ुल्मी से आंख लड़ी है। कोरोना आईसीयू में है जीवनरक्षक उपकरण उसको ज़िंदा रखे हैं सभी परिजन इंतज़ार में खड़े हैं विरासत के झगड़े बड़े बड़े हैं। कोई उसको कांधा देगा कौन उसकी अर्थी को सजाएगा कौन राम नाम सत्य बोलेगा कौन उसको श्मशान में दफ़नायेगा। समाधिस्थल बनाना ज़रूरी है दास्तां उसकी अधूरी होकर पूरी है हाय ये कैसी मज़बूरी है। कोरोना कितने लोगों के काम आया है सत्तावालों का हमराज़ है कितने धनवान लोगों का रुतबा बढ़ाया है हर कोई खुद को वारियर कहलाता है सभी से नाता उसने निभाया है। मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरुद्वारा सबके करीब ठिकाना बना लिया था खुदा भगवान जीसस वाहेगुरु सभी का हमसाया है। तमाम लोगों ने कोरोना को बेचने का कारोबार किया है आपदा को अवसर बनाकर पैसा कमाया है। दुनिया भर के लोगों ने सुःख चैन खोया है चतुर हैं बस उन्होंने सोने चांदी का अंबार लगाया है ऊंची दुकान फीका पकवान करिश्मा दिखाया है। दरबार लगाया कभी मुकदमा चलाया है मुजरिम मिल गया पर हाथ नहीं आया है धोखा खाने वालों ने धोखा हर बार खाया है बेगुनाह को सूली पर सबने चढ़ाया है। 
 
कोरोना बहुत पास है लेकिन दिल्ली दूर है टेढ़ी खीर है हुआ मज़बूर है। कहते हैं चाहने वाले तुझे मरने नहीं देंगे भरोसा किसी को खबर का करने नहीं देंगे डर के आगे जीत है डरना ज़रूरी है डराते रहेंगे सबको दिल से डर को ख़त्म करने नहीं देंगे। सब एक थाली के चट्टे बट्टे हैं कोरोना को लेकर सभी इकट्ठे हैं अभी उनको कोरोना की ज़रूरत बहुत है हसरत पूरी नहीं हुई रही बाकी हसरत बहुत है। बेबस है कोरोना लाचार हुआ है मत पूछो किस किस का शिकार हुआ है जाने क्या हुआ उसको बीमार हुआ है टीका फीका दवा नहीं असरदार हुआ है हालत पे खुद बेचारा शर्मसार हुआ है। शहंशाह था जो समझता ख़त्म अहंकार हुआ है आदमी के हौसले को देख घबरा गया है रुसवा होकर बेआबरू जाने को तैयार हुआ है। जाने नहीं देंगे तुझे कहते हैं भाई बंधु नहीं गुज़ारा तेरे बिन हमारा होगा मर कर तुझे छुपाकर दिल में है रखना ज़हर मीठा लगता है चखना सबको चखना। रुख़्सत की घड़ी आई जाना तो पड़ेगा वादा किया था निभाना तो पड़ेगा किसलिए उदासी है आखिर सबको जाना है ये दुनिया चार दिन का ठिकाना नहीं हमेशा को आशियाना है। सरकार मगर मानने को तैयार नहीं है जंग ख़त्म हुई ख़त्म उसके हथियार नहीं हैं। ऐलान किया है कोरोना छुप गया है मारा नहीं गया क़त्ल नहीं हुआ उसका गुमशुदा की तलाश है ये नहीं कोरोना की लाश है शायद कोई हमशक़्ल है बहरूपिया है कोई इसका ऐतबार नहीं करते बिना आधार कार्ड पहचान साबित नहीं होती मुर्दों की बातों पर यकीन कौन करता है मूर्ख कर लेते समझदार नहीं करते। सरकार समझदार बड़ी है कोरोना की सुनने की फुर्सत नहीं है समस्याओं की लंबी लड़ी है उनसे बचने को कोरोना है काम आया शाम हुई लगता है बढ़ता लंबा उसका साया।

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