सितंबर 22, 2021

गठबंधन सरकार से विवाह संबंध तक ( हंसते - हंसाते ) डॉ लोक सेतिया

गठबंधन सरकार से विवाह संबंध तक ( हंसते - हंसाते ) डॉ लोक सेतिया 

समझ का फेर है अन्यथा विधाता के निर्णय में होती कभी नहीं इक पल की देर है माना साफ नज़र आता अंधेर ही अंधेर है सरकार क्या कमाल है सब कुछ बेहाल बदहाल है किस्मत की बात नहीं बिन बादल हुई बरसात नहीं अंधे के हाथ लगी बटेर है। वक़्त वक़्त की बात है दिन अंधेरे हैं जगमगाती रात है दिल्ली राजधानी है अजब करामात है सेवक महल में रहता मालिक को मिला फुटपाथ है। राजा है जिसकी नहीं रानी है उसकी रोज़ नई कोई कहानी है बिल्ली मौसी शेर की खो गई नानी है बस इतनी सी परेशानी है। शेर और बुढ़िया की सुनी कभी कहानी है बात समझने की है आपको समझानी है शेर से सभी डरते थे इंसान उसका शिकार कर लेता था उसने ईश्वर से इंसान की भाषा समझने का वरदान हासिल कर लिया और इंसान की बात सुनकर निडर होकर गांव बस्ती जाने लगा। इक झौंपड़ी से इक बुढ़िया की आवाज़ आती सुनाई देती है बड़बड़ाती है मेरा गधा धोबी वापस देने नहीं आया ज़मींदार के घर मिट्टी पहुंचानी है रात होने को है। मैं ज़मींदार से नहीं डरती मेरे सामने शेर भी आये तो नहीं डरती सुनकर शेर हैरान हो जाता है। बुढ़िया को शेर दिखाई देता है अंधेरे में समझती है मेरा गधा है। शेर दहाड़ता है तो बुढ़िया कहती है शेर समझने लगा खुद को मैं तुझको तेरी औकात बताती हूं और उसके कान पकड़ उस पर मिट्टी लदवाती है और ज़मींदार के घर गिरवाती है। शेर की पीठ टूट जाती है और भाग जाता है। इस नीति कथा की शिक्षा है की भीतर से डर कर आधी लड़ाई पहले ही हार जाते है , यही हालत सरकार जनता को लेकर है और पति पत्नी को लेकर भी। 
 
  कोई कहानी उपन्यास नहीं है ये बड़ी लंबी महाकथा है जिस के हर अध्याय का गंभीर और गहरा अर्थ है। आदमी का जीवन से ताकत का विवश कमज़ोर से निरंतर संघर्ष है। दुनिया की संरचना में कोई नहीं बड़ा छोटा था सब आज़ाद थे खुश थे आबाद थे ख़ुदग़र्ज़ी ने कयामत ढाई है भूलकर प्यार की पढ़ाई नफरत इतनी बढ़ाई है दुश्मन लगता प्यारा दोस्त से नहीं मिलने की कसम खाई है। सत्ता का खेल सांडों की लड़ाई है दलों की राजनीति में खेत खलियान की शामत आई है। सरकार बनाकर हर कोई पछताया है पाया नहीं धेला इक जो था जेब का रुपया गंवाया है। जंग है शतरंज है खेल मगर जारी है जनता की विनती है फरमान सरकारी है सत्ता दुनिया की सबसे बड़ी बिमारी है लाईलाज रोग है चारागर की लाचारी है। इश्क़ वाली भी मुश्किल बड़ी भारी है दवा देने से दर्द बढ़ने की लाचारी है। शादी करना मज़बूरी नहीं है खाना नहीं खाना लड्डू मर्ज़ी है पछताना ज़रूरी है ज़रूरी नहीं है। खुद क़ातिल को मसीहा बनाते हैं सरकार बनाकर नई मुसीबत बुलाते हैं शासक अपनी मनमानी चलाते हैं बाकी सब पर हुक्म चलाते हैं। कायदे कानून बनाए जाते हैं पर कसम खाई थी न्याय सत्यनिष्ठा की भूल जाते हैं। कायदा कानून कायम रखने को जो भी विभाग बनाते हैं उनकी बात मत पूछो ऐसे पेड़ हैं जो आग बरसाते हैं। शासक वर्ग मौज उड़ाते हैं और आम नागरिक शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं गरीबी भूख जैसी बुनियादी समस्याओं की बदहाली से तड़पते हुए जीते हैं मर जाते हैं। सभी नये शासक स्वर्ग के ख़्वाब दिखलाते हैं जन्नत ज़िंदा रहते क्या कभी  कोई पाते हैं। चोर लुटेरे अपराधी निर्दोष साबित होते हैं और बेगुनाही की सज़ा शरीफ लोग पाते हैं। न्याय-व्यवस्था समानता मौलिक अधिकार कहने भर को खोखले आदर्श हैं वास्तव में कहीं नज़र नहीं आते हैं। दुनिया भर के लोगों ने सरकार बनाई है परेशानी दूर क्या होती और बढ़ाई है। आजकल सबसे बड़ी समस्या खुद सरकार है अंधी बहरी लूली लंगड़ी बेबस लगती है मगर वास्तव में दोधारी तलवार है। भारत देश की सरकार जाने किस युग का अवतार है सच की बात नहीं होती झूठ की जय-जयकार है सिर्फ इक इश्तिहार है।
 
विषय को थोड़ा बदलते हैं फ़ितरत को जो बदलते हैं अपने आप को छलते हैं सोचते हैं खूबसूरत दुनिया बसाएंगे फूल ही फूल खिलाकर हंसेंगे मुस्कुराएंगे गुलाब को नहीं पहचानते हैं शबनम को बारिश मानते हैं। गुलाब में कांटे छिपे रहते हैं चुभन होती है तो चिल्लाते हैं अश्क़ चुपके चुपके बहाते हैं। अकेलेपन से कभी घबराए थे कोई साथी ढूंढ कर लाये थे जश्न मनाए थे गीत गाये थे डोली बरात सब सजाये थे। चार दिन की चांदनी रात होती है अंधेरे मिलते हैं रौशनी की बात होती है। निभाना बड़ा मुश्किल लगता है दामन छुड़ाना भी नहीं चाहते हैं वो सुबह कभी तो आएगी वो सुबह कभी तो आएगी इंतज़ार उम्र भर करते हैं। लोग क्या कहेंगे इस से डरते हैं आहें चुपके चुपके भरते हैं वो भी क्या दिन थे जब आज़ाद परिंदे थे बंद पिंजरे में याद करते हैं। पति बनकर राजा बाबू गुलाम हुए पत्नी बन रानी बन राज करने के ख़त्म अरमान हुए दोनों को शिकायत दोनों को मुहब्बत भी है साथ और दूर की मुसीबत भी है। न जाने किसने विवाह संबंध की रस्म बनाई थी क्या उसका कोई ख़सम था क्या उसकी कोई लुगाई थी। गुड्डे गुड़ियों का खेल लगता था अच्छा शायद बड़े बूढ़ों ने की चतुराई थी बचपन से मन में चाहत जगाई थी यौवन आया मत मारी गई सामने कुंवां था पीछे गहरी खाई थी। किसी दार्शनिक ने कथा सुनाई थी जिस दिन हुई किसी की सगाई थी सब लोग चुटकला समझ हंस दिए कौन समझता पीर पराई थी। 
 
भगवान जोड़ियां बनाता है ये झूठ है जो सबको भाता है किसी पर लिखा कोई नाम नहीं सबका आगाज़ है अंजाम नहीं। कौन किसका भाग्य-विधाता है अपने मुकद्दर का हर कोई खाता है विवाह शादी करवाने वाला भी हमने देखा अकेला रह जाता है। जीवन साथी जब लोग चुनते हैं तब कभी नहीं सोचते क्या करते हैं हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती खुद क्या हैं क्या बताते हैं सच से किसलिए घबराते हैं। साथ रहना है खुश भी रहना है तो समझना समझाना ज़रूरी है क्या हर सुख दुःख में निभाना चाहते हैं ये बंधन इक विवशता मज़बूरी है स्वभाव प्यार आदर दोनों को दिल से होना ज़रूरी है। जन्म जन्म का रिश्ता कहते हैं शर्तों की क्यों बात होती है कितना दिखावा कितना तमाशा क्या भला मेल मुलाकात होती है। सबने कितने मापदंड बनाये हुए हैं पढ़ाई लिखाई शक़्ल सूरत धन दौलत ऐशो-आराम की चाहत ये सभी ख़्वाब की बातें हैं क्यों हक़ीक़त को सब समझते हैं। कोई भी इंसान मुकम्मल नहीं होता है आधा आधा बाक़ी रहता है सभी को मिलकर साथी को पूरा करना होता है। हम एक दूसरे को आज़माते हैं जो मिला उसको समझते नहीं नहीं मिला उसका अफ़सोस जताते हैं। 
 

Vector Illustration - Separate, together road sign. EPS Clipart gg64650021  - GoGraph


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें