जुलाई 09, 2021

दर्शक ताली बजाओ मदारी बंदर नचाओ ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

इक बस वही खिलाड़ी सब अनाड़ी ( सत्ता की बाज़ी ) डॉ लोक सेतिया 

ये उनकी राजनीति है उनके लिए खेल बदलते हैं मैदान बदल जाते हैं मगर मर्ज़ी उनकी रहती है। धर्मराज जुए में सब को दांव पर लगाते हैं हर बाज़ी हार जाते हैं फिर भी सच्चे अच्छे कहलाते हैं। उनके हाथ देश की बागडोर है सारी की सारी दुनिया चोर है उनकी बात और है दिल पर भला चलता किस का ज़ोर है। मन की बात करते हैं झूठ कहते हैं सब उनका झूठ सबसे बड़ा सच कहलाता है रोज़ बात से मुकरते हैं। आपको कुछ समझ नहीं आ रहा है कोई आपको देशभक्ति का सबक पढ़ा रहा है अपनी धुन में कोई दरवेश भजन सुनाता चला जा रहा है मधुर स्वर सुन कितना मज़ा आ रहा है। खुले आकाश से राजदरबार तक किसी मॉल से मल्टीप्लेक्स और थियेटर तक उसका तमाशा है आपकी हर निराशा उसकी बन जाती आशा है आदमी नहीं है इक बताशा है मिलने की आशा है। उसके हाथ हज़ार हैं सारी दुनिया में उसके यार हैं किस लिए लोग बेज़ार हैं। बर्बादी के जितने भी आसार हैं उनकी सत्ता के सभी अचूक हथियार हैं। अपनी अपनी कहानी है बिल्ली शेर की नानी है जनता की नादानी है जिसने बदहाल किया उसकी भी समझी मेहरबानी है। चलो इस किताब को खोलते हैं खामोश अल्फ़ाज़ कभी बहुत कुछ बोलते हैं राज़ की बात खोलते हैं उनको सच के तराज़ू में तोलते हैं। जिनकी शोहरत के चर्चे हैं आमदनी से बढ़कर जिनके खर्चे हैं उन का क्या क्या हिसाब है लिखा बही खाता में सौ खून माफ़ है। हर अध्याय मुक़्क़मल है समझना चाहो तो कोई नहीं मुश्किल है। 
 
पहला अध्याय। मैं आज़ाद हूं। अमिताभ बच्चन की पुरानी फिल्म है पर्दे से असलियत में कर दिखाया है किसी संपादक ने झूठा किरदार बनाकर अपनी कल्पना से सभी पाठकवर्ग को उल्लू बनाया है। रोज़ जिस नाम से कॉलम पढ़वाया है कोई नहीं बस इक साया है अचानक कोई भूखा बेबस नज़र आया है जिसने सड़क से फेंका झूठा सेब चुपके से उठाया है। उसकी मज़बूरी का फायदा उठाया है खूब खिलाया है और पैसे देकर झूठ बोलने का अनुबंध करवाया है। मैं आज़ाद हूं , सबसे दावा कर अमिताभ बच्चन से मिलवाया है। किरदार अभी तक सदी के महानायक निभाते हैं हर फिल्म में झूठा किरदार शिद्दत से निभाते हैं मालामाल होते जाते हैं। आपको करोड़पति बनने की राह दिखाते हैं खेल खेल में पैसा बनाते हैं समझदारी उसको बतलाते हैं। आजकल कितने लोग आपको जुआ खेलने को ललचाते हैं टीवी पर खेलो और जीतो विज्ञापन में उल्टी पट्टी पढ़ाते हैं ये गुमराह करने वाले नायक समझे जाते हैं। 
 
सबसे बड़ा खिलाडी। अध्याय दो। खोटा सिक्का उसने चलाया है कुछ भी नहीं आता फिर भी सब में हाथ आज़माया है। कभी शतरंज की बिसात बिछाई है जनता मोहरे हैं बादशाह की मौज मस्ती है सत्ता की खुमारी छाई है। हर कोई दुश्मन है हर कोई भाई है बस उसकी मुहब्बत और जंग की लड़ाई है जिस में सब जायज़ है कौन सच्चा आशिक़ कौन हरजाई है। चाल उसकी है मात खाई है मगर क्या लाजवाब की चतुराई है उसने बिसात पलटी है हारी बाज़ी जिताई है। अब कोई खेल नया खेलेगा ताश की बाज़ी में हार जाएगा पुलिस बनकर वापस ले लेगा। उसने ताश के पत्तों का महल बनाया है बस हवा का झौंका कहीं से आया है बिखर गए सभी पत्ते हैं। अभी नहीं समझे बड़े कच्चे हैं उनके सामने बूढ़े भी बच्चे हैं। सरकार कोहलू के बैल जैसी है चलती रहती है अपने दायरे में नहीं किसी मंज़िल पर पहुंचती है उसकी आंखों पर बंधी खुदगर्ज़ी की पट्टी है। खराब है मगर अपनी महबूबा है ज़ुल्म ढाये फिर भी प्यार आता है उनको करना हर वार आता है उनकी सूरत पे प्यार आता है। शोहरत की बुलंदी की बात मत पूछो हर घड़ी इश्तिहार आता है। उनको नींद नहीं आती है खबर उनको सच्ची नहीं भाती है उनकी शोहरत घटती जाती है जान जाती है रूह थरथराती है। 
 
        (  अभी जारी है किताब का अगला अध्याय अगली पोस्ट पर। )
 

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