अप्रैल 30, 2021

अब तो सारा जहां हमारा है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 अब तो सारा जहां हमारा है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब तो सारा जहां हमारा है  

ज़िंदगी शुक्रिया तुम्हारा है। 

हाथ पतवार और माझी हम 
हम जहां पर वहीं किनारा है। 
 
हम अकेले कभी नहीं होते 
रोज़ हर दोस्त ने पुकारा है। 
 
प्यार मिलता है प्यार करने से 
बह रही इक नदी की धारा है। 
 
वक़्त गुज़रा गुज़र गया "तनहा"
शान से वक़्त हर गुज़ारा है।

 

 

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