अप्रैल 03, 2021

हम जो चाहत में आह भरते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हम जो चाहत में आह भरते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

हम जो चाहत में आह भरते हैं 
जैसे कोई गुनाह करते हैं । 
 
मार कर पत्थरों से अहले-जहां 
पेड़ से फल की चाह करते हैं । 
 
याद करके अतीत हम अपना 
अपनी रातें सियाह करते हैं । 
 
हमको उनसे नहीं गिला कोई 
दिल को हम खुद तबाह करते हैं । 
 
एक सहरा में हम- से दीवाने 
ख़्वाब में सैरगाह करते हैं ।  
 
सब मुसाफिर नये नई मंज़िल 
इक नई रोज़ राह करते हैं । 
 
कौन सुनता तुम्हें यहां "तनहा"
बस वो सुनकर के वाह करते हैं ।
 
 


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