गुरु ग्रंथ साहिब , स्वरूप संरचना और सिद्धांत ( पुस्तक से कुछ अंश )
लेखक :- जगजीत सिंह जी।
प्रकाशक :- फर्स्ट एडिशन 67 एल जी एफ कैलाश हिल्स , नई दिल्ली - 110065
सबसे पहले मुझे स्वीकार करना है कि सिख धर्म या अन्य सभी धर्मों पर लिखने की मेरी अपनी समझ बहुत सिमित है और यहां जो भी लिख रहा हूं उस किताब से लेखक के शब्दों को दोहरा रहा हूं। 280 पन्नों की पुस्तक में गुरु ग्रंथ साहिब की व्याख्या करना उन्हीं का कमाल है। जगजीत सिंह जी का जन्म दिल्ली में 9 जुलाई 1955 को हुआ , दिल्ली विश्वविद्यालय से एम ए किया और सिख धर्म मानवाधिकार और हक़ीक़त , बेटियों पर किताबें लिखने के साथ इंग्लिश किताब " india at 50 " में भारत में शिक्षा पर दीर्घ अध्याय लिखा। 1992 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा विश्व खाद्य दिवस पुरुस्कार से सम्मानित। राज्य सभा सचिवालय में वरिष्ठ संपादक।
पुस्तक से कुछ चुनिंदा अंश लिए हैं जो इस तरह हैं :-
वर्ण नहीं वाणी प्रधान :- सोलह अगस्त 1604 ईस्वी का दिन विश्व धर्म-इतिहास का वह विशेष दिवस था जब पंचम गुरु श्री अर्जन देव जी ने दरबार साहिब ( स्वर्ण मंदिर ) में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रथम प्रकाश करके धर्मनिरपेक्षता की वह इमारत खड़ी की जिसकी शुरुआत धर्मस्थल की बुनियाद एक मुस्लिम फ़क़ीर साईं मियां के मुबारक़ हाथों से रखवा कर की थी और साथ ही तत्कालीन वर्ण-व्यवस्था को तोड़ने के लिए रूहानियत के इस केंद्र के चरों ओर चार दरवाज़े बनाये थे ताकि किसी भी द्वार से या दिशा से कोई भी जाति या धर्म अथवा वर्ण का कोई भी व्यक्ति यहां आकर इबादत कर सके। इस महान ग्रंथ का संकलन-संपादन करते समय " खत्री , ब्राह्मण , सूद , वैस उपदेसु चहु वर्णां कउ सांझा " के संदेश तथा उद्देश्य को सामने रख कर अपने पूर्ववर्ती चार गुरुओं गुरु नानक देव जी गुरु अंगद देव जी गुरु अमर दास जी तथा गुरु रामदास जी की अलौकिक वाणी एवं स्वयं की वाणी के साथ साथ अपने समकलीन एवं पूर्ववर्ती अनेक हिंदू , सूफ़ी , एवं तथाकथित निम्न जातियों से संबद्ध माने जाने वाले संतों और भक्तों की चुनिंदा वाणी को भी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज कर के जहां उन्हें सिख गुरुओं के बराबर आदर तथा उच्चता प्रदान की , वहीं उन्होंने सदियों पुरानी वर्ण व्यवस्था पर चोट की , जिसने धर्म ग्रंथों और शास्त्रों के लेखन पठन पाठन को सिर्फ अपना एकाधिकार बना रखा था।
बुनियादी तौर पर सिख धर्म को ग्रंथ साहिब गुरु परम्परा की विरासत में पूर्ण गुरु के रूप में 7 ऑक्टूबर 1708 ईस्वी के दिन प्राप्त हुआ जब दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परलोक गमन से पूर्व दैहिक गुरु परंपरा को समाप्त कर शब्द गुरु का आदेश दिया।
" सब सिखन को हुक्म है गुरु मानिओ ग्रंथ "
चूंकि तब तक श्रद्धालु दैहिक गुरु के साक्षात दर्शन करके स्वयं को धन्य समझते थे गुरु गोविन्द सिंह जी ने समझाया कि जिसे प्रभु-परमात्मा से मिलन की श्रद्धा तड़प है वो व्यक्ति पठन पाठन मनन से उसे पा सकता है वाणी को समझकर। विश्व का यही अकेला धार्मिक ग्रंथ है जिस में उसके मूल छह गुरुओं समेत 36 रचनाकारों की ईश्वरीय आराधना एवं स्तुति का गायन करने वाली वाणी एक साथ शामिल है। शेख फ़रीद , जयदेव , क़बीर , त्रिलोचन , परमानंद , रविदास , भीखन , मथुरा , भीखा , हरबंस , बेनी , धन्ना , सूरदास , मरदाना जैसे भक्तों संतों के नाम प्रमुख हैं।
गुरु ग्रंथ साहिब में न तो " शतपथ ब्राह्मण " की तरह कर्मकांड की चर्चा अथवा उक्तियों-युक्तियों का वर्णन है न ही उस में कुरान की तरह शरीयत की दृढ़ताओं की पड़ताल की गई है। सांख्य और वेदांत शास्त्र की तरह इस में एक दूसरे के विचारों का खंडन मंडन अथवा उधेड़बुन भी नहीं की गई है। किसी तरह की दलीली वकालत या सारहीन दार्शनिकता जैसी चोंचलेबाजी भी इस में नहीं है। पुराणों की तरह भक्ति मार्ग की प्रचलित सखियों की कल्पना भी इस में कहीं नहीं है। इस में अगर वर्णन है तो निरंकार के नाम - सिमरन का , प्रेमा भक्ति का , जन सेवा का अथवा मानवीय एकता का।
" एक पिता एकस के हम बारिक " गुरु नानक का मिशन वर्गरहित समाज की स्थापना।
गुरु ग्रंथ साहिब में वाणी को बड़े ही व्यवस्थित ढंग से क्रमबद्ध किया गया है। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने खुद मूल मंत्र ( जपु जी का शुरुआती अंश ) एक ओंकार सतिनाम करता पुरखु निरभऊ निरवैरु अकाल मूरति अजूनि सैभं गुरु प्रसाद , लिखा और आगे वाणी भाई गुरुदास जी ने लिपिबद्ध की। बाबा बुड्डा जी को इसका पहला ग्रंथी नियुक्त किया। यहीं से सिख धर्म में ग्रंथी परम्परा का भी शुभारम्भ हुआ। आज गुरुद्वारों में प्रकाशमान गुरु ग्रंथ साहिब में 1430 पृष्ठ और 5894 शब्द हैं।
अब कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर वाणी के अंश और उनका अर्थ को देखते हैं समझते हैं। " उपदेसु करै आपि न कमावै ततु सब्दु ना पछानै।। " भक्तिमार्ग में उपदेशक की कथनी करनी में अंतर अर्थात दूसरों को उपदेश देना खुद अनुपालन नहीं करना ऐसे पाखंडी लोगों के बारे गुरु अर्जन देव कहते हैं कि वह शब्द का तत्व नहीं समझ सकता है। " गावीऐ सुणिये मनि रखिये भाऊ " अर्थात राम राम उच्चारण से मान लिया जाता है कि साधक की भक्ति पूर्ण हुई नानक जी कहते हैं व्यावहारिक अमल के लिए मन में भाव बसाने की ज़रूरत है। जपु जी का सर्वशक्तिमान परमेश्वर लोगों की भावनाओं को देखता है और समस्त मानवता में व्याप्त शिव और शक्ति को विचारधीन रखता है।
ये शायद कोई कल्पना नहीं कर सकता ईश्वर भक्ति की बात कहने वाला गुरु कभी उसी ईश्वर की आलोचना भी कर सकता है। " ऐती मार पई कुरलाने , तैं की दर्द न आइया " अर्थात हे ईश्वर निर्बलों पर इतनी मार पड़ रही है भारी दुःखों कष्टों से लोग कराहते हैं क्या फिर भी तुम्हें उन पर ज़रा भी रहम नहीं आता है। ये तुम्हारे ही उतपन्न किये हुए लोग हैं ये उस वक़्त की सांस्कृतिक बेचैनी राजनीतिक उथल पुथल और नैतिक गिरावट का समय था। आज से पांच सौ साल पहले महिलाओं को बुरा भला कहने वालों का विरोध करना कोई सामान्य घटना नहीं हो सकती। मगर नानक कहते हैं जो हम सभी को जन्म देती है उसको कोई खराब कह कैसे सकता है। सो किंव मंदा अखिये जिन जन्में राजान।
अन्य सभी धर्मों के ग्रंथों से गुरु ग्रन्थ साहिब इस अर्थ में भी बेमिसाल है कि बाक़ी करीब करीब सभी धर्मों के किसी भी संस्थापक उपदेशक ने या पैगंबर ने अपने पीछे लिखित हस्तलिखित सिद्धांत या उपदेश नहीं छोड़ा है। उनके दर्शन और सिद्धांत के बारे में हम जो भी जानते हैं परवर्ती लेखकों या प्रचलित रीतियों पर आधारित है। सुकरात का पता हमे प्लेटो और जनेफर की कृतियों से लगता है। बुद्ध ने अपनी शिक्षाएं लिखित नहीं छोड़ीं। ईसाई धर्म के संस्थापक ने भी अपने सिद्धांत को लिखकर नहीं छोड़ा उनके बारे में मैथ्यू लूका जॉन तथा अन्यों की कृतियों को आधार मानते हैं। कॉन्फ्यूशियस ने भी सामाजिक नैतिक व्यवस्था के बारे लिखित कुछ नहीं छोड़ा। अरब के पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहिब ने भी कुरान की इबारत को अपने हाथ से कलमबद्ध नहीं किया। बल्कि उनके खलीफाओं या अनुयायियों ने इन्हें लिखा या एकत्र किया। निस्संदेह अन्य धर्मों के विपरीत सिख धर्म गुरुओं की वाणी की रचना विभिन्न गुरुओं ने खुद सहेज कर रखी। भाई गुरुदास जी मक्का यात्रा का ज़िक्र करते लिखते हैं " बाबा फिर मक्के गइया नील वस्त्र धारे बनवारी। आसा हाथ किताबु कछि कूजा बांग मुस्सला धारी।" सवाल उठता है वह कौन सी किताब थी जो गुरु नानक देव जी ने अपनी कांख में दबाई हुई थी जिसे खोलने को उनसे काज़ियों ने कहा था।" पुछनि फ़ोल किताब नों हिंदू वड्डा कि मुसलमानोई।" वह किताब साथ साथ लिखी जा रही थी गुरुगद्दी भाई लहणा को सौंपने तक जितनी वाणी की रचना गुरु नानक देव जी कर चुके थे पोथी के रूप में गुरु अंगद देव जी के हवाले कर दी थी। आगे उन्होंने अपने रचे श्लोकों के साथ गुरु अमरदास और इसी तरह पोथी चौथे गुरु रामदास जी को विरासत में मिली। तब गुरु रामदास जी फरमाते हैं " पराई अमाण किउ रखिए दिती ही सुख होइ। गुरु का शब्द गुरु थे टिके होर थे परगटु न होइ।
ये ग्रंथ आध्यात्मिक ज्ञान का अथाह सागर है , इसमें अध्यन करने वाला जितना गहरा उतरता है सतही जीवन से उतना ऊपर उठता जाता है। ये केवल मोक्ष और परलोक की बात नहीं करता है बल्कि इस में लोक में हर दिन के जीवन में शुचिता अनुशासन त्याग गृहस्थी में जीवन साथी के लिए निष्ठा अहिंसा स्वाभिमान परोपकार महनत की कमाई न्याय निडरता नारी जाति का सम्मान उच्च आदर्श की शिक्षा के साथ साथ आडंबर रूढ़ियों विषय-विकारों कर्मकांड पर-निंदा का त्याग की भी मार्गदर्शन देता है। सांसारिक जीवन में हर विषय को शामिल किया गया है और साफ ढंग से सच्चाई और बुराई को समझाने को व्याख्या की गई है।
मैंने शुरआत में ही स्वीकार किया था किसी धर्म को लेकर मुझे बेहद कम जानकारी है और ये गुरु ग्रंथ साहिब तो तमाम धर्मों का सबसे संशोधित रूप जैसा है जिसकी परिभाषा मानव धर्म और इंसानियत की एकता के आधार पर रखी गई है। ऐसे अथाह समंदर का इक कतरा भर है जो लिखा गया है और जैसा सिख धर्म मानता है ये भी उसी अकाल पुरुख की आज्ञा से ही संभव हुआ है।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंगुरु नानक देव जयन्ती
और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-12-2020) को "रवींद्र सिंह यादव जी को बिटिया के शुभ विवाह की हार्दिक बधाई" (चर्चा अंक-3903) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुन्दर प्रस्तुति
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