सुनो इक सच्ची कहानी ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
मेरा नाम झूठ है ये सबसे बड़ा सच है , मुझसे सभी प्यार करते हैं सच कहता हूं सच से मुझे दुश्मनी हैं सभी लोग सच से डरते हैं। मेरा वजूद बहुत पुराना है मुझे याद हर प्यार का तराना है इश्क़ करने वालों से मेरा नाता पुराना है। कहानी मुहब्बत की मेरा फ़साना है हर आशिक़ से माशूक़ का जो भी झूठा बहाना है समझ लो मेरा किस्सा सदियों पुराना है। कभी झूठ बोलने से मौत मिल जाती थी कसम झूठी नहीं कोई खाती थी। फिर युग बदला लोग आधा सच बताने लगे जो कहना नहीं था उसको छिपाने लगे। शायद ये सच है दुमछल्ला लगाने लगे झूठ को इस तरह अपनाने लगे सच से दामन बचाने लगे झूठ से दिल लगाने लगे। आपने भी सुना और स्वीकार कर लिया कि ये दुनिया इक झूठा सपना है यहां कौन किसी का अपना है। जब ये संसार ही सच नहीं है झूठ है तब झूठ के इलावा बचा क्या है। झूठ है दुनिया और हमको जीना है यहीं झूठ को सच मानकर। आज कलयुग का ज़माना है आपके दिल में मेरा ठिकाना है बस यही आपको समझाना है मेरा आपका पक्का याराना है। हर किसी ने मुझे देवता माना है।
ज़िंदगी में हर मोड़ पर कोई दोराहा आता है इक कठिन रास्ता सच की तरफ जाता है कोई सड़क नहीं है न कोई पगडंडी है कांटों भरी राह है खतरे ही खतरे हैं। मेरी तरफ आने को राजमार्ग बनाये हैं आसानी से हर मुश्किल से पार जाने को पुल बनवाये हैं झूठ ने सभी को लुभाया है गले से मुझे आपने भी लगाया है कितनी बार सभी ने आज़माया है यही पाया है सच है तपती धूप झूठ शीतल छाया है। नादान थे लोग जो झूठ से बचते थे सच की खातिर जीते थे बार बार मरते थे। सब लोग उनको ज़हर पिलाते थे सूली पर सच बोलने वाले को ही चढ़ाते थे सच का क़त्ल करने वाले मसीहा कहलाते थे। मुझसे कभी लोग नफरत किया करते थे जो भी झूठा हो पापी उसे कहते थे मगर वक़्त आने पर काम उनके झूठ ही आया सच कभी किसी का पेट नहीं भर पाया। झूठ हर समय सभी के काम आया झूठ को अपना जिस किसी ने बनाया खूब खाया सबको खिलाया झूठ की बुनियाद पर घर अपना बनाया बाहर घर के नाम सच लिखवाया। कुछ इस तरह झूठ को सच से महान बनाया।
देखो है झूठ का राज जब से आया सच दुनिया में कहीं भी नज़र नहीं आया। झूठ ही तेरा भगवान है बंदे चंगे लगते हैं जो लोग हैं मंदे। गंदे हैं फिर भी अच्छे हैं धंधें ये धर्म ये राजनीति ये सत्ता के हथकंडे। आपको मेरी चाहत का ऐतबार है जानते हैं झूठ ही सच्चा दिलदार है झूठ सभी का अपना है सच तो कोई टूटा हुआ सपना है अब सच का निशान नहीं है सच किसी के घर महमान नहीं है झूठ माई बाप है जिसका कोई एहसान नहीं है। मुझे खोजना है न देखना है न आज़माना है मैं रहता तुम्हारे अंदर मेरा ठिकाना है ये राज़ नहीं है पर फिर भी सबसे छुपाना है। इस युग इस जहां में रहने को झूठ को बचाना है ये रिश्ता अपना सबसे सुहाना है झूठ का अपना इक तराना है हमने मिलकर गाना गुनगुनाना है। सबको ये अब जाकर बताना है इक झूठ का मंदिर हमने बनाना है मिलकर झूठ को सबने मनाना है उस के दर से झोली भर भर के लाना है। झूठ ही आजकल भगवान बन गया है सच अनचाहा वरदान बन गया है सच को कभी अपना नहीं बनाना झूठ से नाता हमेशा निभाना। झूठ की नैया पार लगाएगी सच की दौलत नहीं किसी काम आएगी कोई बैरागन बिरहा का गीत जाएगी सच को खो गया है उसको बुलाएगी शहर गांव से बाहर अकेली भटकती रहेगी सुनसान वीराने में आधी रात को उसकी आवाज़ आएगी।
आजकल इंसान में इंसान नहीं मिलते इंसान के भीतर ज़मीर आत्मा भगवान नहीं रहते। बस झूठ सभी के अंदर रहता है जो खुद को सच भी कहता है। पहचान सके तो पहचान लो खुद को झूठे हो मान लो मान लो खुद को। सच कभी मन में रहता था सभी के कहा करते थे झूठ कोई बोले उसको तुम हो झूठे कहीं के। मगर हुई जब झूठ से जान पहचान सभी की मुरादें मिलीं हुई पूरी हर हसरत सभी की। मन से सच को बाहर तब निकाला उसे ज़िंदा रहते ही क़त्ल कर डाला। दफ़्न सच को अपने अंदर कर दिया है होंटों के सच को सिल दिया है सच जाने कहां इक घुटन बन गया है सच पराजित नहीं हुआ शायद मर गया है। उठा कोई जनाज़ा न कोई मज़ार कहीं सच की बनी है करे कौन साबित है क़त्ल हुआ सच कैसे। झूठ है कानून झूठ है दौलत झूठ दुनिया झूठ पैसे झूठ की अदालत ने सुनाया है फैसला नहीं कोई गवाह हो जिसने सच को ज़िंदा भी देखा। कहीं अधमरा शायद रहता था कोई न कोई उसका वारिस न कोई वसीयत भी लावारिस की तरह सच का अंजाम होना था। सच क्या था लगता है मिट्टी का खिलौना था कभी न कभी चूर चूर होना था। सच फुटपाथ पर सोता था लगता है बिस्तर नहीं था न कोई बिछौना था। यही कभी होना था होना था।
लाजवाब
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