अगस्त 05, 2020

बुलाया नहीं गया ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

      बुलाया नहीं गया ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

   पत्नी जी ने आकर पूछा आपका मंदिर बनाया जा रहा है फिर से इक बार वही सब दोहराया जाएगा क्या आपको बुलावा आया है। नारद जी खबर लाये हैं भीड़ नहीं होगी केवल खास खास लोग उस अवसर पर जमा होंगे जिनको भूमिपूजन करना है उन्होंने  अपनी पत्नी तक को बुलाया नहीं है। क्या आप भी मुझे संग नहीं ले जाओगे। भगवान जी से कुछ कहते नहीं बना मगर जवाब देना ज़रूरी था बोले देखते हैं अभी कोई बुलाने को आया तो नहीं। नारद जी जाने क्या आधुनिक तकनीक की बात कर रहे थे ऑनलाइन देखने का उपाय करने को क्योंकि उनको किसी ने कोरोना की बात कही है और जाने वालों को मुंह ढक कर मास्क लगाकर अयोध्या आने को ज़रूरी किया गया है। भला मुझे अपना मुंह छिपाने की क्या ज़रूरत हो सकती है। सुना है उन्होंने देश की राजधानी में अपना सबसे भव्य आलीशान दफ्तर बनवाने का कीर्तिमान स्थापित किया है और देश भर में सैंकड़ों जगह अपने दल के भवन निर्मित करने के बाद अभी सैंकड़ों और जगह बनवा रहे हैं। आपका मंदिर भी उनके दफ्तर से कम आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस नहीं होगा मुमकिन है अब उसकी सुरक्षा भी नया राफ़ेल विमान किया करेगा। आजकल मंदिर और राफ़ेल दोनों खबरों में छाए हुए हैं कोरोना कोरोना का रोना कुछ थम सा गया है जबकि नारद जी की जानकारी तो ये है कि कोरोना का कहर अभी जारी है। अच्छे अच्छे लोग कोरोना की चपेट में हैं न जाने आगे किस की बारी है। जब भूमिपूजन करने वाले को अपनी संगिनी को नहीं लाना है फिर आपको बुलावा आएगा भी या नहीं क्या खबर इतना तय है मुझे बुलावा हर्गिज़ नहीं आना है।

       नारद जी सही समय पर आये लड्डू का टोकरा भी साथ लेकर आये हैं। इक उपकरण दिखलाया है नाम स्मार्ट फोन बतलाया है कहने लगे एल ई डी टीवी भी मंगवाया है मगर आपके भक्तों का नेटवर्क आपके यहां नहीं काम करता ये अजब उनकी कलयुगी माया है। शायद आपने रिचार्ज नहीं करवाया है वाई फाई भी नहीं लगवाया है इंटरनेट की सुविधा ज़रूरी है ये कितनी मज़बूरी है। भगवान क्या आपने कोई नया सूट बूट मंगवाया है आपका भक्त कितना सज धज कर शान से आता है उसके पास देश भर का बही खाता है। क़र्ज़ लेकर घी पीने का सबक पढ़ाता है आपको मिला किसी बैंक का आधुनिक कार्ड है याद रखना जाने पर साथ होना आधार कार्ड पैन कार्ड है। अब बताओ आपकी कितनी कमाई है क्या इस साल की आय कर की रिटर्न भरवाई है। सोने का हिरण मिला है तो बताना होगा भाव सोने का आसमान पर है अपने सोने को बैंक लॉकर में रखवाना होगा। भगवान हैरान हैं ये क्या क्या गोरखधंधा है लगता है हर कोई आंखों वाला है मगर अंधा है। द्वारपाल ने आकर बताया है स्वर्ग से कुछ लोगों का समूह बाहर आया है आपको बाहर चलना होगा उनको भीतर लाना होगा उनको समझना है बहुत आपको सब समझाना होगा। भगवान उठकर द्वार पर जब आये हैं बाहर वालों ने विरोध के नारे लगाए हैं ये देख कर भगवान क्या सभी चकराए हैं।

    ये सभी भारत की आज़ादी के परवाने हैं उस लोक से आकर भी बेचैन रहते हैं दीवाने हैं। किसी ने पहला मुद्दा उठाया है भगवान ये कैसी आपकी माया है कितनी गर्मी है धूप है बारिश है करोड़ों लोगों के सर पर नहीं कोई साया है उन बेघर लोगों की कोई खबर नहीं है आपके कितने मंदिर हैं रहने को ये मंदिर और भी बनवाओगे। कभी कृष्ण बनकर सुदामा के घर भी जाओगे खुद छप्पन भोग लगाओगे सूखे चावल गरीबों को हर महीने पांच किलो बंटवाओगे ये बताते नहीं शर्माओगे। आपके देश में 80 करोड़ भिखारी हैं जिनको हक नहीं खैरात देकर दाता कहलाओगे। राम नाम की ये कैसी अजब लूट है सभी पर कितनी पाबंदी लगी हैं सत्ता वालों की सब छूट है। हम सभी को बदनाम किया है आज़ाद देश में नहीं बची आज़ादी है भूखी नंगी सभी आबादी है। भगवान क्या अब आपका बचा भरोसा है सच बताओ किसी मंदिर में रहते हो धर्म क्या है बताओ कुछ कहते हो। आपकी बात कौन करता है पाप करने से कोई नहीं डरता है जितने धनवान हैं बेईमान हैं अपराधी गुनहगार हैं देश की शान हैं। क्या उनके गुनाह माफ़ कर सकते हैं माफ़ करोगे तो कैसे इंसाफ कर सकते हैं। मंदिर बनने से क्या भला होगा जब शहर गांव गली गली रावण खड़ा होगा। भगवान नहीं मिलेगा भी अगर तो क्या होगा ये बताओ कहीं तो कोई बंदा बंदा होगा। कुछ तो इंसान इंसान जैसे रहने दो आज सच कहना है सच कहने दो , सच नहीं होगा तो कुछ भी नहीं होगा मंदिर होगा मगर नहीं भगवान होगा। इंसान हैरान परेशान होगा।

   बोले भगवान मैं कहां हूं मुझे ढूंढो खो गया हूं मुझको बंदी कैदी बना लिया है बेबस हो गया हूं। कब कहा मैंने मुझे कुछ भी चाहिए उनको भगवान नहीं बस मंदिर की चाहत है। मैं उधर का रहा न इधर का हूं मेरी दोनों तरफ मुसीबत है। वो जो कहते हैं क्या सदाक़त है कोई पूछे ये क्या सियासत है भगवान को बेचने लगे हैं और कहते हैं यही शराफत है। उनको मुझसे नहीं मुहब्बत है झूठ बोलने की जिनकी फ़ितरत है सत्ता वालों की बड़ी खराब आदत है। मुझसे पूछो मेरी मुसीबत है मुझको घायल किया है अपनों ने गैरों से नहीं शिकायत है आखिरी घड़ी याद आता है राम नाम वर्ना हर रोज़ झूठी दौलत है उनकी शोहरत नहीं शोर है झूठ का सच की पूछना क्या हालत है। इक ग़ज़ल पढ़ते हैं।

           इस ज़माने में जीना दुश्वार सच का ( ग़ज़ल ) 

                           डॉ लोक सेतिया "तनहा"

इस ज़माने में जीना दुश्वार सच का
अब तो होने लगा कारोबार सच का।

हर गली हर शहर में देखा है हमने
सब कहीं पर सजा है बाज़ार सच का।

ढूंढते हम रहे उसको हर जगह , पर
मिल न पाया कहीं भी दिलदार सच का।

झूठ बिकता रहा ऊंचे दाम लेकर
बिन बिका रह गया था अंबार सच का।

अब निकाला जनाज़ा सच का उन्होंने
खुद को कहते थे जो पैरोकार सच का।

कर लिया कैद सच , तहखाने में अपने
और खुद बन गया पहरेदार सच का।

सच को ज़िन्दा रखेंगे कहते थे सबको
कर रहे क़त्ल लेकिन हर बार सच का।

हो गया मौत का जब फरमान जारी
मिल गया तब हमें भी उपहार सच का।

छोड़ जाओ शहर को चुपचाप "तनहा"
छोड़ना गर नहीं तुमने प्यार सच का। 







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