जुलाई 22, 2020

कोरोना रटते जग मुआ ( कथा-सागर ) डॉ लोक सेतिया

      कोरोना रटते जग मुआ ( कथा-सागर ) डॉ लोक सेतिया 

         गुरूजी घर बैठे ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं आधुनिक गुरूजी वीडियो पर सतसंग का अर्थ समझा रहे हैं। आपने अभी तक चैनल को लाइक नहीं किया फेसबुक ट्विटर पर इंस्टग्राम पर फॉलो नहीं किया तो पहले यही शुभ काम करें फिर घंटी बजाएं सोते हुए को जगाएं। कहीं और मत जाएं यहीं सब है पहले आएं पहले पाएं हर किसी मत आज़माएं आओ आपको उनसे मिलवाएं जिनके नाम की माला से भवसागर से पार हो जाएं। क्यों हम अमरीका चीन से घबराएं झूठी लगन लगाकर बंदे फिर पाछे पछताएं। कौन कौन कोरोना वाला कैसे समझें और समझाएं कोरोना से बचना है या कोरोना को पास बुलाएं। सच्ची बात किसको पता है चलो किस को ढूंढ कर लाएं लेकिन जाना कहीं नहीं है अपने मन को ये समझाएं बाहर कुछ भी नहीं मिलेगा मिलेगा सब जब भीतर को जाएं। अंतर्मन की बात को समझें मन भटकेगा मन को समझाएं उसकी लीला कौन है जाना आओ मिलकर कोरोना गायें। कुछ भी नहीं सच इक वही सच है सच को समझें सच समझाएं। बना लिए भगवान भी कितने और कितने ईश्वर खुदा बनाएं नहीं कोई बचाता कोरोना से काहे किसकी शरण को जाएं। मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे गली गली कब तक चुनवाएं नहीं वहां पर मिलता कोई घर पर कीर्तन कर सुख पाएं। ये भक्ति कोई खेल तमाशा जो दुनिया को हम दिखलाएं अपने भीतर रहता है वो कस्तूरी है हम मृग की तरह दौड़ते ही जाएं फिर पछताएं। 

      नीरज जी की बात को समझें कोई ऐसा मज़हब नया चलाएं जिस में इंसान को बस केवल इंसान बनाएं। मंदिर मस्जिद के झगड़े जिनके हैं उनको लड़ने दो हम सभी हैं उसके बंदे आपस में मिलकर झूमें गाएं। किसी की चालों में बातों में आकर अपना चैन मन का नहीं गंवाएं इक उसी ने सभी को बनाया मूर्ख हैं जो उसको बनाएं। मूर्खों की टोली कहती है तुमको ज्ञान की बात बताएं ये सब इक थैली के चट्टे बट्टे हमको बांटें मौज मनाएं अब तो अपने दिल से सोचें उनकी चालों से बच जाएं। जिनको उसका पता नहीं है कहते हैं सबको उस से मिलवाएं ये भटके हुए राही हैं खुद अंधे राह सबको दिखलाएं। करते सब कोरोना कोरोना नहीं जानते है कौन कोरोना क्या होना है कब क्या होना। ये पीतल है चमकता सोना जागो जागो तुम मत सोना जागना है पाना सोना है खोना बस इतनी सी बात नहीं समझे और नहीं किसी बात का रोना। जो भी करते थे ऊंची आवाज़ में बड़ी बात उन सबको कोरोना ने जमाई जमकर लात नहीं समझे फिर भी शायद वो अपनी औकात।

     खेल खिलाड़ी और खिलौना इसका उसका किस किस का कोना उनको पाना तुमको खोना। जिनकी देखी सुनी बढ़ाई उनको दौलत पाप की कमाई झूठी शान नहीं काम आई जब अपने पांव में फ़टी बुआई। उनके दान धर्म के चर्चे उनके शोहरत उनके खर्चे हैं सारे झूठे ही पर्चे नहीं किसी काम के चर्चे। कितना बड़ा अंबार है जिनका बस दो गज़ आखिर आकार है उनका काली सफेद कैसी कमाई लूट की दौलत काम नहीं आई। जब कोरोना दर्शन देता है साथ नहीं जाता कुछ भी किसी के जाने किस काम की सोने की लंका बजा करता था जिनका भी डंका उनका नहीं निशान भी बाकी और कितने अरमान हैं बाकी। कहते करते समाज की सेवा खाते हैं सेवा का मेवा ऐसा कोई धर्म नहीं है उनको कोई शर्म नहीं है। आखिर कोई हिसाब तो होगा पाया खोया अच्छे बुरे कर्म का दूध और पानी का जली आग सब राख भी होगा। क़यामत के दिन इंसाफ़ भी होगा कोई गुनाह नहीं माफ़ भी होगा जिसकी जैसी करनी उसकी होगी वैसी ही भरनी। किस भगवान का बनवाओगे तुम मंदिर जिसकी ऊंची ईमारत जिस की होगी अकूत दौलत क्या उस में भगवान मिलेंगे या फिर नफरत के भेदभाव के इंसान नहीं शैतान मिलेंगे। भगवान का नाम बदनाम किया है क्या क्या उसके नाम किया है खुदा ईश्वर वाहेगुरु जीसस क्या इनका कारोबार करोगे कब तक कितनी बार करोगे। मोह माया झूठ के जाल से छुटकारा पाओगे कैसे इक दिन बाबुल के घर जाना है अपने दाग़ छुपाओगे कैसे। आज की कथा सतसंग बस इतना है आखिर में भजन की तरह आरती समझ इस ग़ज़ल को मिलकर गाओगे।

  आया नहीं दाग़ अब तक छुपाना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

आया नहीं दाग अब तक छुपाना
मैली है चादर हमें घर भी जाना।

हम ने किया जुर्म इक उम्र सारी
बस झूठ कहना नहीं सच बताना।

सुन लो सभी यार मुझको है कहना
की जो  खताएं उन्हें भूल जाना।

मुझ से बुरा और कोई नहीं है
मैं खुद बुरा हूं भला सब ज़माना।

दस्तूर मेरा यही तो  रहा है
जीती लड़ाई को खुद हार जाना।

तुमने निकाला हमें जब यहां से
फिर ठौर अपना न कोई ठिकाना।

"तनहा" जहां छोड़ जाये कभी जब
सबको सुनाना उसी का फसाना।

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