जून 04, 2020

सावधान ये पोस्ट मत पढ़ना परेशान हो जाओगे ( विचार - विमर्श , चिंतन - मनन ) डॉ लोक सेतिया

    सावधान ये पोस्ट मत पढ़ना परेशान हो जाओगे 

                       ( विचार - विमर्श , चिंतन - मनन ) डॉ लोक सेतिया 

   आज इक पोस्ट पर सवाल किया गया था एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स क्यों होते हैं। जाने क्यों मुझे लगा इस को सोच समझ कर विस्तार से समझना समझाना चाहिए। ये समझ केवल मेरे डॉक्टर होने और एलोपैथिक एवं आयुर्वेदिक दोनों ही तरह की शिक्षा और ईलाज के 45 साल के अनुभव से ही नहीं आई है बल्कि मेरे सामाजिक सरोकार को लेकर जागरूक रहने और जागरूकता फैलाने से दोनों के साथ होने से हो सकी है।
 
     हम तलवार चाकू छुरी पिस्टल बंदूक को अपनी सुरक्षा अपने कार्य में उचित उपयोग भी कर सकते हैं और इन को किसी को या खुद को नुकसान पहुंचाने को भी इस्तेमाल कर सकते हैं। आपने जानकर किया या बिना जाने किया मगर गलत ढंग से इस्तेमाल किया तो अंजाम वही होगा। ठीक इसी तरह आपने खुद लापरवाही की या किसी डॉक्टर ने बिना सोचे समझे आपको सलाह दे दी जो ज़रूरी हर्गिज़ नहीं थी बात एक ही है। लेकिन डॉक्टर भी आपको दवा लिखते हैं अपनी समझ और राय के अनुसार जो हमेशा सही नहीं भी हो सकती है। अब आपको लगेगा ये तो मैंने उलझन खड़ी कर दी अपनी मर्ज़ी से नहीं और डॉक्टर की सलाह से भी नहीं तो फिर किस तरह निर्णय करें। आपको बाज़ार से अपने लिए जो भी खरीदना होता है आपकी ज़रूरत को पहले देखते हैं फिर अपना आंकलन करते हैं कौन किस कसौटी पर खरा है वस्तु भी अच्छी और मूल्य भी उचित हो , ये आपको जीवन के अनुभव समझाते हैं। मगर अपने स्वास्थ्य को लेकर आपने कभी गहराई से विचार किया समझा कौन डॉक्टर आपको उचित सलाह देता है आपको कब किस समस्या को लेकर किस पैथी की दवा लेनी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण ये है कि आप अपने स्वास्थ्य और जीवन का कितना महत्व समझते हैं।  मैंने कितनी बार अपनी जान पहचान के लोगों को दोस्तों रिश्तेदारों को कहा है कि आप उपचार जिस किसी से चाहे करवा लेना मगर कभी भी कोई सेहत संबंधी परेशानी हो मुझे बताना आपको उचित सलाह देकर मुझे ख़ुशी होगी , फिर भी बहुत बार लोग बाद में बताते हैं या जब देर हो गई तब सलाह लेते हैं। वास्तव में अधिकांश लोग सोचते हैं उनको जानकारी है जो वही बहुत है मगर उनकी जानकारी होती है शहर में कौन सा डॉक्टर या अस्पताल अच्छा समझा जाता है जबकि उनकी तब की समस्या के लिए मुमकिन है वो सही नहीं हो और कोई बेहतर विकल्प हो।

     हमारा देश की सरकार का तौर तरीका स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर कभी भी तार्किक और वास्तविक मकसद को समझ कर उचित होता नहीं है। बल्कि अब तो सरकार इस को लेकर उदासीन और हद से अधिक बेपरवाह हो गई है। अभी कोरोना की समस्या को लेकर भी उसकी जानकारी समझ और निर्णय आधी अधूरी ही नज़र आई है। ये विडंबना है कि आधुनिक समय में स्वस्थ्य सेवाओं को लेकर कोई साफ नियम और कानून अमल में नहीं लाये जाते हैं। जिस तरह की कड़ी व्यवस्था नागरिक की जान की सुरक्षा को जानकर होनी चाहिए है नहीं और राज्य की सरकारें कुछ लोगों के दबाव में सालों से बने नियम कानून भी लागू नहीं करती हैं। ऐसे में आम नागरिक को नहीं मालूम सही क्या है गलत क्या है। कारण ये है कि हमारी विधायिका संसद विधानसभा इसको लेकर संवेदनशील नहीं है और कई राजनेताओं के स्वार्थ जुड़े हुए हैं जो निजि शिक्षा संस्थान और नर्सिंग होम या मेडिकल कॉलेज का कारोबार करते हैं। जब इसके साथ सरकारी अधिकारी और विभाग भी शामिल हो जाते हैं तब मिल बांटकर खाने की आदत से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विषय भी महत्वहीन समझे जाते हैं। इसका मुख्य कारण राजनेताओं अधिकारी वर्ग और धनवान लोगों को ये सब आसानी से उपलब्ध होना है। उनको इस बात की कल्पना तक नहीं है कि उनके अपना कर्तव्य नहीं निभाने से जाने कितने लोग ऐसी व्यवस्था का शिकार होकर बदहाल और मौत आने से पहले मौत के शिकार हो जाते हैं समय पर उपचार नहीं मिलने या पैसे नहीं होने से।

     कुछ समय पहले इक सर्वेक्षण में चौंकने वाली बात सामने आई थी। जो बड़े बड़े पांचतारा नर्सिंग होम अस्पताल लाखों रूपये का बिल लेते हैं हज़ारों रूपये डॉक्टर की फीस होती है उनकी लिखी पर्ची पर हज़ारों रूपये जांच पर खर्च करवाने के बाद भी निदान नहीं लिखा हुआ था साफ साफ , अधिकतर में रोग के नाम से पहले सवालिया निशान  ? लगा हुआ था जिस का अर्थ होता है ये संभावित है पक्का नहीं। सर्वेक्षण करने वाले अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि जब बड़े बड़े अस्पताल की ये हालत है तो नीचे क्या नहीं होता होगा। आपने देखा मीडिया टीवी चैनल पर कोई अंकुश नहीं अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर विशेषाधिकार की तलवार लेकर सच के रखवाले सच को ही क़त्ल कर रहे हैं। बिकना नहीं है ये नागरिक के अधिकारों का हनन करने की सुपारी लेने जैसा अपराध है। जनता की समंस्याओं को छिपाना सत्ता और धनवान लोगों की महिमा का गुणगान करना पैसे विज्ञापन के लालच में जिसे रिश्वत कहना उपयुक्त होगा। यही सरकार ने शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं को लूट का माध्यम बनाने वालों पर कोई निगरानी नहीं रखने का काम किया है। सही मायने में सांसदों- विधायकों सभी दलों को सत्ता का खेल और बहुमत का गणित छोड़ कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं लगता है। सत्ता ही ध्येय भी है और ईमान भी और राजनीति का मकसद भी , देश जनता की कोई कल्याण की बात ही नहीं है।

आपने शोर सुना होगा आयुर्वेद और योग को लेकर , इस में खुली अंधेरगर्दी है पैसा बनाने को जिनका आयुर्वेद से कोई सरोकार नहीं कोई रोग की उपचार की समझ नहीं बाज़ार लगाए कारोबार कर रहे हैं। मगर आपको बिमारी की दवा नहीं गोरेपन की मोटापे की सुंदरता की कब्ज़ की अन्य तमाम ऐसी बातों को लेकर जिन के लिए किसी क्वॉलिफिएड डॉक्टर की राय नहीं इश्तिहार से उनका उत्पाद खरीदना है क्योंकि आपको फ़िल्मी सितारे खिलाड़ी विज्ञापन देते दिखाई देते हैं आपको उनका झूठ सच लगता है। यकीन करें वो लोग खुद कभी इन का उपयोग नहीं करते आपकी जान आपका पैसा उनकी आमदनी का ज़रिया है। कुछ इसी तरह हम ने ज़िंदगी में आने वाली समस्याओं और हालात और सामन्य जीवन की ज़रूरतों को लेकर कभी कोई समझ कोई सोच विकसित नहीं की है तभी कदम कदम पर हम बेबस होकर किसी न किसी के जाल में किसी के चंगुल में फंसे होते हैं। किताबी शिक्षा के साथ हमको वास्तविक जीवन की बातों समस्याओं और तौर तरीकों को भी जानना चाहिए। 

 

1 टिप्पणी:

  1. सही कहा.... राजनेताओ के पाँचतारा होटल नुमा अस्पतालों स्कूलों में पैसे लगे हैं।

    और लोग इश्तेहार से दवा खरीद लेते हैं न कि उपचार से 👌👍

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