मई 15, 2020

जादू है नशा है मदहोशियां ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

  जादू है नशा है मदहोशियां ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

खूबसूरती हुस्न अदाएं नज़ाकत इक चिंता बनी रहती है असर कहीं कम नहीं हो जाए। चालीस पार करते ही संवरने की ज़रूरत बढ़ जाती है। कुछ ऐसा ही उनके साथ होता है जिनका शोहरत पाने का ख्वाब सच हो जाता है तो शायर की कही बात याद आती है सताती है तड़पाती है , शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है , जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है। सत्ता के खिलाड़ी को खेल की चिंता से अधिक जीत की हार की चिंता होती है। जब हालात अच्छे होते हैं तब उल्टा फैंका भी सीधा पड़ता है। यहां आपको इक की व्याख्या समझानी ज़रूरी है। गांव के दो चौधरी रोज़ आपस में जुआ खेलते थे , इक दिन उन में से एक अपने घोड़े पर बैठ कहीं जाने को तैयार था कि तभी दूसरा उसके दरवाज़े पर आ पहुंचा। देख कर कहने लगा आज तो बहुत मन था खूब जमकर खेलने का मगर आप तो जा ही रहे हैं चलो किस्मत खराब है कि अच्छी है आज़माने की बात रह गई। सुनकर वो चौधरी बोले भाई चिंता क्यों करते हो बताओ कितना दांव पर लगाना चाहते हैं अभी पल भर में बाज़ी खत्म हो जाएगी। घोड़े पर बैठे बैठे कहने लगे देखो मैं अपना जूता उछालता हूं आप बताना सीधा या उल्टा , नीचे ज़मीन पर जूता जैसे पड़ेगा जीत हार का फैसला हो जाएगा। घर से जाते जाते भी एक चौधरी जीत कर खुश थे और एक हार कर भी खुश थे हसरत बाकी तो नहीं रही खेलने की।

   ये पुराने समय की बात थी आजकल चौधरी अपने विरोधी की क्या उसके पुरखों तक की पगड़ी उछालते हैं। दाग़ अच्छे बन जाते हैं उनके साथ मिलने से सबसे अधिक दाग़दार उनकी के लोग हैं मगर कहते हैं इधर कोई दस रूपये में दाग़ साफ करता है कोई समझाता है जब कोई आप पर भरोसा करता है तब आपका फ़र्ज़ बन जाता है उसके आंचल को बेदाग़ करने का जिस का आंचल मैला हुआ वो भी कहती है मेरे पास भी है हमने मिलकर इसको बनाया है नंबर वन। पहले आज़माओ फिर विश्वास करो। ये सारा खेल नंबर वन को लेकर है। बीवी कुली हीरो से कितनी फ़िल्में नंबर वन जोड़ कर बनाई गई हैं। खान बंधुओं को लेकर मीडिया बहुत चिंतित रहता था। किसी अभिनेता को तो सदी का महानायक घोषित कर दिया गया है। टीवी चैनल कितने घटिया और बिकाऊ समझे जाने लगे हों रहते सब नंबर वन की दौड़ में शामिल हैं। टीआरपी का नशा पागलपन से बढ़कर मदहोश करता है।
         
     कोरोना क्या आया तमाम लोगों की धड़कनें बढ़ने लगी हर किसी को जान की चिंता से अधिक किसी जहान की चिंता सताने लगी। अपनी अपनी सबकी परेशानी होती है , जाने कब से उनकी चाहत थी अपनी शोहरत को बुलंदी के शिखर पर पहुंचाने की। क्या नहीं किया और क्या नहीं छोड़ दिया , सबकी चादर को मैली बताने से लेकर जिसकी चादर पर कोई छींटा भी नहीं था उस पर भी तोहमत लगा दी आपने चादर को जस की तस रख दीनी चदरिया किस तरह बचाए रखा जब हम सभी हम्माम में नंगे नहाते हैं सदन में सभाओं में कीचड़ उछालते हैं कोई तो छींटा नज़र आता सच बड़ी निराशा हुई उनको। कोई रैनकोट पहन नहाते हैं खिसियाहट में कह दिया मगर मौनी बाबा मौन रहे। कहते हैं जहां लोग ऐसे चर्चा करते हैं समझदार खामोश रहना उचित समझते हैं , सफाई देने की कोई ज़रूरत ही नहीं जब पूछने वाला खुद आरोप लगाने में ही बेगुनाही का सबूत दे रहा हो।नम्ब्र वन होने को एड़ी छोटी का ज़ोर लगाया है कभी ऐसे ऐसे काम भी किये जो नेकनामी नहीं बदनाम करने वाले समझे गए। मगर बदनाम होना भी नाम वाला होना होता है ये सोचकर मनमौजी अंदाज़ से ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाते रहे।

   टीवी वाले अखबर को खबर बनाते हैं खबर की खबर नहीं रखते। जाने किस आधार पर घोषणा नहीं करते बल्कि कोई राज़ की बात बताते हैं कि विश्व भर के सभी देश कोरोना को लेकर उन्हीं से सलाह मशविरा करते हैं। साल पहले दावा था उनसे पहले जितने भी इस कुर्सी पर रहे उन सभी से इनकी शोहरत बढ़कर है। अब जब तमाम अटकलें हैं और हज़ारों सवाल हैं जिनका जवाब नहीं है उनके पास और तब सवाल करने पर ही सवाल उठाते हैं। दुष्यन्त कुमार के शब्दों में , हमने सोचा जवाब आएगा , इक बेहूदा सवाल आया है। जाने कोई जादू की छड़ी है जबाब के हाथ लगी , जो दुनिया को कोरोना को लेकर कोई और नहीं दिखाई देता। ये टीवी वालों की काल्पनिक कहानी हो मुमकिन है क्योंकि उनके लिए सब कुछ मुमकिन है अन्यथा हम से अधिक विकसित और आधुनिक देश जो वैज्ञानिक सोच से चलते हैं आस्था भरोसा अंधविश्वास से किस्मत नहीं आज़माते डॉक्टर्स और कोरोना के शोध पर हमसे कहीं अधिक ध्यान देते हैं शोध पर जितना धन ज़रूरी खर्च करने को तैयार हैं भला उनसे क्या सलाह मांग सकते हैं। हां ये मुमकिन है उनसे इस बात की राय कोई शासक लेता हो कि कैसे कुछ भी नहीं कर के भी सब कुछ कर दिया और क्या कुछ नहीं कर सकते कहने और समझने का आत्मविश्वास किस तरह से हासिल किया जा सकता है। हमारे हरियाणा की कहावत है , जिसकी खाओ बाजरी , उसकी साजो हाज़िरी। ये नशा ये मदहोशी सब पैसे का खेल है , जिस दिन खेल खत्म पैसा हज़्म।  

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