नारद जी सुन रहे आधुनिक गीता ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
अचानक आकाश मार्ग से विचरण करते हुए नारद मुनि जी को गीता गीता का शोर ऊंची ऊंची आवाज़ में सुनाई दिया। जिज्ञासा हुई फिर से गीता का ज्ञान देने कौन आया है धरती पर जाकर दर्शन करने चाहिएं। अपना पुराना रूप बदल इंसान बनकर उपदेश देने वाले के कक्ष में चले आये , नारद जी की ये आदत बदलती नहीं जब जिस जगह चाहा बिना सूचना दिए चले जाते हैं। दरवाज़े के बाहर पहुंचे तो भीतर से वार्तालाप सुनाई दे रहा है उत्सुकता हुई समझने की और चुपचाप खड़े होकर चर्चा का आनंद लेने लगे।
कितने इश्तिहार बंटवा दिए स्वागत द्वार बनवाये हैं कितने ख़ास लोग शामिल होंगे सरकारी सहयोग से क्या क्या हासिल होगा। उनकी अपनी लिखी हुई घोषित गीता कितने ऊंचे दाम पर कौन कौन खरीदेगा और अभी तक किस सरकार ने कितनी गीता की किताबें उनकी ऊंची कीमत पर खरीदी हैं। नेताओं से सरकार से गठजोड़ से पिछले साल से कितना अधिक मुनाफा कारोबार में होने की संभावना है। अपने नाम को कितना अधिक आसमान से अधिक ऊपर विश्व भर में उपदेशक होने का सबसे बड़ा जानकर होने वाला घोषित किया जाना अभी बाकी है। नारद जी को जिस बात की आशा थी गीता ज्ञान को लेकर इक शब्द भी सुनने को अभी तक नहीं मिला था। जनाब क्या मैं आपसे मिलने भीतर आ सकता हूं दरवाज़े से बाहर खड़े नारदजी ने पूछा तो अंदर आने की अनुमति मिल गई। जाकर जो भी आसन दिया गया नारदजी बैठ गए। बहुत चेले चपटे तमाम तरह की बातें अपने उन गुरूजी से करते रहे नारदजी को लग रहा था कोई कारोबार चल रहा है। नारदजी से पूछा गया आपको क्या कार्य है क्या शिष्य बनने की इच्छा से आये हैं या चरण छूने की अभिलाषा है। शाम को उपदेश से पहले आपका भी नाम घोषित किया जा सकता है अगर चाहते हैं तो तय राशि देकर नाम लिखवा सकते हैं। आपको मंच पर बुलाकर गुरूजी की फोटो के साथ सम्मान दिया जाएगा। नारदजी बोले भाई आपको ग़लतफ़हमी हुई है मेरे पास पैसे नहीं हैं कुछ भी खरीदने को। गीता के ज्ञान की कोई बात करते हैं तो सुनने की चाहत थी।
उपदेशक ने पास बुलाया और समझाया कि शाम को सभा में गीता का पाठ सुनाते हैं अवश्य आईयेगा। नारदजी ने कहा श्रीमान क्या थोड़ी बात करने को अभी समय है मुझे कुछ सवाल परेशान किये हुए हैं। हां ज़रूर पूछ सकते हैं आपके हर सवाल का उतर यहीं मिलेगा। नारदजी ने अपने झोले से ताज़ा अख़बार निकाला और खबरें पढ़कर सुनाने लगे। हत्या बलात्कार लूट दंगे फसाद और देश की राजनीति की गंदगी और शासकवर्ग के जनसेवा से भटकने और सत्ता का मनमाना दुरूपयोग करने को लेकर पूछा क्या आप लोगों को इस अधर्म को लेकर कोई चर्चा करते हैं ताकि सबको धर्म अधर्म का भेद समझाया जाये। उपदेशक जी कहने लगे नासमझ इंसान आप किस युग में रहते हैं भला किसी की शामत आई है जो इन सभी ताकतवर लोगों के बारे में ज़ुबान भी खोले। नारदजी ने सवाल किया तो क्या आपको गीता से कायरता का ज्ञान मिला है। जब अपने साधु भेस धारण किया है और गीता का पाठ करते हैं तो किस बात का डर है कैसी चिंता है। क्या जीना है क्या मरना है क्या पाया है खोना क्या है। उपदेशक बोले भाई अभी जाओ शाम को आकर सभा में ध्यान पूर्वक सुनना फिर समझ जाओगे। ठीक है बोलकर नारदजी बाहर चले आये।
शाम को नारदजी आठ बजे ही सभा स्थल चले आये जबकि उपदेशक ने बताया था आठ बजे मुझसे पहले छोटे गुरु उपदेश देते हैं मैं एक घंटा बाद नौ बजे आता हूं। ये अपने महत्व को समझने या समझाने का ढंग होगा मगर नारदजी आठ बजे ही सही समय पर चले आये। देखा इक बाज़ार लगा हुआ है हर सामान पर उपदेशक गुरूजी का नाम फोटो अंकित है और महंगे दाम बिकता है। दुकानदार से जाकर पूछा भाई यहां लोग गीता ज्ञान का सार समझने अर्थ जानने आते हैं और आप इस जगह व्यौपार करने आये हैं। धर्म की बात छोड़ अर्थ का मोह लिए हुए हैं। दुकानदार ने बताया कितने नासमझ हैं ये सारा धंधा उन्हीं का है पांच दिन के उपदेश की कीमत पांच लाख लेते हैं। शुद्ध कारोबार है इसमें धर्म की खोज मत करना , ये जो भी लोग खड़े हैं कतार लगाकर कोई धर्मात्मा नहीं हैं सब दो नंबर की आमदनी से कुछ दान देकर दानवीर और धर्मात्मा होने का तमगा खरीद ले जाते हैं। आपको गीता को समझना है तो इनकी हज़ार रूपये वाली ज़रूरी नहीं है बाज़ार से सौ दो सौ की खरीद पढ़ लेना। इधर कोई गीता पढ़ने सुनने नहीं आता है सबके मकसद कुछ और ही हैं। हैरान मत होना यहां किसी ने आपको नहीं पहचाना मगर मैंने आपको पहचान लिया है। नारद जी बोले क्या और कैसे मुझे पहचान लिया है। दुकानदार बोला कि आपके पास आते ही बिना आपके मुख खोले ही , नारायण -नारायण की ध्वनि सुनाई दी थी मुझे तभी समझ लिया था नारदजी हैं आप। ये उचित जगह नहीं है गीता को सुनने समझने के लिए आपको किसी और जगह जाना होगा।
तभी ऊपर से आते उपदेशक मिल गए तो नारदजी ने उनके सजाए बाज़ार को देख कर कहा था , अपने बुलाया था चला आया मगर ये सब गीता से आपको समझ आया होगा मुझे नहीं समझना है।
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