अक्तूबर 04, 2019

नेता की विशेषताएं ( अधर्म-कथाएं ) डॉ लोक सेतिया

      नेता की विशेषताएं ( अधर्म-कथाएं ) डॉ लोक सेतिया 

   लिखने वाले को सच की कलम ईमान की स्याही को फेंक देना होता है। झूठ के देवता की वंदना से नेता की हर कहानी को कथा कहना होता है। नेता की असलियत आसानी से सामने नहीं आती है जो होता नहीं दिखाई देने देता और जो कदापि नहीं वो नज़र आने को कुछ भी करता है। जनता को आप अबला नारी समझ सकते हैं और नेता उस शख़्स को समझना होगा जो उस पर बुरी नज़र रखता है उस बेचारी अबला नारी को भरोसा दिलाता रहता है कि मुझे तुझसे प्यार है और बिना किसी स्वार्थ के है। मुझे चिंता है कोई तुम्हारी अस्मत को नहीं लूट जाये मुझे रत्ती भर भी इच्छा नहीं है तुम्हें खराब नियत से छूने की। मगर दिल में हसरत छुपी रहती है कब मौका मिलते ही जनता का सब कुछ लूट सकता है। नेता महिला भी बन सकती है मगर यही बात उस में थोड़ा बदले ढंग से रहती है। साफ सच्ची बात नेता होने को मक्कार झूठा आवारा और हद दर्जे का स्वर्थी जो मतलब को पांव पकड़ सकता है तलवे चाट सकता है और अवसर मिलते ही गले लगाकर पीठ में छुरा घौंप सकता है और किसी का कत्ल करते हुए उसको कोई अपराधबोध नहीं होता है। सफ़ेद रंग के अंदर काला रंग छुपा रहता है इसलिए हर किसी को इस तरह के लोगों से सावधान रहना चाहिए। 

         चुनाव के समय किसी नेता को अपनी ईमानदारी सब से खूबसूरत दिखाई दी और बाकी जितने भी नेता चुनाव लड़ना चाहते थे दाग़ी और अपराधी हैं इसका प्रमाण देते रहे। नेता आरोप लगाते हैं अपने पर सवाल का जवाब देना तौहीन समझते हैं मेरे नाम के साथ जी नहीं लिखा आपकी खैर नहीं की बदले की भावना हर नेता में होती है। राजस्थान में लोग कुत्ते को कुत्तो जी कहकर बुलाते हैं आदर देना उनसे सीख सकते हैं। नेता जी से उनकी पत्नी सवाल कर सकती है ये हर महिला का विशेषाधिकार हुआ करता है। नशे में नेता जी किसी का नाम ले रहे थे मेरी जान हो तुम बिन नहीं जी सकता , नशा उतारना आता है हर पत्नी को। नशा उतरने के बाद पूछा बताओ किस कलमुंहीं की बात है बेशर्मी से हंस दिए जानेमन सत्ता की कुर्सी को प्यार से नाम दिया हुआ है मुझे गलत नहीं समझना आपको छोड़ किसी को देखना भी पाप है। पत्नी भोली नहीं होती मगर भोलापन का दिखावा करना जानती है और रंगे हाथ पकड़ कर फिर जो कहना है करना चाहती है पता चलता है। मगर भारतीय नारी देश की जनता की तरह सब सहती है रोने धोने के बाद झूठी कसम अपनी ही खाने पर चुप हो जाती है और नेता मन ही मन उसके मरने की बात पर चिंतन करता है नहीं मरने वाली कभी। मुझे मारकर खुद सती हो सकती है उपवास रखती है मगर जीने नहीं देती मरने भी नहीं देती है। 

    पत्नी ने सवाल किया ये क्या बकवास ब्यानबाज़ी की है ईमानदारी वाली बढ़ चढ़ कर बात कहने की कोई ज़रूरत नहीं थी। विधायक बनने से पहले जितना पैसा खर्च किया अपने इश्तिहार छपवाने पर उतना तो चुनाव आयोग इजाज़त भी नहीं देता बताओ चुनाव क्या खाक लड़ोगे बिना पैसे के। नेता जी बोले पगली तुम नहीं समझी समझने वाले समझ गए हैं दल की निष्ठा की ईमानदारी की बात है। बाकी सब दलबदलू लोग हैं उनके पिछले पाप धुले नहीं हैं सत्ता की चादर से ढके गए हैं छुपाने की नाकाम कोशिश है छुपे नहीं हैं किसी की नज़र से भी। ये जो पब्लिक है सब जानती है। मुझे भी पहचानती है झूठ सच सब जानती है मगर अंधी है देखती नहीं है आवाज़ के शोर से पहचानती है किस ने उसको बख्शा है। पत्नी को याद आया शादी से पहले का ज़माना नेता जी का जाल बिछाना और मछली का फंस जाना और फिर दोनों का समझना और पछताना। ये पहेली अनसुलझी रहने दो किस ने किस को मुहब्बत के जाल में फंसाया कोई नहीं ये राज़ जान पाया। 

    नेता जी ने फिर समझाया आपको सही अर्थ नहीं समझ आया। इक थानेदार ने ईमानदारी का मतलब यूं समझाया। आधा खाया आधा ऊपर पहुंचाया कभी भी हिस्सा नहीं चुराया , थाने की बोली को निभाया जितना बोया उतना फल खाया। उम्मीदवार बनने को टिकट की कीमत सबने बंद लिफाफे में लगाई है बस मैंने कीमत की जगह खाली छोड़ रस्म निभाई है जितनी मर्ज़ी लिख सकते हैं अपने  पिता की बात दोहराई है।  मुझे छोड़ने की मत पूछना किस किस ने कीमत पाई है बस तुम नहीं मानी मुसीबत घर लाई है। बात सुनते सुनते दोनों को नींद आई है। अधूरी कहानी समझ आपको पूरी नहीं आई है सुबह बाकी बताएंगे। मीनाकुमारी की बात याद आई है। ज़माना बड़े शौक से सुन रहा था हमीं सो गये दास्तां कहते कहते। नेता जी की नींद खुली तो नज़ारा बदल चुका है उनकी ईमानदारी किसी काम नहीं आई और जिस को सबसे बड़ा खराब कह रहे थे उसी को दल के बड़े नेताओं का वरदान मिला है। नेता जी अपने दिल के टूटने का खुद तमाशा देख रहे हैं और लोग उनके दिल के टुकड़ों को गिनते फिर रहे हैं।

        समझदार राजनेता वक़्त की नज़ाकत को समझते हैं विलाप नहीं करते मुराद पूरी नहीं होने पर। कोई और चौखट तलाश लेते हैं झट से और रंग बदलते हैं भगवा छोड़ हरा अपना लेते हैं। पांच साल पहले का रंग का बदलना भी उचित था फिर तीसरी बार बदलना भी अच्छा है। रंग बदलती दुनिया है नेताओं ने गिरगिट से सीखा है मौसम के साथ जिस डाली जिस पेड़ की शाख पर हो उसी जैसा हो जाना। ये विशेषता बड़े काम आती है।

         


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