सितंबर 10, 2019

बेक़सी हद से जब गुज़र जाये ( देश के हालात ) डॉ लोक सेतिया

    बेक़सी हद से जब गुज़र जाये ( देश के हालात ) डॉ लोक सेतिया 

     किसी शायर ने कहा है। तू है सूरज तुझे मालूम कहां रात का दुःख , तू किसी रोज़ मेरे घर में उतर शाम के बाद। तूने देखा है कभी एक नज़र शाम के बाद , कितने चुपचाप से लगते हैं शजर शाम के बाद। इतने चुप-चाप कि  रस्ते भी रहेंगे ला-इल्म , छोड़ जाएंगे किसी रोज़ नगर शाम के बाद। लौट आती है मेरी शब की इबादत खाली , जाने किस अर्श पे रहता है खुदा शाम के बाद। ये जो कुछ लोग अपनी खातिर नहीं देश की समाज की खातिर बेचैन परेशान रहते हैं कहते हैं ऐसा क्यों है जबकि बहुत लोग उसी को देख कर भी अनदेखा करते हैं ये कहकर कि ये तो होता रहता है इन दोनों में अंतर संवेदना का है। कुछ अपने से हटकर सबकी बात करते हैं और बहुत लोग अपने मतलब से मतलब रखते हैं। भला किसी की ऐसी फितरत कैसे हो सकती है हम देखते हैं तो समझ नहीं आता है। कोई सरकारी अधिकारी सत्ताधारी नेता के तलवे चाटता नज़र आता है जबकि ऐसा करना उसकी मज़बूरी कदापि नहीं है होना तो ये चाहिए कि सरकारी कर्मचारी अधिकारी अपना कर्तव्य देश और जनता के लिए निष्ठा रखते हुए निभाते और राजनेताओं की मनमानी नहीं स्वीकार करते। संविधान कानून उनको सत्ता पर बैठे नेता की अनुचित बात नहीं मानने का अधिकार देता है इतना ही नहीं आईएएस आईपीएस अधिकारी नहीं चाहे तो बड़े पद पर बैठकर भी कोई नेता घोटाला नहीं कर सकता है। अर्थात आज तक हर घोटाला इन लोगों की मर्ज़ी और सहयोग से ही हुआ है। मगर इन पर कोई कठोर करवाई होती नहीं है क्योंकि अपने पर जांच से लेकर दंड तक देने का काम खुद इनको करने का चलन है। जैसे टीवी अख़बार सोशल मीडिया वाले सबको लताड़ते हैं खुद क्या करते हैं कोई उनसे नहीं पूछता। बिक चुके हैं और निष्पक्ष होकर जागरुकता की बात नहीं सत्ता का पैसे वालों का गुणगान करते हैं। 

      अख़बार में कभी पाठकनामा कॉलम छपता था लोग अपनी समस्या लिखते थे और सरकारी विभाग को जवाब देना लाज़मी लगता था। शायद ही कोई अख़बार अब वो करता है। इधर सोशल मीडिया पर कितनी तरह से उनकी असलियत सामने लाने का काम किया जाता है जो कनून के रखवाले बनकर कानून से खिलवाड़ करते हैं पुलिस की वर्दी पहन अपराधी की तरह आचरण करते हैं। मगर ऐसे अधिकारी नेताओं का नाम एक दिन चर्चा में होता है उसके बाद हुआ क्या किसे मतलब है। जब सभी चोर चोर मौसेरे भाई हैं तो कौन किसे दंडित कर सकता है। इक रिवायत या आदत हो गई है सत्ताधारी शासक नेता उनके दल के लोगों के आदेश पर सब उचित अनुचित करने की। सोचता हूं अब लिखना बेकार है कुछ भी कहने से कोई असर नहीं होता सरकार नेता अधिकारी सब चिकने घड़े बन गए हैं मगर क्या उनकी वास्तविकता को उजागर नहीं करना भी उनके कर्तव्य नहीं निभाने और जब जो जैसे जहां मनमानी करने को बढ़ावा देना नहीं होगा। ऐसा पहले तो नहीं होता था जब भी कोई शिकायत करता या ध्यान दिलाता कहीं कोई अनुचित बात को लेकर अथवा उचित काम नहीं करने की बात करता तो कुछ न कुछ असर किसी न किसी पर अवश्व होता था। लेकिन आजकल जैसे कर्तव्य की बात क्या समाज की चिंता की बात क्या सरकार उसके अधिकारी नेता सभी अपने मतलब को जैसे भी मनमानी पूर्वक समाज की अनदेखी कर अपने हित साधने को नियम कानून ताक पर रख अनुचित आचरण करते संकोच नहीं करते हैं।

        आजकल सत्ताधारी दल राज्य भर में रोज़ किसी शहर में सभाओं का आयोजन अलग अलग नाम से कर रहा है। नेताओं की खातिर खूब सजावट और शोर दिखावा किया जाता है और स्थानीय नेता भी अपने नाम इश्तिहार और अपनी राजनीति करने में कोई कमी नहीं छोड़ते हैं। शहर में एक नहीं कितनी जगह अपने मकसद को भीड़ जमा की जाती है और खूब पैसा खर्च किया जाता है शानो शौकत पर। अधिकारी और सरकारी विभाग भी उचित अनुचित की चिंता छोड़ ख़ास लोगों को सब उपलब्ध करवाने में आम नागरिक की आपराधिक अनदेखी करते हैं और रास्ते बंद कर देते हैं अवरोध खड़े कर देते हैं। कुछ घंटे के राजनीतिक आयोजन की खातिर सरकारी विभाग कितने दिन लगा रहता है और सत्ताधारी दल के नेता भी अपनी मर्ज़ी से जो चाहते करवाते हैं। लेकिन उनका काम हो जाने के बाद जिस जगह को शानदार ढंग से सजाया गया था उस को गंदगी सड़क पर रुकावट से लेकर तमाम समस्याएं पैदा कर छोड़ जाते हैं। जैसे कोई मेला लगता है और मेले के खत्म होने के बाद हर रतफ मंज़र हैरान करने वाला हो जाता है। रौशनियों की जगह घना अंधेरा छाया नज़र आता है। ये नेता ये अधिकारी सरकार दावे करती है जनता की भलाई के मगर वास्तव में आम नागरिक की परेशानी के लिए उदासीन रवैया होता है। जो भी सड़क पर रुकावट या अन्य गंदगी उनके आयोजन से हुई उसको खुद ठीक करने की बात छोड़ बार बार बताने पर भी कोई कर्तव्य निभाने को तैयार नहीं होता है। कोई किसी और पर करने का फ़र्ज़ बताकर पल्ला झाड़ता है तो कोई करने को कहने के बाद करता नहीं है। 

       जिस देश में इतनी गरीबी है कुछ लोग कैसे इतना पैसा सरकारी खज़ाने से या खुद सत्ता की आड़ में चंदे के नाम पर जमा कर ऐसे हर दिन शानो शौकत दिखाने को सभाओं की सजावट पर बर्बाद करते हैं। अपनी गंदी स्वार्थ की राजनीति की खातिर भीड़ जमा करने को हथकंडे अपनाते हैं फिर भी तमाम जगह पंडाल खाली नज़र आ ही जाते हैं। मगर उनको क्या उनकी कोई ईमानदारी की मेहनत की कमाई नहीं थी जो बेकार हुई। किसी न किसी तरह उन्हीं गरीब लोगों से ये वसूली होती है। जितने भी नियम हैं जनता पर कड़ाई से लागू करने वाले खुद उनको तोड़ने में हिचकिचाहट नहीं महसूस करते हैं उनको ये याद ही कहां रहते हैं। शासक अधिकारी खुद पर बेतहाशा धन बर्बाद करते हैं तभी देश की जनता बदहाल है गरीब है। जब हर दिन इनके आयोजन समारोह सरकारी विभाग के भी और राजनीतिक दलों के भी आयोजित किये जाते हैं जीना हासिल वास्तव में कुछ भी नहीं होता सिवा उनके शोर और खुद अपने गुणगान करने के ताकि उनकी वास्तविकता की बात कोई नहीं करे , तब आम नगरिक देख कर सोचता है काश इतना पैसा गरीब लोगों की हालत ठीक करने को खर्च किया जाता तो बहुत कुछ बदल सकता था। चांद की बात पर जश्न मनाने से देश की धरती की बदहाली की बात को अनदेखा करना क्या देशभक्ति है। देशभक्ति देशसेवा की बात करते जाने से आपका अपने खुद पर करोड़ों रूपये ऐश आराम सुख सुविधा और मनमाने ढंग से दुरूपयोग करना कोई हद नहीं बची है। सपने देखने से कि सब बढ़िया हो जाएगा कुछ होता नहीं है खुस परस्ती की आदत ने नेताओं और अधिकारीयों ही नहीं टीवी अख़बार वालों से धनवान लोगों तक को स्वार्थ में अंधा कर दिया है ये सब किसी बेरहम शासक की शानदार महल में गुलछर्रे उड़ाना चाहते हैं जब महल से बाहर मंज़र बदहाली का हो।

 

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