अगस्त 05, 2019

कलयुग की रामायण और रामराज्य ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

   कलयुग की रामायण और रामराज्य ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

 शायद ये अजीब इत्तेफ़ाक़ की बात है कि आज 5 अगस्त को टीवी पर लव-कुश सीरियल शुरू हुआ है जो अभी अभी देखा तो आज की सुबह की राजनीति की बड़ी घटना को लेकर विचार आते गए। नहीं साहित्य में राजनीति और धर्म की मिलावट की बात नहीं करना चाहता। मगर कुछ संवाद सुनकर बातें जुड़ती हुई लगीं लेकिन बदले हुए ढंग से। शुरआत राजा राम की बात से हुई जो अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण से धोबी की बात उसके अपनी पत्नी को कुलटा समझने और मार पीट करने पर वार्ता करते राम कहते हैं विश्वास या भरोसा ताकत के बल से नहीं पाया जा सकता है। मोदी सरकार ने संसद में कश्मीर को लेकर धारा 370 हटाने और उस राज्य को विभाजित करने उसे पूरे राज्य का दर्जा नहीं देने जैसे निर्णय करने से पहले कश्मीर की जनता और वहां के राजनेताओं को नज़रबंद कर धारा 144 लगा कर फोन इंटरनेट बंद कर दिया। सेना और संसद में संख्या बल को लेकर मनमाने ढंग से वहां की जनता का भरोसा नहीं पाया जा सकता है। बीच में धोबी का राजा के आदेश पर पत्नी को अपनाना मगर दिल से नहीं विश्वास करना राम को विवश कर देता है। लक्ष्मण कहते हैं धोबी को दंड देने को तब राम बोलते हैं कि प्रजा राजा की संतान होती है उसको मार नहीं सकता रक्षक होता है शासक। लोकतंत्र है अब कोई राजा नहीं है भले शानो शौकत शाही ढंग से सज धज मौज मस्ती उनसे बढ़कर करते हैं मगर जनता की चिंता वोट पाने तक ही। वास्तविक रामायण में शायद नहीं था मगर टीवी सीरियल की रामायण का राम सीता को बन नहीं भेजना चाहता खुद सीता जी जाने की ज़िद करती हैं और महिलाओं के सम्मान की बात करती हैं। लक्ष्मण सवाल करता है बड़े भाई से कि राजा का कर्तव्य निभाना याद है पत्नी के लिए पति का धर्म याद है क्या , राम कहते हैं तुम मेरे सेनापति हो मेरे आदेश का पालन करना ही होगा। लक्ष्मण बोलते हैं मैंने सवाल भाई से किया था जवाब राजा ने दिया है। कितनी मिलती जुलती है ये बात आज की देश की राजनीती से। मोदी जी महिलाओं की चिंता बहुत करते हैं किसी ने उनसे नहीं पूछा उनकी पत्नी भी महिला है उनको अधिकार मिले क्या कभी। जवाब नहीं देते ये  शासक हैं सबसे सवाल करते हैं औरों पर सवाल उठाते हैं खुद जवाब नहीं देते हैं। 

मुझे जाने क्यों आज आपातकाल की घटना फिर से दोहराई जाती नज़र आई , 25 जून 1975 की आधी रात को जो जैसे इंदिरा गांधी ने किया उसी तरह से दिन दहाड़े कश्मीर में मोदी सरकार ने कर दिखाया। ठीक उसी तरह से इनकी पसंद के बड़े पद पर बिठाये लोगों ने ख़ामोशी से सब करने में साथ दिया। याद आया लव-कुश सीरियल में राम याद करते हैं ताज पहनते समय शपथ ली थी , शपथ इन सभी ने भी ली हुई है न्याय बिना पक्षपात और संविधान और सभी के अधिकारों की रक्षा करनी है। ये कलयुग की नई लिखी रामायण है और कलयुगी राजनीति का नया अध्याय है। अब सरकार दावा करती है कुछ पांच-सात साल दे दो कश्मीर को बदल कर दिखा देंगे। पचास दिन मांगते थे पांच साल बीत गए अच्छे दिन खो गए नहीं मिले जनता को , बंद हैं भाजपा की तिजोरी में तभी विश्व की सबसे अमीर पार्टी बन गई है। हद तो ये है अब सरकार की किसी बात पर सवाल करते ही आपको कटघरे में खड़ा कर देते हैं। सेवक बनकर चौकीदार होने का दम भरते रहने के बाद इस बार कहते हैं फकीर हैं और आजकल कलयुग के भिक्षुक जितना भी मिल जाये लालच मिटता नहीं है। चार दिन पहले तीन तलाक कानून बन गया मगर तलाक से पहले निकाह की बात होती है उनको बाद में याद आई तो निकाह की रस्म कुछ ऐसे निभाई है।

                        कबूल  ? कबूल  ? कबूल ? (  जवाब ? )

  निकाह हो गया सब खुश हैं अब कोई फासला नहीं रहा। तीन तलाक खराब था मान लेते हैं मगर गठबंधन तो ख़ुशी रज़ामंदी से होता। जिनकी बात है उनकी आवाज़ बंद है उनको कुछ सुनाई भी नहीं देता और मुंह पर ताला लगा है बोल भी नहीं सकते। निकाहनामा तीन बार कबूल है कबूल है कबूल है पूछने और जवाब हां कबूल है हां कबूल है हां कबूल है मिलने के बाद दोनों की रज़ामंदी से होता है। मगर अपने अपने आप नियम बदल दिया है कि आवाज़ सुनाई देने की ज़रूरत नहीं है सर हिलाया था आपका भरोसे का गवाह गवाही दे देगा और सब ठीक हो गया समझ लिया जाएगा। ये भी होता है जिस को हासिल करना चाहा कोशिश की बहुत दिन तक साथ सरकार चलाई सत्ता की कुर्सी से प्यार हुआ। जब नहीं मानी तो अपहरण करने की परंपरा रही है ताकत से अपना बनाने की। जंग में सब जायज़ है मुहब्बत उनकी समझ की बात नहीं जिनको खुद से अच्छा कोई लगता ही नहीं है। 

    सरकार की साख कम होती जा रही थी चुनाव जीतने के बाद भी लगता था खेल तमाशे और जाने क्या क्या हथकंडे आज़मा कर सत्ता फिर हासिल कर ली मगर देश की जनता को नज़र कुछ नहीं आता किया क्या है अभी तक। झांसे में आकर भावना में बहकर या फिर विवशता कोई सही विकल्प ही नहीं मज़बूरी है जानते हैं हालात कितने बिगड़े हुए हैं। ज़ोर का धमाका करना ज़रूरी है ताकि शोर में चीख पुकार दब कर रह जाए। जिस तन लागे वो ही जाने कश्मीर की जनता को छोड़ सब खुश हैं जैसे उनको कश्मीर मिल गया है जबकि वास्तव में कश्मीर था ही अपना शायद अब भरोसे की दीवार में दरार आने का डर है। गांव की पंचायत कभी निर्णय करती है जिस ने किसी लड़की से बलात्कार किया उसी के साथ शादी करने का। क्या कोई महिला उस को जीवनसाथी मान कर आदर विश्वास करेगी नहीं जानते ये लोग फरमान जारी करते हैं। 

         ये रिवायत भी कमाल है सरकार महीनों  सालों गुनहगार को पकड़ने सज़ा देने में नाकाम रहती है अपराधी पहले बलात्कार फिर कत्ल  फिर सबूत मिटाने का काम करते रहते हैं। जब बदनामी हद से बढ़ जाती है तो सरकार संवेदना जताने जाती है मुआवज़ा देने की रकम खासी बड़ी रखी जाती है ज़ख्म भरते नहीं फिर से हरे हो जाते हैं। मगर सरकार सहानुभूति जताकर समझती है जिस पर अन्याय हुआ उसको राहत मिल होगी। ये जो बिना कबूलनामे निकाह अंजाम दिया है कुछ उसी तरह की बात है। सबको लगता है जन्नत मिल गई है दुल्हन मायके से ससुराल आने की देर है। दुल्हन के मन की बात कोई नहीं जनता न कोई समझता है। सब चाहते थे ये होना चाहिए मगर ज़ोर ज़बरदस्ती और रज़ामंदी का फर्क होता है। चलो शायद दुल्हन स्वीकार कर लेगी उसके अपने नसीब की लिखी बात को। लिखने वाले ने लिख दी तकदीर।

  सबसे गहरी बात आज के टीवी सीरियल लव-कुश में ये थी कि लक्ष्मण अपने भाई राम को कहता है मुझे तो लगा था अपनी पत्नी पर बुरी नज़र डालने और उसका स्पर्श करने वाले को अपने मार दिया है। लेकिन अब देख रहा हूं मरने के बाद भी आपके मन में ज़िंदा है रावण तभी पति - पत्नी के संबंध के बीच खड़ा हुआ है। कितना बड़ा सच है हमने रावण के पुतले को जलाने की परंपरा में उसको मरने नहीं दिया है। हमारे भीतर का रावण ज़िंदा है मगर राम शायद हमारे अंदर है ही नहीं , राम राम जपने से कुछ नहीं होता राम को जानना भी ज़रूरी है।

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