बनाकर दुनिया क्या मिला ( दास्ताने खुदा ) डॉ लोक सेतिया
( भाग एक )
जिसने सबकी कथा लिखी तकदीर लिखी खुद उसकी दास्तान नहीं लिखी किसी ने। जितनी भी किताबें बिकती हैं उसके नाम पर लिखने वाले लोगों ने सब कुछ लिखा ऊपर वाले का दर्द नहीं लिखा। शायद सोचा भी नहीं जो सबको सभी देता है उसको क्या दुःख दर्द क्या कमी होगी। मगर इस से अधिक दर्द की बात क्या होगी कि जिसने सबको खुला आसमान धरती हवा पानी और जीने का सब सामान दिया और सांस लेने चलने फिरने बोलने सोचने की हर तरह की आज़ादी दी उन्हीं लोगों ने खुद बनाने वाले को बेजान इमारत और पत्थर बना कर अपनी ज़रूरत मर्ज़ी और साहूलियत के अनुसार बंधक बना लिया किसी मुजरिम की तरह कैद कर लिया। अब इंसान की मर्ज़ी है कब उसको अपने ही इंसानों से मिलने दे कब उसकी आरती पूजा ईबादत कैसे हो और किस तरह उसके नाम पर चढ़ावा किसी की इच्छा से खर्च हो या जमा किया जाता रहे। दुनिया को बनाने वाला आज पशेमान है ये सोचकर कि मैंने क्या बनाना चाहा था और ये कैसे क्या हुआ जो ऐसी दुनिया बन गई है जो इंसान के रहने लायक ही नहीं भगवान इस दुनिया में रहना भी चाहेगा तो कोई रहने देगा नहीं। हर किसी ने पहले अपने अपने भगवान तराश लिए फिर उन खिलौनों को बनाकर खुद को भगवान समझने लगे हैं। ऊपर कहीं बैठा ऊपर वाला याद कर रहा है अपने इस कारनामे को कैसे अंया को बनाने वाला आज जाम दिया था। दुनिया बनाने वाली की सच्ची कहानी सुनते हैं खुद उसी की ज़ुबानी।बस यही बात नहीं बता सकता कि मैंने ऐसा करने का विचार किया तो आखिर क्यों किया। बाकी सब बता सकता हूं कुछ छुपाने की ज़रूरत नहीं है। मैंने दुनिया की रचना की तो सब बनाता चला गया खूबसूरत दुनिया दिलकश नज़ारे और जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता आज तक भी वो सभी कुछ मैंने बना दिया। फिर सोचा ये सब नज़ारे बेकार हैं अगर इनको देखने वाला कोई नहीं हो कोई इनका उपयोग करे आनंद ले सके तभी बनाने का कोई हासिल है। और तब मैंने इंसान को बनाया बिल्कुल अपनी तरह का ही और उसको सब कुछ दे दिया शक्ति विवेक समझ और सोचने को दिमाग़ भी। क्या भला है क्या बुरा है क्या करना है क्या नहीं करना है समझने को विचारों की ताकत के साथ कुछ बेहतर करने को सपनों की उड़ान भी हर किसी को दे दी। ये सोचकर कि परख कैसे हो मैंने खूबसूरत वादियों के साथ वीराना भी बना दिया , हरे भरे गुलशन बनाए तो कहीं उजड़ा हुआ रेगिस्तान भी बनाया , इंसान में अच्छाई शामिल की तो अच्छाई बुराई का फर्क समझाने को इक शैतान भी बुराई क्या है समझाने को बना बैठा। बहुत कुछ था और सब के लिए था मगर शैतान में लोभ लालच अहंकार और अधिक पाने की ललक या भूख या हवस थी जो थमने का नाम नहीं लेती थी। शैतान हैवान बनता गया और इंसान इंसानियत को छोड़ने लगा तो जिस मकसद से बनाई थी दुनिया वो मकसद ही लगने लगा सफल नहीं हुआ। मगर मैंने आदमी को आज़ादी से जीने रहने अच्छे कर्म करने बुरे कर्म से बचने का संदेश देकर भेजा था और उसने हामी भरी थी मुझे भरोसा था अपनी बात अपना वचन निभाने की बात भूलेगा नहीं।
इंसानों में भी मैंने कुछ को चुना जो मेरी तरह से मेरा काम कर सकेंगे दुनिया को भलाई की राह बतलाने का भटकने से बचाने का पाठ पढ़ाया करेंगे। मैंने इंसान को संवेदना का वरदान दिया था खुश रहने दर्द सहने और हंसने रोने हमदर्द बनकर साथ निभाने को अपनापन और मधुर भावनाओं से भरा दिल देकर। प्यार मुहब्बत भाईचारा और हर किसी का कल्याण हो ये विचार दिया था। शैतान एक था और इंसान बहुत थे फिर भी किसी किसी इंसान को शैतान जैसा बनने की चाहत जाने कैसे होने लगी। आज भी बुराई हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करती है और लोग भलाई को छोड़ उस तरफ चले जाते हैं। मैंने किसी इंसान को मुझे याद करने को नहीं कहा बस इतना वादा किया था तुम सब दुनिया में अकेले ही हो कोई साथी बन सके तो बना लेना मगर फिर भी जब भी कोई संगी साथी छोड़ जाये तो अपने आप को अकेला मत समझना। मुझे अपने भीतर तलाश करना बंद आंखों से भी मुझे सामने पास देख सकोगे। ये इक छोटी सी बात किसी को भी ध्यान नहीं रही है। लोग ध्यान भक्ति की बातें करते हैं वास्तविक मनन चिंतन नहीं करते हैं। धीरे धीरे इंसान बदलता गया और बदल कर आधा आदमी आधा जानवर बनता गया , बाहर से इंसान दिखाई देता है भीतर सब के शैतान छुपा रहता है। मेरा कोई नाम था ही नहीं है भी नहीं हो सकता भी नहीं मगर हर किसी ने पहले मिट्टी का कोई खिलौना बनाकर भगवान कहकर बेचा फिर जिसने जैसे मर्ज़ी मुझे बनाने का दावा किया। सब ने समझा खुद को भगवान को बनाकर भगवान से ऊपर हो जाना है। इस तरह उन्होंने खुदा ईश्वर अल्लाह कितने नाम से कोई कारोबार चला दिया और धर्म नाम देकर मेरी कहानियां गढ़कर सुनाने लगे। भोले भाले लोग उनकी चाल को नहीं समझ पाए और खुद मुझे भूलकर उनकी कही झूठी बातों को सच समझने लगे।
लोग सोचते हैं सब ऊपर वाला करता है वही सब का भाग्य लिखता है मगर कोई विचार नहीं करता मैंने कभी किसी को अच्छे कर्म करने से रोका नहीं बुराई को राह जाने को नहीं कहा है। हर दिन उनको विवेक बताता है सही गलत क्या है मगर अपने विवेक की कोई सुनता ही नहीं। अपनी शैतानी सोच को बदलना नहीं चाहते लोग इंसान बन कर नहीं रहते तो किसकी भूल है। क्या इंसान को सब देकर मैंने बुरा किया है मुझे किसी से कोई बैर नहीं किसी से कोई शिकायत नहीं मगर जो बीजते हैं उसका फल सामने आता है। स्वर्ग कोई नहीं है जन्नत कहीं नहीं है यही दुनिया मैंने सबसे खूबसूरत बनाई थी इन इंसानों ने ही उसको बर्बाद कर दिया है।
( आगे की दास्तान अगली पोस्ट पर पढ़ना )
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