जुलाई 10, 2019

गुफ़्तगू पतझड़ की बहार से ( अनकही कहानी ) डॉ लोक सेतिया

 गुफ़्तगू पतझड़ की बहार से ( अनकही कहानी ) डॉ लोक सेतिया 

  चलते चलते थोड़ा थक गया हूं ज़रा देर आराम करना चाहता हूं आगे सफर पर जाने से पहले। खुद से कितनी बार कही कहानी अपनी बार बार दोहराने से बदलती नहीं है बस याद ताज़ा हो जाती है। आज लिखने लगा तो शुरू से लिखना चाहिए सब नहीं जितना याद है उतना सही। संक्षेप में जीवन भर की बात जैसे किसी गागर में सागर भरने की कोशिश करना। हर कोई ज़िंदगी की तलाश में है मगर ज़िंदगी कोई सामान तो नहीं जो मिलेगा तलाश करने से , ज़िंदगी मिलती है खुद को खोने से और हर कोई सब कुछ पाना चाहता है। मैंने ज़िंदगी को देखा है मगर करीब से नहीं थोड़ा फ़ासला रखकर , पास जाने से डरता हूं कहीं जिसको हक़ीक़त मानता रहा वो इक ख्वाब निकले छूते ही नींद खुले और सपना बिखर जाए। चलो शुरुआत करता हूं। 

मैं किसी पौधे की तरह इक तपते हुए रेगिस्तान में अपने आप उग आया था। हर तरफ प्यास ही प्यास थी और मुझे ख्याल आया कि मुझे इक प्यार का झरना बनकर बहना है सभी की प्यास को बुझाना है। हर किसी से मुहब्बत करने लगा मगर जाने क्यों लोग मुहब्बत को समझते ही नहीं थे। सबको दौलत शोहरत ताकत की चाहत थी और प्यार मुहब्बत की इस दुनिया में कोई कीमत ही नहीं थी। ये इक बाज़ार की तरह था जिस में कोई खरीदार था कोई बिकने का सामान , मेरी हैसियत खाली हाथ बाजार चले आए नासमझ की थी जिसको खरीदना कुछ भी नहीं था और बिकना भी नहीं था किसी कीमत पर भी। चमकती रेत को पानी समझ दौड़ रहे लोग प्यार के बहते झरने की ओर आये ही नहीं आवाज़ देता रहा मैं हर किसी को। भागते हुए कोई सुनता नहीं देखता ही नहीं मुड़कर दाएं बाएं बस सामने दिखाई देती है चमकती हुई रेत प्यास बुझाने को। प्यास किसी की बुझी नहीं सभी प्यासे ही रहे मरने तक। जिस तरफ प्यार मुहब्बत था किसी को उस तरफ आना ही ज़रूरी नहीं लगा कभी भी। 

ज़िंदगी की परिभाषा कोई समझता नहीं समझाता नहीं। जीना इक रास्ता है मंज़िल नहीं है मंज़िल है कोई इश्क़ कोई आशिक़ी ढूंढना इश्क़ करने को। मैंने यही समझा और चलता रहा ढूंढने को अपनी मंज़िल अपनी आशिक़ी अपनी मुहब्बत अपना जुनून। बचपन से दोस्ती की चाहत रही मगर दोस्ती की किताब किसी पाठशाला में पढ़ाई नहीं जाती थी। दोस्त बनते मगर दोस्ती नहीं करते सभी दोस्ती में कोई मतलब तलाश करते थे। दोस्तों की मेहरबानी है जो अरमानों की दौलत अपनी पूंजी बची हुई है सबने लौटा दी वापस उनको दोस्ती से बढ़कर दुनियादारी लगती थी। संगीत से प्यार हुआ मगर घर के बड़ों ने कहा कि ये गाना बजाना छोटे लोगों का काम है मिरासी लोग करते हैं , मुझे चाहत थी तो सबसे छुपकर संगीत सुनता गाया करता गुनगुनाया करता। किसी मंच पर चला गया तो संचालक को मेरा पहनावा देख कर लगा मंच पर आने से पहले लिबास बदलना होगा किसी से मांग कर पहन लो तब जाना मंच पर। पहला अनुभव ही ऐसा हुआ कि फिर कितने साल खामोश रहकर तनहाई में गुज़ार दिये मैंने। 

दर्द से जाने कब कैसे मुलाक़ात हुई और दर्द मेरा हमसफ़र बन गया। दर्द आंसू और आरज़ू कहीं कोई फूल खिलाने की और इक सपना अपनी इक नई दुनिया बसाने की जिस में सब अपने हों कोई बेगाना नहीं हो। कोई इक घर जो खुला रहता हो हर किसी की खातिर जिस में सिर्फ प्यार मुहब्बत भाईचारा हो अजनबी नहीं लगे कोई भी अनजान भी अपना लगता हो जिस जगह। बीच में कोई नदी आई तेज़ बहाव नफ़रत की जलती हुई आग और अंधेरी रात तेज़ तूफ़ान और गरजती बिजली हर कोई डरकर छुपकर बैठ गया। मल्लाह से कहा उस पार ले चलो तो उसने इनकार कर दिया समझाया भंवर है डूबने का खतरा भी है उस पार कोई जहां नहीं है। बहुत कहता रहा तुम माझी हो ले चलो पार उधर मेरे सपनों का जहां है चाहे नहीं भी मिले मुझे जाना है। नहीं मंज़ूर कोई भी बहाना मुझे तो आज भी है उस पार जाना। 

साल गुज़रते रहे मैं कभी राह से भटकता रहा कभी किसी और मंज़िल को अपनी मंज़िल समझता रहा। पर चैन नहीं मिला सुकून नहीं आया तो फिर चलने लगा। ग़ज़ल मिली कभी कविता कभी कहानी सबसे दिल लगाया सबको अपनाया। मगर लोग खुद को बाज़ार में बेचने को लिखते रहे किताब ईनाम नाम शोहरत तमगे पुरुस्कार और दौलत जमा करते रहे। मैंने सीखे नहीं ऐसे ज़माने वाले तौर तरीके अंदाज़ आज तलक। अपने ही अरमानों से इक कश्ती बनाई और जो भी मिला उसको उसकी मंज़िल तक पार पहुंचा आता जाता रहा। नाखुदा बनकर पता चला कि कश्ती का मल्लाह किसी किनारे नहीं लगता है उसको किसी न किसी दिन नदी की तेज़ धारा में हिचकोले खाते खाते सबको बचाते हुए डूबना ही है। कितनी बार डूबने के बाद मुझे लहरों ने ही फिर वापस किनारे लाकर फेंक डाला है। 

बहुत चिंतन करने के बाद ये बात समझ आई है कि ज़िंदगी किसको कहते हैं और जीने का हासिल क्या है। यूं ही बेमकसद जीना ज़िंदगी नहीं होता है ज़िंदगी उनकी सार्थक है जो कुछ कर गए। जिनका अपना कोई मकसद रहा था जुनून था जिसकी खातिर जिये भी मरे भी। देश समाज दुनिया को अच्छा और खूबसूरत बनाने को सभी को इंसानियत का पाठ पढ़ाने को आपस में मिलकर रहने और भाईचारा बढ़ाने को साहस पूर्वक सच का साथ देने अन्याय और झूठ का विरोध करने को जीवन भर कोशिशें करते रहे। कोई धन दौलत का अंबार जमा नहीं किया क्योंकि उनकी पूंजी लोगों का प्यार और भरोसा थी जो कायम है उनके बाद भी। ये समझ आने के बाद सोचता हूं अभी जीकर सार्थक किया क्या है। जब जागे तभी सवेरा समझते हैं कोशिश करनी होगी कुछ अच्छा करने की अन्यथा जिया नहीं जिया क्या अंतर है। कोई साथ चले कि नहीं चले मुझे चलना है इक मंज़िल की तलाश को , जो मेरे नहीं जाने कितने लोगों की ख्वाबों की ताबीर होगी। इस समाज से दुनिया की राह से कांटें चुनकर हटाने हैं और खिलाने हैं कुछ सदाबहार महकते फूलों के चमन।

पतझड़ ने कहा है फिर से बहार से मुझे अलविदा करने के बाद आओ अब मगर रहना हमेशा सभी के जीवन में हरियाली रंग और खुशबू बन कर। बहार ने वादा किया है मुझे आएगी और निभाएगी अपना वादा जो किया था सभी से। मौसम बदलेगा अभी शायद थोड़ा जतन और करना है मिलकर सबको अपने उजड़े हुए गुलशन को फिर से खिलाने को। हम आप अपने अपने स्वार्थ छोड़कर साथ साथ हाथ से हाथ मिलाते हुए क्या है जो नहीं कर सकते हैं। अबके बहार लाएंगे जो कोई पतझड़ का मौसम छीन नहीं सकेगा , नफरत की आंधी भी जिस को बर्बाद नहीं कर सकेगी हमने नफरत को मिटाना है मुहब्बत के गुलशन के फूलों को खिलाना है।

अब यहां से नई शुरुआत करनी है। अभी लिखनी है कहानी प्यार की। आपने भी किरदार निभाना है।




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