कुआं मेंढक खुद को समंदर समझना ( सच केवल सच )
भाग दो - डॉ लोक सेतिया
बात फिर से शुरू करते हैं ग़ालिब की इक ग़ज़ल के शेर को दोहराते हुए। हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है , तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़े गुफ़्तगू क्या है। दो सौ साल पहले कोई बादशाह के दरबार में स्थापित शायर अपने सिवा किसी को बराबर नहीं समझता था शेरो सुखन की महफ़िल में। इशारा था आप ही बताओ ये कैसी तहज़ीब है जो जानते समझते हुए भी किसी को जतलाना कि उसकी कोई पहचान नहीं है। होते हैं ऐसे लोग जो कहने को बरगद जैसे विशाल होते हैं लेकिन उनकी छाया किसी पौधे को उगने पनपने नहीं देती है। तमाम राजनैतिक दलों में ऐसा वर्चस्व स्थापित कर लेते हैं सत्ता की बागडोर हाथ लगते ही राजनेता कई मगर जब कोई खुद को खुदा समझने लगता है उसकी खुदाई रहती थोड़े दिन ही है। इतने विशाल देश का संविधान किसी को ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है। सबसे अनुचित होता है कुछ नहीं करते हुए सब कुछ करने का दिखावा करना। राजनीति की मछली हर तलाब को गंदा करने पर तुली है लोग राजनीति को समझते नहीं उसकी चाल का शिकार होकर आपस में नफरत झगड़े बिना तथ्य की बहस करने लगे हैं।
सोशल मीडिया पर हर राजनेता की एक नहीं अनेक फेसबुक और व्हाट्सएप्प्प ट्विटर अकाउंट हैं मगर छल की बात है कि कोई भी नेता खुद नहीं है उसके नियुक्त लोग वेतन लेकर उनके नाम से आपसे संवाद करते हैं और हर बार संवाद करने वाले लोग बदल जाते हैं जैसे किसी नौकरी पर आठ घंटे की सेवा करना होता है। कोई कोई कभी खुद भी एक फेसबुक पर रहता है मगर हर अपने नाम की फेसबुक या सोशल मीडिया अकाउंट पर पढ़ कर लगता है खुद को सच्चा भला और ईमानदार घोषित करना मकसद है। जो वास्तव में नहीं हैं जो कभी होना चाहते नहीं हैं उसका दिखावा करते हैं। दोस्ती नहीं करनी उनको दोस्त बनकर आपको अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में लाना है। जाने कितने लोग नासमझी करते हैं जो इन को लेकर कौन बनेगा विधायक सांसद खेलते रहते हैं। इक मंच जो आपस में संवाद स्थापित करने का अपने विचार अभिव्यक्त करने की जगह था झूठ चालाकी और मतलब का माध्यम बन गया है। आपको लगता है आपके राज्य के राजनेता से दोस्ती है पहचान है मगर होता ये है कि व्हाट्सएप्प पर हर दो दिन बाद कोई आपसे अपना परिचय मांगता है नाम पूछता है। मुझे हैरानी होती है जब मेरी भेजी हर पोस्ट पर मेरा नाम लिखा रहता है शीर्षक में ही फिर भी सवाल किया जाता है भाई कौन हैं आप। ऐसे लोगों को क्या समझ सकते हैं या समझा सकते हैं उनके ग्रुप्स हैं बने हुए उनकी महिमा का गुणगान करने को।
सोशल मीडिया पर हर कोई भली बातें सुंदर संदेश देता है उपदेशक बनकर सच्चाई और धर्म का सबक सिखलाता है चाहे खुद कैसा भी हो। मगर जनता को ठगने को हर खलनायक मसीहा होने का दावा करता नज़र आता है फेसबुक व्हाट्सएप्प पर। खुद को चालाक समझना ठीक है आपकी चाल चालाकियां लोग नहीं समझ पाते वो भी अपनी जगह मगर इरादा सत्ता पाकर देश की संम्पदा की लूट का और दावे देश भक्ति जनता की सेवा करने की भावना के ये तो हद से आगे बढ़ना है। अच्छा बनकर दिखाना कोई नहीं चाहता मगर हर कोई कहलाना चाहता है तुम से अच्छा कौन है। बड़े धोखे हैं इस राह में कभी मुहब्बत प्यार को लेकर कहते थे अब सोशल मीडिया को लेकर कहना पड़ता है। हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है। आपको जो भी राजनेता अपने लगते हैं वो किसी के भी होते नहीं हैं कल किसी दल के नेता को आदर्श बताते थे उनके अनुयाई बने फिरते थे आज दलबदल कर सुर बदले हुए हैं। जिनको गली देते थे उनकी वंदना करते नज़र आते हैं उनके चरण धोने से चरणों में नतमस्तक होने तक सब करते हैं और कल जिसे अपना खुदा कहते थे आज उसी को पापी अधर्मी बताते लाज नहीं आती। दोगलापन नहीं उस से बढ़कर गिरगिट से जल्दी रंग बदलने वाले इंसान नहीं हो सकते। सत्ता की हवस ने अंधा और पागल किया हुआ है विचार का कोई मतलब ही नहीं है। ये राजनीति की लंका है जिस में हर कोई बावन गज़ का है मगर ये चमकती हुई लंका खालिस सोना की क्या पीतल की भी नहीं हैं जंग लगे हुए लोहे पर सोने के रंग से पुताई की हुई है।
अब इस को लेकर लिखना समय बर्बाद करना है अधिक क्या कहा जाये आखिर में पुरानी कहावत की बात याद कर लेते हैं। कहते हैं राजनीति और वैश्यावृति दुनिया के दो सबसे पुराने पेशे हैं और दोनों में बहुत समानताएं हैं। कानूनन जिस्मफ़रोशी अपराध है मगर ईमान बेचा जा सकता है राजनीति करने की छूट है उस में झूठ कपट छल धोखा सब की इजाज़त है पता चलता है तो हम हैरान नहीं होते कह देते हैं ये तो राजनीति की बात है अर्थात गंदी बात है। ये समाज कहता है भली बातें करना सीखो मगर करता है गंदी बातें दिन भर गंदी राजनीति छाई रहती है दिलो दिमाग पर। गंदी बातों में आनंद मिलता है अच्छी बातें सुनकर लोग बोरियत महसूस करते हैं। जैसे हर कोई प्यार इश्क़ मुहब्बत में तारीफ खूबसूरती की करते हुए भीतर भावना कुत्सित वासना की रखते हैं किस लिबास में कौन किसी की अस्मत लूटना चाहता है किसी का ऐतबार नहीं है। इस दौर में हर कोई राम का रूप धारण किये है मगर लोकतंत्र की सीता का अपहरण करने की फ़िराक में है यही सार है अपने आज की राजनीति की वास्तविकता को ब्यान करना हो अगर।
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